आन्तरिक कायाकल्प का सरल किन्तु सुनिश्चित विधान

कल्प चिकित्सा की पात्रता के सम्बन्ध में महर्षि चरक का मत

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यौवनावस्था को पुनः प्राप्त करने के लिए कल्प चिकित्सा आयुर्वेदीय औषधि प्रणाली का आन्तरिक भाग है। ‘चरक-संहिता’ के कई अध्यायों में इस चिकित्सा का वर्णन है। सुश्रुत, वाग्भट्ट और अन्य लेखकों ने भी इसके बारे में लिखा है और इस उद्देश्य के लिए जिन औषधियों का उल्लेख किया गया है, उनको रसायन नाम से पुकारा गया है।

इस चिकित्सा से कौन अच्छा लाभ उठा सकता है इस विषय में ‘चरक-संहिता’ में कहा गया है—

‘‘जो सत्यवादी है, क्रोध से मुक्त है, भोग-विलास तथा मांस भक्षण से परे है, मारकाट तथा थकावट के कामों से दूर रहता है, सहनशील है, जप करता है, मन और शरीर जिसके शुद्ध हैं, सदाचारी है, संतुष्ट है, उदार और दानी है, देवताओं, गऊ, ब्राह्मणों, साधुओं, अध्यापकों तथा वृद्धों का आदर करता है, जो नीच कर्मों से बचता है, जिसका हृदय कोमल है, ज्ञानी है, जो ठीक समय पर सोता और जागता है, भोजन में दूध का प्रयोग करता है, समय की कीमत को समझता है, तर्क और अधिकार को मानता है, गर्व से दूर है, अपने धर्म में दृढ़ है, धार्मिक बातों को समझता है, अपने मन पर जिसका काबू है और इसे सर्वशक्तिमान के ध्यान में लगाता है, ईश्वर में जो विश्वास रखता है और जो धर्मशास्त्रों के आदेश का पालन करता है, वही मनुष्य बिना रसायन सेवन किये कल्प–चिकित्सा से लाभ उठा सकता है। अगर ऐसे गुणों वाला मनुष्य कल्प-चिकित्सा में रसायन का सेवन भी करता है तो उसे इस चिकित्सा का पूर्ण लाभ मिलता है।"


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