परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - गुरुपूर्णिमा पर्व संदेश 1980

July 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(गुरुपूर्णिमा पर्व 1980 पर दिया गया पावन संदेश)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो! भाइयो!!

आज गुरुपूर्णिमा पर्व के महत्वपूर्ण पर्व पर महाकाल ने कुछ विशेष संदेश भेजा है। इनमें से पहला विशेष संदेश यह है कि युगसंधि के ये बीस साल इतने महत्वपूर्ण हैं, जो पीढ़ियों तक याद रहेंगे। इस समय महाकाल कुछ गलाई करने जा रहे हैं एवं कुछ ढलाई करने जा रहे हैं। बेकार की चीजों-बेकाम की चीजों की गलाई होने जा रही है। बेकार के आदमी एवं बेकार की परिस्थितियाँ सब गलने जा रही हैं। गल करके उनकी ढलाई होगी, नये पुर्जे बनने वाले हैं। नयी चीजें बनने वाली हैं। इन बीस वर्षों में बहुत ही जोरों के साथ गलाई एवं ढलाई का काम चलेगा। इतिहास इस बात को याद करेगा कि बीस वर्षों में सड़ी-गली व्यवस्थाएँ एवं व्यक्ति कैसे समाप्त हो गये और किस प्रकार नया प्रभात हुआ। अब नये व्यक्ति, नयी परम्पराएँ, नये चिन्तन उभर कर आयेंगे। अगले दिनों लोग यह सोचकर अचम्भा करेंगे कि इतने कम समय में इतना परिवर्तन कैसे हो गया। अगर इस समय को आप जान पायें, पहचान पाये तो हमारा ख्याल है कि आप सच्चे अर्थों में भाग्यवान बन सकते हैं।

हमें महाकाल ने संदेश भेजा है कि आप लोग इन बीस वर्षों में कीड़े-मकोड़ों के जीवन से ऊँचा उठकर जीवन जियें और कुछ काम करें। आपको औलाद की चिंता करते-करते करोड़ों वर्ष हो गये। धन की चिंता करते-करते करोड़ों वर्ष हो गये। अगर आप चाहें, तो और भी करोड़ों वर्ष, करोड़ों जन्म इसी प्रकार के कार्यों में खर्च कर सकते हैं। इसमें आपको कुछ मिलने वाला नहीं है। आप अगर हमारी बात मानें तो अपने कुछ विचार एवं चिंतन इस समय बदल दें। इससे आपको लाभ ही लाभ मिलेगा। आपकी परेशानी दूर हो जायेगी, अगर आप जमाखोरी करना बंद कर दें। महाकाल ने दो कार्य बंद करने को कहा है, सो आप अपनी औलाद एवं धन की बात करना अभी बंद कर दें। हम आपको बतलाना चाहते हैं कि जॉर्ज वाशिंगटन ने अपने पुरुषार्थ के बल पर इज्जत एवं धन प्राप्त किया था। भगवान ने उन्हें जन्म से ही नहीं दिया था। आप भी ये चीजें प्राप्त कर सकते हैं। आप क्यों बंधनों में जकड़ कर मर रहे हैं। आप अपनी हथकड़ियों को ढीला कर दीजिए। महाकाल चाहते हैं कि आपका इन दिनों भौतिक चीजों से मन खट्टा हो जाए। जब इस प्रकार का मन आपका इस युगसंधि के समय बन जायेगा, तो हम विश्वास दिलाना चाहते हैं कि आपके पास समय की कमी नहीं रहेगी। आपके पास धन-दौलत की कमी नहीं रहेगी। आप जो भी काम चाहेंगे, उसे पूरा कर सकते हैं। पुरुषार्थ की कमी नहीं होगी।

अतः इस समय हमारा एक ही निवेदन है कि आप महाकाल के, प्रज्ञावतार के सहयोगी का रोल अदा करें। यह संदेश महाकाल ने-प्रज्ञावतार ने, हमारे गुरुदेव ने भेजा है। आप इस काम को कर पायेंगे, तो सारा संसार आपकी सराहना करेगा तथा आप अपने आप भी अपनी सराहना करेंगे। अगर आप इस प्रकार की हिम्मत कर सकेंगे, तो आपको ही लाभ होगा।

महाकाल का दूसरा संदेश यह है कि इस समय आपको भगवान का काम करना चाहिए। आप ऋषियों का-महात्माओं का इतिहास पढ़ लीजिए कि कोई भी व्यक्ति भगवान का केवल नाम लेकर ऊँचा नहीं उठा है। उसे भगवान का काम भी करना पड़ा है। आपको भी कुछ काम करना होगा, अगर आप भगवान का नाम लेकर अपने आपको बहकाना चाहते हैं, तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। अगर आप अपने आपको बहकाते रहे, भगवान को बहकाते रहे तो आप इसी प्रकार खाली हाथ रहेंगे, जैसे आज आप रह रहे हैं। यह आपके लिए खुली छूट है। निर्णय आपको करना है, कदम आपको ही बढ़ाना है। भगवान काम नहीं कर सकता है, क्योंकि वह अपने आप में निराकार है। आप भगवान का साकार रूप बनकर उनका काम करने का प्रयास करें। आदमी का सिर काटने के लिए तलवार की आवश्यकता पड़ती है, परन्तु अकेली तलवार से काम नहीं चल सकता है। पुरुषार्थ निराकार है तथा तलवार साकार है। इन दोनों के मिलने से ही काम बनता है। आप भी इसी प्रकार भगवान का काम करने के लिए आयें तथा प्रयत्न करें। इस युगसंधि की वेला में भगवान जो कि निराकार हैं, उन्हें साकार सहयोगी लोगों की आवश्यकता है।

प्राचीनकाल में भी भगवान का काम जाग्रत आत्माओं ने किया था। आगे जल्दी अवतार नहीं होने वाला है। इस समय सारे विश्व की व्यवस्था नये सिरे से बनने वाली है। उस समय आप कितने महान बनेंगे, इसका जवाब समय देगा। हनुमान ने कितनी उपासना की थी, कितनी कुण्डलिनियाँ जगायी थीं? यह हम नहीं कर सकते हैं, परन्तु उन्होंने भगवान का काम किया था। नल-नील ने जामवन्त ने, अर्जुन ने कितनी पूजा एवं तीर्थयात्रा की थी? पर उन्होंने भगवान के कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया था। इस कारण से भगवान ने भी उनके कार्यों में कंधे-से-कंधा मिलाया था। विभीषण एवं केवट ने भगवान का काम किया था, ये लोग घाटे में नहीं रहे। भगवान का काम करने वाले ही भगवान के वास्तविक भक्त होते हैं। भगवान का नाम लेने वाले भी भगवान के भक्त हो सकते हैं, परन्तु उन्हें भगवान का काम भी करना पड़ेगा। इससे कम में बात बनने वाली नहीं है।

इस समय जो भगवान के भक्त हैं, जिन्हें इस संसार के प्रति दर्द है, उनके नाम यह विशेष संदेश भेजा गया है कि वे अपने व्यक्तिगत लाभ के कामों में कटौती करें एवं भगवान का काम करने के लिए आगे आयें। भगवान के काम के लिए, सहायता के लिए आगे आयें। यही है हमारा गुरुपूर्णिमा का संदेश, यही है महाकाल का संदेश। अगर आप सुन सकेंगे, तो आपके लिए बहुत ही लाभदायक होगा। आप सुनेंगे तो आपको भी लाभ मिलेगा, लेकिन अगर आप इस समय चादर ओढ़कर सोये रहेंगे, तो आपको घाटा-ही-घाटा होगा। अगर इस समय भी आप अपना मतलब सिद्ध करते रहे और मालदार बनते रहे, तो पीछे आपको बहुत पछताना पड़ेगा तथा आप हाथ मलते रह जायेंगे। गाँधी जी के स्वतंत्रता आँकलन में जो आदमी शामिल हो गये थे, वे आज स्वतंत्रता सेनानी हैं और पेंशन पा रहे हैं, मिनिस्टर हैं, राज्यपाल हैं। पर जो लोग भाग नहीं ले सके आज वे लोग पछता रहे हैं कि काश! हम भी कुछ काम कर लेते तो आज नफे में होते। आपकी इन दिनों की चालाकी आपको हजारों वर्षों तक दुख देती रहेगी तथा आप परेशान रहेंगे। अतः आप अभी से अपने बीस वर्षों की कार्यपद्धति बना लें तथा भावी योजना का निर्धारण कर लें

इस समय आपको तीन काम करने हैं। यह युगसंधि का बीजारोपण वर्ष है। इसमें बीज बोने हैं, ताकि फसल हम प्राप्त कर सकें। बीज बोने के लिए हमें तीन काम करने होंगे। पहला काम वातावरण के परिष्कार तथा आपका आत्मबल बढ़ाने के लिए है। इन दोनों उद्देश्यों के लिए आपको युगसंधि महापुरश्चरण करना चाहिए। यह सामूहिक तप है। आपके अकेले का तप इस काम के लिए सार्थक नहीं हो सकता है। अतः महाकाल ने इस समय विशेष शक्ति देने का निश्चय किया है। यह प्राणसंचार की प्रक्रिया है एवं दिव्य-दृष्टि जागरण की प्रक्रिया है। आप नैष्ठिक तपस्या कीजिए, देवता आपको अनुदान देंगे। यह ऐसा कार्य है, जो हर किसी को जो उपासना में विश्वास करते हैं, उन्हें यह तपस्या अवश्य करनी चाहिए। आपकी उपासना इसलिए असफल रही है कि उसमें निष्ठा का समावेश नहीं हुआ है। आप तपस्यायुक्त उपासना कीजिए, फिर देखिये उसमें चमत्कार होता है या नहीं।

मित्रों, आप युगसंधि महापुरश्चरण अवश्य करें। इसमें तपस्या भी शामिल है, निष्ठा भी शामिल है और महाकाल के अनुदान भी शामिल हैं। यह लाभ उठाने का मौका न कभी मिला है और न बीस साल बाद कभी मिलने वाला है। ऐसा आश्वासन किसी ने नहीं दिया होगा कि आपका अनुष्ठान खण्डित हो जायेगा अर्थात् अधूरा रह जायेगा, तो हम उसे पूरा करेंगे। आपकी मृत्यु हो जाने पर भी हम उसे पूरा करेंगे। आप अगर बीच में भी हार जाएँ तो हम आपके बदले का भार उठा लेंगे। यह कितना बड़ा आश्वासन है। हमारा यह कहना है कि कोई भी प्रज्ञापरिजन ऐसा न हो जो इस नियमबद्ध उपासना को प्रारम्भ न करे। यह वातावरण के संशोधन तथा साधकों के आत्मबल के अभिवर्द्धन हेतु प्रारम्भ किया गया है।

दूसरा वाला भगवान का कार्य है-गायत्री चरणपीठों की स्थापना। तब भगवान का कार्य करने के लिए कुछ व्यक्ति आ गये थे-मसलन हनुमान। हनुमान के अंदर पुरुषार्थ भी था, साहस और साधन भी था तथा उनके अंदर भावना भी थी। अब ऐसे आदमियों का मिलना भी मुश्किल है। आपको ऐसी परिस्थिति में क्या करना होगा? आपको एक समानांतर हनुमान अपने क्षेत्र में खड़ा करना होगा, जिसका कलेवर भी हो तथा जिसमें प्राण भी हो। यह हनुमान क्या है? यह है गायत्री चरण-पीठों की स्थापना। ये चरणपीठें बन रही हैं और आपको बनानी चाहिए। आपकी जहाँ भी गायत्री परिवार की शाखाएँ हैं, वहाँ गायत्री चरणपीठें बना देनी चाहिए। गायत्री चरणपीठों के नये नक्शे बना दिये गये हैं।

आपको ऐसी चरणपीठें बनानी चाहिए, जो

कम लागत की होते हुए भी चार बातों को पूरा करने में समर्थ हो सकें। वहाँ एक गायत्री परिवार के कार्यकर्ता का निवास अवश्य होना चाहिए। वे मंदिर हो सकते हैं, परंतु मात्र उसी से जन-जागरण का काम नहीं हो सकता है। अतः वहाँ पर भगवान के काम को करने वाला भी उपस्थित होना चाहिए, जो गतिविधियाँ चला सकें। अगर कार्यकर्ता निवास नहीं होगा, तो वह सुबह घंटी बजाकर घर चला जाएगा। ऐसे वातावरण में काम नहीं हो सकता है। हम ऐसे घण्टी बजाने वाले मंदिर बनाकर क्या करेंगे। इसके बाद उसमें एक हाल होना चाहिए। इस हाल के माध्यम से कई गतिविधियाँ चलेंगी। उसमें सत्संग होगा। दिन में पाठशाला भी चल सकेगी। रात्रि में उसमें कथा का आयोजन भी चल सकता है। प्रौढ़ शिक्षा का काम भी वहाँ चल सकता है। अतः इस चरणपीठ में हमने 16x24 का एक हाल भी जोड़ दिया है। अगर हाल न हो तो काम पूरा नहीं होगा, भले यह खपरैल का ही क्यों न हो, क्योंकि नये युग का संदेश देने के लिए, साहित्य घर-घर देने के लिए, वापस लेने के लिए एक स्थान होना चाहिए। हम अगले दिनों अपने मिशन के द्वारा इस प्रकार एक महत्वपूर्ण कदम उठाने वाले हैं, जिसके द्वारा काम हो सके। इसके बिना काम पूरा हो ही नहीं सकेगा। अतः उसमें देवालय भी होना चाहिए तथा पुस्तकालय भी होना चाहिए। यह प्रज्ञावतार का केन्द्र है। अतः इसमें चार चीजें अवश्य होनी चाहिए, इसके बिना कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है। वे हैं-(1) मन्दिर, (2) पुस्तकालय, (3) हाल, (4) कार्यकर्ता निवास।

आप में से हर शाखा के परिजनों का यह प्रयास होना चाहिए कि वे अपने ग्राम में एक चरणपीठ की स्थापना कर लें। अगर कोई चंदा नहीं देता है, तो कोई बात नहीं। आप यह बात नहीं कहें, वरन् यह सोचें कि आप कितने बच्चे हैं? हर एक की शादी में आपने दस हजार रुपये खर्च किये हैं, तो इस बच्चे अर्थात् चरणपीठ के लिए भी छह हजार खर्च करें। इसके बिना कृपणता को छोड़ें एवं भगवान के सहयोगी बनें। आप भगवान के निमित्त अपना समय देना शुरू कीजिए, फिर देखिये आपको सहयोग देने के लिए दूसरे आदमी आपके पास आते हैं या नहीं। आप पहले अपना लगाइये तो सही, फिर देखिये दूसरा आदमी किस प्रकार देता है। आप अपना लगाना नहीं चाहते हैं और दूसरों से माँगते हैं। इससे काम नहीं बनेगा। आगे आपको आना पड़ेगा। त्याग की कसौटी पर आपको स्वयं को खरा सिद्ध करना पड़ेगा। अगर आप इस प्रकार कर सकेंगे, तो ही काम बनेगा। छह हजार रुपये कुछ भी नहीं हैं। अगर यह मान लें कि हमें अपनी बेटी, बहिन की शादी करनी है, तो हर व्यक्ति अपनी जेब से निकाल कर दे देता है। आप अगर हिम्मत करेंगे और देंगे, तो आपको देखकर दूसरा आदमी भी अनायास ही देगा। आप अगर देने में आगे आयेंगे तो न जाने कितने लोग आपको सहयोग करने के लिए अमादा हो जायेंगे। हर गाँव में चरणपीठ बनना चाहिए, यह हमारा अनुरोध है आप से।

तीसरे काम के बारे में हम बात बतलाकर अपनी बात समाप्त करेंगे। हमें युगपरिवर्तन की बातों को बतलाने के लिए, युगसंदेश को घर-घर पहुँचाने के लिए प्रज्ञावतार के अलख को घर-घर पहुँचाने के लिए दो प्रकार के व्यक्तियों की आवश्यकता है। हमें इस काम के लिए नंबर एक-संत तथा नंबर दो-ब्राह्मणों की आवश्यकता है। ऐसे अनेक आदमी अन्य कार्यों के लिए मिल सकते हैं, परंतु हमें तो संत चाहिए, हमें तो ब्राह्मण चाहिए।

संत से क्या मतलब है? संत का मतलब है, पुरुषार्थी, त्यागी और तपस्वी। आपके भीतर तो दो ही चीजें जगी हुई हैं। कौन-कौन-सी चीजें जगी हुई हैं? आपके भीतर एक चाण्डाल जगा हुआ है। वह कामवासना की बातें करता है, बेकार की बातें करता है। यह चाण्डाल बिलकुल बेकार है। यही माद्दा आपका जगा है, जो हमेशा आपको परेशान करता रहता है। एक इंच भी आपको आगे बढ़ने नहीं देता है। दूसरी चीज एक और जगी हुई है जिसका नाम बनिया है। इसका मतलब यह है कि वह व्यक्ति किसी भी बिरादरी में पैदा हुआ हो, उसे हर समय पैसा, हर समय दौलत ही दिखायी पड़ती है। हर समय लालच और हर समय लोभ ही घेरे रहता है। यह बनियापन आपका जगा हुआ है। शूद्र आपका जगा हुआ है, परंतु आपके अंदर दो चीजें बिलकुल सोयी हुई हैं, पहला ‘ब्राह्मण’ और दूसरा ‘संत’। इनको पुरुषार्थ, त्याग, साहस जो भी आप नाम चाहें, दे सकते हैं। यह दोनों आपके अंदर सो गये हैं, जिसके कारण आप भगवान का कार्य करने में असमर्थ हैं।

मित्रो, हमें आपके भीतर के संत और ब्राह्मण को जगाना है। हम बाहर के ब्राह्मण से क्या बात करेंगे? बाहर के संतों से हम क्या कहेंगे, बाहर संत कहाँ हैं? उनका नाम लेने से हमारा दिमाग खराब हो जाता है। आप उन बाबाजी से हमें कहने को कहते हैं, जिनने कभी कुछ नहीं किया है और न आगे करेंगे। आपके भीतर जो संत सोया है, आप उसे जगायें। संत किसे कहते हैं? जिसने अपने लोभ एवं मोह को समाप्त कर दिया है। आप देखेंगे कि इस गायत्री परिवार के लोगों में से कितने संत निकलते हुए चले आयेंगे। ऐसे व्यक्ति आपको दिखायी देंगे जिनकी समझदारी कम हो गयी है या जो अपने घर को देखते हुए भी मिशन का काम करते हैं, वे सब संत हैं। महाकाल की प्रार्थना है कि आप संत की भूमिका निभायें एवं परिव्राजक के तरीके से जन-जन तक महाकाल के संदेश को पहुँचाने का प्रयास करें। भगवान का काम करने में अपना समय लगा दें।

उन लोगों का नाम संत है, जो बादलों की तरह से घूमते हैं और भगवान का संदेश हर जगह पहुँचाते हैं तथा हर आदमी के भीतर जीवट पैदा करते हैं। आप लोगों में से हर आदमी के भीतर ब्राह्मण छिपा पड़ा है। ब्राह्मण तो वे हैं, जो काम तो करना चाहते हैं, परंतु घर की जिम्मेदारियाँ एवं अन्य समस्याओं के कारण कुछ कर नहीं पाते हैं। हमने ऐसे ब्राह्मणों का आह्वान किया है कि वे निकलकर बाहर आयें। संत वे हैं, जो बिना लिए काम करते हैं। ब्राह्मणों को लेना पड़ता है। हम उन्हें देने को तैयार हैं, वे घर से निकल कर तो आयें। हम उनके गुजारे का प्रबंध कर सकते हैं। अगर उन्होंने बड़ी गृहस्थी इकट्ठी कर रखी है, तो बात अलग है। अगर बहुत बड़ी हविश बना रखी है तो बात अलग है अन्यथा अगर वे पेट भरना चाहते हैं और तन ढँकना चाहते हैं, तो गायत्री परिवार के सदस्यों को ब्राह्मणोचित खर्च देने को हम तैयार हैं।

आप जानते हैं कि प्राचीनकाल में ब्राह्मणों का खर्च भिक्षाटन से पूरा होता था। हमने भी इस प्रकार का पात्र बना रखा है। गायत्री परिवार के घरों में ज्ञानघट-धर्मघट के रूप में स्थापित कर दिया है। उनसे कह दिया है कि आप नित्य इसमें दस पैसा डालें। हम किसी भी गायत्री परिवार के व्यक्ति को बिना ज्ञानघट के नहीं रहने देंगे। हम किसी को भी मुट्ठी भर अनाज दिये बिना नहीं रहने देंगे। यह ब्राह्मणों की जीविका के लिए हमें चाहिए। ब्राह्मणों के पेट भरने के लिए, उनके तन ढँकने के लिए आपके ब्रह्मभोज का पैसा चाहिए।

इस पैसे का हम क्या करेंगे? इन पैसों को हम इमारत बनाने में, हवन कराने में नहीं खर्च करेंगे। यह ज्ञानघट का पैसा विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों के लिए खर्च होगा। ब्रह्मभोज का अर्थ है-हमें कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ेगी, हम इसके द्वारा उनकी आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। हम चाहते हैं कि हमारी जितनी भी शाखाएँ हैं, उनमें एक चरणपीठ अवश्य बननी चाहिए। उसमें हमें दो कार्यकर्ता चाहिए। उनमें से एक आदमी साइकिल से सारे-के-सारे आस पास के क्षेत्रों में भ्रमण करके विचार क्राँति का काम चलाए। दूसरा आदमी यहाँ मंदिर में रहकर सारी गतिविधियों का संचालन करेगा। इस प्रकार हमें हजारों आदमी चाहिए। हमें उनके लिए पेट भरने एवं तन ढकने

के लिए पैसा चाहिए। अगर उनके छोटे बच्चे हैं, तो उन्हें फाँसी कैसे लगा देंगे। उसको तो भोजन देना ही पड़ेगा। हाँ, आगे वे बच्चा पैदा न करें, यह बात ठीक है, परंतु अभी जो हैं, उनकी व्यवस्था तो बनानी ही पड़ेगी। उसकी पत्नी को भी देना होगा। अतः आप लोगों में से जिस किसी में भी संत की प्रवृत्ति हो, वह जागें और आगे आयें।

हमें संत-ब्राह्मणों को जगाना है तथा इन लोगों के लिए ब्रह्मभोज की व्यवस्था बनानी है। यह सारा-का-सारा काम आपको करना है। आप इस प्रकार के व्यक्तियों की तलाश करें। अगर आपका कुछ प्रभाव है या दबाव है, तो उसका भी उपयोग करें। आप जब विवाह शादी में उसका उपयोग कर सकते हैं, चुनाव में खड़े होते हैं, तो उपयोग करते हैं, तो आपको इस कार्य के लिए भी अपने प्रभाव या दबाव का उपयोग करना चाहिए। अगर आपके पास ज्यादा है, तो ज्यादा देने का प्रयास कीजिए। हम इतने आदमी की व्यवस्था कैसे करेंगे? दस पैसा तो शुरुआत है। अगर संभव हो तो आप दिन का वेतन दीजिए। अगर कुछ संग्रह है तो उसे हमें दीजिए। अगर बेकार की चीजें हैं, तो उन्हें हमें दीजिए। आपकी चीजों की भगवान को आवश्यकता है। आप जो करेंगे, उसका लाभ-मुनाफ़ा आपको अवश्य ही मिलेगा। अगर आप नहीं कर पायेंगे, अपना दिल चौड़ा नहीं कर पायेंगे, तो आप घाटे में रहेंगे। इस समय दिन चौड़ा करने का समय है, उदारता का समय है। यह बीजारोपण का वर्ष है। यह लाभ उठाने का वर्ष है।

यही इस गुरुपूर्णिमा पर महाकाल का संदेश है, जो हमारे जैसे टेपरिकार्डर के माध्यम से आपको सुनाया जा रहा है। हमें आशा एवं विश्वास है कि आप साहस भरा कदम उठायेंगे और भगवान का काम करने में पीछे नहीं रहेंगे। ॐ शाँति।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118