प्राणचेतना में निहित चमत्कारी सामर्थ्य

July 1998

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सूक्ष्मजगत में काम कर रही शक्तियाँ स्थूल पदार्थों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं, इसके उदाहरण आये दिन देखने को मिलते रहते हैं। उदाहरणस्वरूप वायुमण्डल में तापमान बढ़ते ही हमारे शरीर गरम होने लगते हैं, वस्तुएँ भी गरम हो उठती हैं और ठण्डक का मौसम आते ही ठण्डी का अनुभव होने लगता है। वर्षाऋतु में हवा की नमी मात्र से घासपात में हरियाली दौड़ जाती है। रेडियो और टेलीविजन के उपकरण अन्तरिक्ष में चल रहे सूक्ष्मप्रवाहों से प्रभावित होते और अपने काम करते देखे जाते हैं। इसी सिद्धान्त के आधार पर हम अपनी प्राणचेतना एवं मनोबल की शक्तितरंगों को आकाश में प्रेषित कर सकते हैं और उससे निकटवर्ती एवं दूरवर्ती व्यक्तियों तथा पदार्थों को प्रभावित कर सकते हैं तथा उन्हें अपनी इच्छानुसार मोड़-मरोड़ सकते हैं।

सम्मोहक विज्ञान के ज्ञाता जानते हैं कि इस विद्या के द्वारा किस तरह शारीरिक और मानसिक चिकित्सा की जाती है और उसका लाभ औषधि उपचार की तरह रोगी को मिलता है। इसी प्रकार प्राणवान व्यक्ति अपनी जीवनीशक्ति का एक अंश दूसरों को देकर उनमें नव-जीवन का संचार कर देते हैं। इसके द्वारा किन्हीं व्यक्तियों को प्रभावित करके उनके चिन्तन एवं चरित्र को मोड़ा जा सकता है, इतना ही नहीं उन्हें स्वास्थ्य, बल, ज्ञान, पराक्रम जैसी विभूतियों से भी लाभान्वित किया जा सकता है।

प्राणचेतना द्वारा मनुष्यों एवं प्राणियों को प्रभावित करने की तरह ही मनोबल के द्वारा पदार्थों को भी प्रभावित किया जा सकता है। उन्हें हटाया, उठाया, हिलाया, गिराया जा सकता है। उनमें अन्य प्रकार की हलचलें एवं विशेषताएँ पैदा की जा सकती है। उनका स्वरूप तक बदला जा सकता है और गुण भी। आग और बिजली की सहायता से पदार्थों के आकार-प्रकार में परिवर्तन हो सकता है, ऐसा मनोबल के संयोग से भी संभव है। कई चमत्कार-प्रदर्शनों में ऐसी घटनाएँ प्रयत्नपूर्वक प्रत्यक्ष की जाती हैं, जिनमें मनोबल ने जड़ पदार्थों में अस्वाभाविक हलचलें पैदा कर दीं अथवा उनके सामान्य क्रिया-कलाप को अवरुद्ध कर दिया। बिना प्रदर्शन के भी ऐसे घटनाक्रम सामान्य जीवनक्रम में घटित होते रहते हैं, जिनमें व्यक्तिविशेष के सम्पर्क अथवा संकल्प के कारण वस्तुओं के स्वरूप एवं क्रिया−कलाप में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गया। विद्युत-प्रवाह की तरह ही यदि मनोबल को भी एक शक्तिधारा माना जा सके, तो फिर उसके द्वारा सम्पन्न होने वाले क्रिया-कलापों को भी आश्चर्यजनक नहीं, वरन् सामान्य ही माना जाएगा।

आग और गर्मी का अन्तर स्पष्ट है। आग प्रत्यक्ष है-स्थूल है। इसलिए उसे आँखों से देखा जा सकता है और इधर से हटाया, जलाया, बुझाया जा सकता है। गर्मी सूक्ष्म है, व्यापक है। इसलिए उसे अनुभव तो किया जा सकता है, पर देखा नहीं जा सकता। उसे हम पकड़ भी नहीं सकते और न ही धकेल सकते हैं। अधिक से अधिक कूलर व वातानुकूलित संयंत्रों आदि के द्वारा अपना कमरा ठण्डा रख सकते हैं, पर गर्मी की ऋतु को बदल देना संभव नहीं। आग स्थूल है, इसलिए जलायी भी जा सकती है और बुझायी भी। बिजली, भाप एवं ईंधन आदि के माध्यम से उत्पन्न होने वाली शक्ति का प्रत्यक्ष प्रयोग रोज ही होता है। इसलिए हम उसे सहज ही पहचानते हैं। मनोबल का सामान्य प्रयोग एक-दूसरे को प्रभावित करने भर का होता है, पर उसे यदि विकसित एवं व्यवस्थित स्थिति में किसी विशेष लक्ष्य के लिए प्रयुक्त किया जा सके, तो प्रतीत होगा कि वह भी कितना शक्तिशाली हैं। उसके आधार पर व्यक्ति को ही नहीं पदार्थों और परिस्थितियों को भी प्रभावित किया जा सकता है।

‘द पॉवर ऑफ माइण्ड’ नामक अपनी कृति में अलेक्जेंडर राल्फ ने प्रमाण प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि प्रगाढ़ ध्यान शक्ति द्वारा एकाग्र मानव मन-शरीर के बाहर स्थित सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। उनका मत है कि सुनिश्चित रूप से इच्छाशक्ति द्वारा स्थूलजगत पर नियंत्रण संभव है। वस्तुतः हमारे मन के दो भाग हैं-एक चेतन और दूसरा अचेतन। अध्यात्म की भाषा में चेतन को बुद्धि और अचेतन को चित्त कहते हैं। चित्त में ही तरह-तरह की आदतें, संस्कार, आस्थाएँ आदि जड़ जमाये बैठी रहती हैं और अविज्ञात रूप से जीवनक्रम का परोक्ष संचालन करती रहती हैं। अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक भी अब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि हमारा अचेतन मन एक सशक्त सुपर कम्प्यूटर की तरह काम करता है और जिस तरह एक कम्प्यूटर की गई ‘फीडिंग’ के अनुसार ही क्रियाशील होता है, उसी तरह अचेतन भी अपनी आहार हमारे विचारों तथा संकल्पों से प्राप्त करता है। इस तरह अचेतन की दिशा मनुष्य की इच्छाओं से प्रभावित होती है। अतः स्पष्ट है कि इस अचेतन पर व्यक्ति प्रयास द्वारा पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर सकता है और तब अभी अलौकिक लगने वाले काम भी कर सकता है। योगाभ्यास एवं तपश्चर्या की सारी विधि-व्यवस्था इसी प्रयोजन के लिए विनिर्मित हुई है। कभी-कभी ऐसे अपवाद भी देखे जाते हैं कि बिना किसी साधना-प्रयास के अचेतन मन का असाधारण विकास पाया जाता है।

विज्ञानवेत्ता भी अब मानने लगे हैं कि व्यक्ति स्वयं अपना विद्युत चुम्बकीय बलक्षेत्र या गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र या आभामंडल विकसित कर सकता है। पर उसका आधार एवं प्रक्रिया अभी तक वे नहीं जान पाये हैं। मनुष्य चलता-फिरता बिजलीघर है। उसका भीतरी समस्त क्रिया-कलाप स्नायु जाल में निरन्तर बहते रहने वाले विद्युतप्रवाह से ही सम्पादित होता है। वैज्ञानिक इसे ही ‘बायोइलेक्ट्रिसिटी’ कहते हैं। बाह्य जीवन में ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की हलचलें होती हैं, उनमें खर्च होने वाली ऊर्जा वस्तुतः यह बायोइलेक्ट्रिसिटी ही होती है। रस, रक्त, मज्जा आदि जैसे रासायनिक पदार्थ तो मात्र उसके निर्माण में ईंधन भर का काम देते हैं।

प्राणशक्ति, संकल्पबल या इच्छा शक्ति द्वारा जड़-पदार्थों में हलचल उत्पन्न करने या उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचा देने के आश्चर्यजनक करतब दिखाने वालों के कितने ही उदाहरण विद्यमान हैं। पूर्व सोवियत संघ की एक महिला सैनिक अधिकारी नेल्या मिखाइलोवा के बारे में विख्यात है कि वह अपनी इच्छाशक्ति से स्थिर रखे जड़-पात्रों को गतिशील कर देती है, चलती घड़ी की सुई को रोक देती है और दुबारा चला देती है। इसकी जाँच मूर्धन्य वैज्ञानिकों द्वारा की गई और उसे सही पाया गया। इसी तरह तेल अवीव में जन्मे यूरीगेलर अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं व इच्छाशक्ति से जड़ पदार्थों में हलचल उत्पन्न करने, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने तथा दुबारा अपने स्थान पर वापस लाने जैसे विलक्षण करतबों के लिए विख्यात रहे हैं। छात्रजीवन में ही यह विलक्षणता उनमें अनायास ही फूट पड़ी थी।

अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों की दृष्टि अब विचारशक्ति की ओर गयी है। शक्ति अर्थात् ऊर्जा के स्रोत, जैसे-परमाणु विद्युत, भाप, प्रकाश, तेल जैसे साधनों में ही अब विचारशक्ति को भी स्थान मिलने जा रहा है। अध्यात्म शास्त्र में तो आरम्भ से ही विचारों को ऐसा समर्थ तत्व माना है, जो न केवल अपने उद्गमकर्त्ता को, वरन् पूरे सम्पर्क क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। इतना ही नहीं, उससे दूरवर्ती एवं अपरिचित प्राणियों तथा पदार्थों तक को प्रभावित किया जा सकता है। टेलीपैथी इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

इस संदर्भ में डबलिन यूनिवर्सिटी के मूर्धन्य वैज्ञानिक सर विलियम वैरेट, इंग्लैण्ड के सोसायटी फॉर साइकिकल रिसर्च के प्रमुख प्रो. सिजविक, लेनिन-ग्राड यूनिवर्सिटी-रूस के शरीरविज्ञानी प्रो. लियोनिद वासिलयेव ने मनुष्य की दूरसंचार क्षमता या विचार-संप्रेषण क्षमता पर गहन अनुसंधान किया है। टेलीपैथी पर प्रयोग कर रहे व्यक्तियों के प्रयोगों को देखा, उन्हें जाँचा-परखा और उन प्रयोगों के पीछे निहित सच्चाई को स्वीकारा है। दूरवर्ती लोगों के मस्तिष्कों को प्रभावित करने में रूसी वैज्ञानिक लियोनिद वासिलयेव ने विशेष सफलता अर्जित की है। दूरसंचार क्षमता का अपना एक प्रयोग उनने एक ऐसे शोध दल पर किया, जो अपने पूर्व में आरंभ किये गये अनुसंधान को छोड़कर उसके प्रति उदासीन हो चुका था। उनने अपने प्रयोगों द्वारा चालू शोध के प्रति धीरे-धीरे उदासीन होने और उसे छोड़कर अन्य शोध में लाने का प्रयोग चालू रखा और उसके सफल परिणाम पर सभी को आश्चर्य हुआ। लियोनिद ने अपना अभिप्राय गुप्त कागजों में नोट करके साथियों को बता दिया था कि वे अमुक शोध मंडली की मनःस्थिति में उच्चाटन उत्पन्न करके अन्य कार्य में रुचि बदल देंगे। कुछ समय में वस्तुतः वैसा ही परिवर्तन हो गया और उस मंडली ने बड़ी सीमा तक पूरा किया गया अपना कार्य रद्द करके नया कार्य हाथ में ले लिया।

श्री डेनियल डगलस होम अपने मनोबल एवं अतीन्द्रिय क्षमता के लिए विख्यात रहे हैं। ‘दि रॉयल एस्ट्रोना-मिकल सोसायटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख वैज्ञानिकों ने डेनियल डगलस की विलक्षण प्रतिभा एवं चमत्कारिक कलाबाजियों का आँखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक व थीलियम तथा गेलियम धातुओं के अन्वेषणकर्ता सर विलियम क्रूक्स ने भी होम का बारीकी से अध्ययन कर उन्हें चालाकी से रहित पाया था।

इन करिश्मों में हवा में ऊँचा उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगारे हाथ में रखना आदि सम्मिलित हैं। सर विलियम क्रूक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायनविज्ञानी थे। उन्होंने भली-भाँति निरीक्षण कर डेनियलडगलस होम की हथेलियों की जाँच की, उनमें कुछ नहीं लगा था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर भी क्रूक्स के देखते-देखते होम ने धधकती अँगीठी से सर्वाधिक लाल चमकदार कोयला उठाकर अपनी हथेली में रखा और देर तक रखे रहे। देखा गया कि उनके हाथ में छाले, फफोले कुछ भी नहीं पड़े।

मूर्धन्य विद्वान लार्ड अडारे ने भी ‘रिपोर्ट ऑफ द डायलेक्टिकल सोसायटीज कमेटी ऑफ स्पिरिचुअलिज्म’ में होम के चमत्कारी करतबों का विवरण दिया है, जो होम की अतिमानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं का होम की इच्छा मात्र से थरथराने लगना, किसी एक पदार्थ-जैसे टेबिल या कुर्सी आदि का हवा में चार-छह फुट ऊपर उठ जाना और होम की इच्छित समय तक वहाँ उनका लटके रहना, टेबिल के उलटने-पलटने के बाद भी उस पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज पेन्सिल का यथावत् बने रहना आदि।

सर विलियम क्रूक्स ने भी एक सुन्दर हाथ के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने, किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बादल बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद सर्द, कभी ऊष्ण और जीवंत लगने आदि के विवरण लिखे हैं।

साधना और तपश्चर्या से दिव्य क्षमताएँ बढ़ती हैं और उससे कितने ही प्रकार के असामान्य कार्य कर सकना संभव होता है। यह आध्यात्मिक उपलब्धियाँ अगले जन्मों तक साथ चली जाती हैं। प्रायः ऐसे ही लोग बिना साधना-तपश्चर्या के भी पूर्व संचित संपदा के आधार पर चमत्कारी क्षमताओं को प्रदर्शित करते देखे जाते हैं। ऐसी विलक्षणताएँ हर मनुष्य के अचेतन मन में विद्यमान हैं, परन्तु वे प्रसुप्त स्थिति में दबी पड़ी हैं। यदि उन्हें कुरेदा, उभारा, बढ़ाया और परिष्कृत किया जा सके तो मनुष्य सूक्ष्म विभूतियों और स्थूल सफलताओं से परिपूर्ण बन सकता है।


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