बड़प्पन की कसौटी

May 1996

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बादशाह के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभरीं, गहरी हुई और थोड़ी देर में एक हलकी सी मुसकान में बदल गयीं। ऐसा लगा कि सोचते-सोचते उसने किसी गहरी समस्या का समाधान खोज लिया। उसकी ख्याति अपने फारस देश में ही नहीं देश-देशान्तरों में भी थी। उसके नाम को न्यायप्रियता के पर्याय के रूप में जाना जाता था। प्रजा के लोग उसकी आज्ञा का पालन करते थे। प्रकृति भी उस देश पर दयावान थी।

उसके तीनों बेटे भी योग्य और आज्ञाकारी थे। वृद्धावस्था आने पर उसने बड़े बेटे को राज-काज सौंप दिया । लेकिन कुछ सोचकर एक बहुत ही बेशकीमती मोती अपने पास रख लिया। इस मोती की कीमत इतनी ज्यादा थी कि इसके बदले राज्य खरीदे जा सकते थे। मन ही मन उसने निश्चय कर लिया था कि यह मोती अपने उस बेटे को देंगे जो सबसे अधिक नेक दिल हो। जिसके विचार सबसे अच्छे और महान हों।

समय - समय पर वह अपने लड़कों की परीक्षा लेते रहते, किन्तु अभी तक वह पूरी तरह से सन्तुष्ट न हो सके थे। बड़ा शहजादा राज-काज में पूरी तरह निपुण था। दोनों भाई पूरे मन से उसकी मदद करते थे। प्रजा पहले से भी अधिक सुखी थी। किसी भी व्यक्ति के साथ अन्यान्य न हो इसका वह स्वयं भी ध्यान रखते थे लेकिन अब उनकी चाहत थी कि जब सब कुछ ठीक चल रहा है तो वे ज्यादा से ज्यादा समय खुदा की इबादत में लगाएँ, पर मोती की चिन्ता इसमें सबसे बड़ी बाधा थी। इस समय भी वे लेटे-लेटे यही सोच रहे थे। अचानक उनके चेहरे पर बिखर आयी मुस्कान से लगता था कि उन्होंने समाधान का कोई सूत्र पा लिया है।

कुछ सोचते हुए उन्होंने अपने बड़े बेटे से सवाल किया, ‘बर्खुरदार, हम जानना चाहते हैं कि पिछले तीन महीनों में तुमने सबसे अच्छा कौन सा काम किया है ? थोड़ी देर सोचने के बाद उसने बताया’ ..... पिछले महीने जब मैं दूसरे शहर जा रहा था तो एक जान पहचान वाले ने हीरों की थैली देकर कहा कि इसे उसके छोटे भाई को दे देना। सच मानिए मेरे मन में जरा भी लालच नहीं हुआ और मैंने वह थैली उसके छोटे भाई को सौंप दी। मैं समझता हूँ इससे सभी को खुशी हुई होगी। उस दिन मुझे भी खुशी हुई थी। मैं सोचता हूँ लालच में न पड़ना इंसानियत की बड़ाई है और मैंने यह काम ईमानदारी से किया। “ बेटे के उत्तर से सुल्तान इब्राहिम के चेहरे पर प्रसन्नता तैर गयी।

दूसरे पुत्र की ओर मुखतिब हो उन्होंने पूछा- “बेटे ! तुमने कौन सा बड़ा काम किया है पिछले तीन महीने में ?” कुछ याद करने की चेष्टा करते हुए उसने बताना शुरू किया- “बात पिछले हफ्ते की है। सुबह-सुबह मैं सैर के लिए नदी किनारे जा रहा था। अभी वहाँ पहुँचा की था कि एक औरत के रोने की आवाज मेरे कानों में पड़ी। पास जाकर पता चला कि उसका बेटा नदी में डूब रहा है और वहाँ बचाने वाला कोई नहीं है। मैं फौरन नदी में कूद गया और उसे बालों से पकड़ कर बाहर ले आया। थोड़ी देर के इलाज के बाद उसके बेटे को होश आ गया। इस औरत ने मुझे लाखों दुआएँ दीं। अपने इस काम से मुझे भी बहुत खुशी हुई।”

“इनसानी जिन्दगी बचाव में तुमने यकीनन बहुत बड़ा काम किया है।” बादशाह ने अपने बेटे की पीठ ठोकते हुए शाबाशी दी।

अब तीसरे शहजादे की बारी थी। वही सवाल बादशाह ने उससे भी किया। कम उम्र के शहजादे ने बड़ी धीरे-धीरे बताना शुरू किया। “ अब्बा हुजूर, एक दिन मैं जंगल में से गुजर रहा था, देखा कि एक आदमी चट्टानों के किनारे गहरी नींद में सोया हुआ है। करवट बदलते ही उसके पहाड़ से गिर जाने का डर था। गिरने पर मौत लाजमी थी। मैं धीरे से पास गया तो देखा कि वह मेरा पुराना दुश्मन जावेद था फिर भी मैंने उसे जगाकर होशियारी करने का इरादा कर लिया। वह घबरा कर उठा, यह जानकर कि मैं उसकी जान बचाने के लिए यहाँ तक आया हूँ, उसने प्यार से मेरे गले में बांहें डाल दी और पुराना दुश्मनी भुलाकर हम दोस्त बन गए। बस, मैंने तो यही छोटा सा काम किया है, जो मुझे आज भी याद है।”

छोटे बेटे की विनम्रता और उसके काम से खुश होते हुए बादशाह ने कहा, “शाबाश बेटे इनसान का बड़प्पन उसकी भावनाओं में है और भावनाओं की पराकाष्ठा दुश्मन की भी मदद करने और उन्हें दोस्त बनाने में है। दुश्मन की जान बचाना वास्तव में बहुत बड़ा काम है। यह कहते हुए उनके चेहरे पर सन्तुष्टि की चमक फैल गयी। वह जिस महानता और नेकदिली को ढूँढ़ रहे थे- वह इसी छोटे बेटे में दिखाई दी।

उन्होंने अपना कीमती मोती इस छोटे बेटे को सौंपने का निश्चय किया। दोनों भाइयों ने भी उसकी बहुत प्रशंसा की। सुल्तान इब्राहिम पाक परवरदिगार का इबादत में लग गए।


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