चमत्कारों की चलती-फिरती पिटारी-मानव

May 1996

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मानवी अस्तित्व विचित्रताओं-विलक्षणताओं का भण्डार है। दिखने में सामान्य सी पाँच-छः फीट की काया और उसमें समाए मन को यदि साध लिया जाय तो कुछ ऐसे बन पड़ता है जिसे जादुई कहा जा सके। हैरी हुडिनी ने अपने जीवन में यही कर दिखाया।

अपने कारनामों से संसार भर की चमत्कृत करने वाले हुडिनी का वास्तविक नाम एरिक वेस था। उनका जन्म हंगरी के बुडापेस्ट शहर में 24 मार्च, 1874 को हुआ था। पिता की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण अपने सभी भाई बहिनों के साथ वे अमरीका में जाकर बस गए।

लगभग पन्द्रह वर्ष की आयु में वह विभिन्न समारोहों तथा मेलों में अपने करतबों का प्रदर्शन करने लगे। इस काम में उन्होंने कई सहायक भी रख लिये। इन्हीं में से बैस नामक युवती के साथ उनकी शादी भी हो गयी।

इसी दौरान उन्हें महान फ्रेंच जादूगर हैरी हुडिनी की आत्मकथा पढ़ने का अवसर मिला। उनके कला कौशल तथा व्यक्तित्व से वह इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम ही हैरी हुडिनी रख लिया। साथ ही उन्होंने इस बात का दावा किया कि वह हर किस्म के बन्धनों से स्वतन्त्र होने की सामर्थ्य रखते हैं।

न्यूयार्क में प्रदर्शन करने के बाद वह लंदन पहुँचे। वहाँ के एलाम्ब्रा थियेटर के मौनेजर को अपनी कला के बारे में बताया । मैनेजर ने उन्हें स्काटलैण्ड यार्ड की हथकड़ियों से आजाद होकर दिखाने के लिए कहा । हुडिनी निःसंकोच स्काटलैण्ड यार्ड के दफ्तर जा पहुँचे। वहाँ के पुलिस अधिकारी को अपना परिचय देते हुए हथकड़ियाँ बाँधने का आग्रह किया ताकि वह मुक्त होकर दिखा सके।

उस अधिकारी ने एक खम्भे के साथ उन्हें बेड़ियों में बाँध दिया। बाँधने के बाद ज्यों ही वह आगे बढ़ा पीछे से हुडिनी भी मुक्त होकर उसके पास आ पहुँचा। अब तो उसके करतबों की शोहरत चारों ओर फैलने लगी। लन्दन के ‘डेली मिरर’ नामक एक अखबार के एक पत्रकार ने उनको चुनौती दी कि वह एक लुहार की पाँच सालों की मेहनत से बनायी गयी हथकड़ियों को खोल कर दिखाए।

हुडिनी ने उसकी चुनौती स्वीकारते हुए चार हजार दर्शकों के विशाल जनसमूह में उन हथकड़ियों को बिना किसी चाभी के पाँच मिनट में खोलकर दिखा दिया। जर्मनी में उनको एक पैकिंग वाले डिब्बे में बन्द करके ऊपर से सील लगा दी गयी। आस-पास खड़े लोग सोच रहे थे कि अब शायद ही वह जिन्दा निकल पाए। पर थोड़ी ही देर बाद वे सबके सब तब हैरत में पड़ गए जब वह कुछ पलों बाद बाहर निकल कर आ गए।

उनकी इस करामात को देखकर आश्चर्यचकित होते हुए एक पत्रकार ने कहा कि हुडिनी में ऐसी अलौकिक ताकत है जिसके जरिये वह अपने जिस्म को तत्वहीन करके किसी भी दीवार से बाहर निकल आता है।

बोस्टन के एक खिलाड़ी की चुनौती स्वीकार करने पर उन्हें एक बार मछली पकड़ने वाले मजबूत जाल में बुरी तरह लपेट दिया गया। लेकिन सवा घण्टे के ही अन्तराल में उसने उस जाल से भी मुक्त होकर दिखा दिया। यही नहीं शर्त हार जाने के कारण उस खिलाड़ी को 6000 डालर की रकम भी उन्हें भेंट करनी पड़ी।

वाशिंगटन की एक जेल में उसे पूरी तरह निर्वस्त्र करने के बाद उसकी तलाशी लेकर एक काल कोठरी में डाल दिया गया। अब जेल अधिकारी निश्चिन्त थे कि किसी तरह का औजार पास में न होने के कारण हुडिनी बाहर न निकल सकेगा। लेकिन आश्चर्य कि न केवल वह स्वयं दो ही मिनट के अन्तराल में उस काल कोठरी से बाहर हो गया, बल्कि खेल ही खेल में उसने 27 मिनट के थोड़े से समय में 18 अन्य कैदियों को उनकी अपनी कोठरियों से निकाल कर दूसरी कोठरियों में डाल दिया।

रूस में उसको स्टील की चादर वाले चौकोर बक्से में बन्द कर दिया गया । इस बक्से की यह खासियत थी कि इसे मास्को में एक चाभी से बन्द करने के बाद, साइबेरिया के गवर्नर के पास मौजूद दूसरी चाभी से ही खोला जा सकता था। साइबेरिया की दूरी मास्को से 3000 किलोमीटर थी। हुडिनी के सारे कपड़े उतरवा कर बारीकी से जाँच पड़ताल करने के बाद बक्से में बन्द कर साइबेरिया की ओर रवाना कर दिया गया। लेकिन केवल 28 मिनट के बाद ही वह बक्से के बाहर हो गया।

उसका प्रत्येक कारनामा जान-जोखिम में डालने वाला होता था। एक बार उसे शराब की तेल गन्ध को सहन न कर पाने के कारण वह अचेत हो गया। लेकिन अचेत होने के पहले वह ड्रम का ढक्कन खोल कर निकल पाने में सफल हो गया था।

एक बार वह इसी तरह जमी हुई बर्फ में छेद करवाकर हथकड़ियाँ बाँधे नीचे उतर गया, ताकि बर्फ के नीचे बन्धन मुक्त होकर दिखा सके। यह कठिन तो जरूर था, पर उसके लिए असम्भव नहीं। हालाँकि वह बर्फ के नीचे पानी में बहते-बहते उस छेद से पर्याप्त दूर चला गया था, पर आठ मिनट के ही बाद वह फिर से उसी छेद के पास आ पहुँचा और हथकड़ियाँ उसके शरीर से गायब थीं।

अपने जीवन में उनके करामाती शो तथा कई फिल्मों में अपने काम का प्रदर्शन करने वाले हुडिनी ने एक बार पत्रकारों को बताया था कि उसके चमत्कारों का रहस्य श्रवास की सिद्धि एवं मन की एकाग्रता में है। इसी को भारतीय योगी प्राणायाम एवं ध्यान कहते हैं। श्रवास की सिद्धि से शरीर को पर्याप्त रूप से फैसला -सिकोड़ा जा सकता है। यही नहीं मजबूत से मजबूत चीजें तोड़ी जा सकती हैं। मन की एकाग्रता के भी कम चमत्कारी परिणाम नहीं होते । इन दोनों की साधना मानवीय जीवन को चमत्कारों की चलती-फिरती पिटारी बना डालती है। असम्भव दिखने वाले काम सहज सम्भव हो जाते हैं।


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