सन्त एकनाथ इन दिनों गृहस्थ थे। परम्परा के अनुसार पितरों का श्राद्ध करना आवश्यक था। पितृ-पक्ष में उन्हें भी वह व्यवस्था करनी थी। परिवार का दबाव भी था। ब्राह्मण दरिद्र के घर घटिया भोजन करने के लिए जाने में आनाकानी करले लगे। उन्हें दक्षिणा मिलने की भी आशा न थी। एकनाथ के अनुनय-विनय पर भी जब ब्राह्मण न पसीजे, तो उन्होंने अछूत बालकों को बुलाकर ब्रह्मभोज करा दिया। इस पर सब ओर चर्चा होने लगी। पितरों ने स्वप्न दिया - अछूत बालकों के द्वारा भोजन मिलने पर बहुत संतुष्ट हैं। विरोधियों का समाधान हो गया।