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August 1996

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धन लक्ष्मी वहीं विराजती हैं, जहाँ दुरुपयोग न होता हो, जहाँ सदैव पुरुषार्थ में निरत रहने वाले व्यक्ति बसते हो । बलि अपने समय के धर्मात्मा राजा था । उनके राज्य में सतयुग विराजता था । सौभाग्य लक्ष्मी बहुत समय तो उस क्षेत्र में रही, पर पीछे अनमनी होकर किसी अन्य लोक को चली गई । इन्द्र को असमंजस हुआ और इस स्थान-परिवर्तन का कारण पूछ ही बैठे । सौभाग्य लक्ष्मी ने कहा-मैं उद्योगलक्ष्मी से भिन्न हूँ । मात्र पराक्रमियों के यहाँ ही उसकी तरह नहीं रहती । मेरे निवास में चार आधार अपेक्षित होते हैं (1) परिश्रम में रस (2) दूरदर्शी निर्धारण (3) धैर्य और साहस(4) उदार सहकार । बलि के राज्य में जब तक यहाँ रहने में मुझे प्रसन्नता थी । पर अब, जब सुसम्पन्नों द्वारा उन गुणों की उपेक्षा होने लगी, तो मेरे लिये अन्यत्र चले जाने के अतिरिक्त और कोई चारा न था ।


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