शान्तिकुँज -प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष

August 1996

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कल्पवृक्ष का अस्तित्व स्वर्गलोक में माना जाता है और कहा जाता है कि उसकी अमुक विधि से पूजा- प्रार्थना करने पर अभीष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । इस अदृश्य एवं रहस्यमय प्रतिपादन में संदेह करने की गुंजाइश है।

किन्तु भूलोक के इस कल्पवृक्ष का अनुभव हर कोई कर सकता है, जिसे शान्तिकुँज कहते हैं। परम पू. गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी ने इसे रोपा, अपनी सम्मिलित तपशक्ति से खाद -पानी देकर इसे बड़ा किया । 25 वर्षों में अब यह इतना बड़ा हो गया है कि समस्त विश्व को इसके शीतल समीर का अहसास होने लगा है। यह अद्भुत है, अनुपम और असाधारण । यह दिव्य भी है और महान भी । इसके अन्तराल में सम्भावनाओं और सिद्धियों के भण्डार भरे पड़े हैं । जरूरत इसकी छाया में बसने और उन्हें उठाने की है।

पू. गुरुदेव के शब्दों में इसी कल्पवृक्ष पर भगवान महाकाल का घोंसला है । यहीं युगांतरीय चेतना का हेडक्वार्टर है । विश्व के नवनिर्माण में लगी समस्त सूक्ष्म-शक्तियों के अभियान के केन्द्रीय कार्यालय यहीं है। हिमालय के दिव्यक्षेत्र में बसने वाली ऋषिसत्ताएँ सूक्ष्म-रूप से यहाँ विचरण करती है। यहाँ आने वाले लोगों के हृदयों में उज्ज्वल प्रेरणाओं का संचार करती है। दिव्य देहधारी देवसत्ताएँ यहाँ आने वाले आर्त्त, कष्टपीड़ित जनों की पीड़ा निवारण कर उनकी मनोकामनाओं को पूरा करती है।

यह देवभूमि सबसे प्रत्यक्ष, सबसे निकट और सबसे वरदायी देवता है । यहाँ के कण-कण में समाया ऋषियुग्म का तप प्राण काले, कुरूप और अनगढ़ लोहे जैसे व्यक्तित्व को खरे सोने में बदल देता है । जीवन की दशा और दिशा आमूल -चूल बदल जाती है। उनके आशीर्वाद का अमुक सिंचन जीवन में नवप्राण भरता है । नयी ऊर्जा का संचार करता है।

कहा जाता है कि कल्पवृक्ष से भी कुछ प्राप्त करने का एक निश्चित विधि -विधान है। शान्तिकुँज भी प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है। इससे वह सब कुछ उपलब्ध हो सकता है, जो कल्पवृक्ष से अभीप्सित है। शर्त एक ही है कि अभीष्ट की प्राप्ति के लिए यहाँ रहकर साधनात्मक दिनचर्या अपनाई जाय । इसकी छाया में रहकर साधना परायण जीवन जीने वालों की झोली मनचाहे अनुदानों -वरदानों से भरपूर हुए बिना नहीं रहती ।


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