अपनों से अपनी बात - युगतीर्थ शाँतिकुँज में ऊर्जा अनुदान पाने के लिए भाव-भरा आमंत्रण

August 1996

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अपने पच्चीस वर्षों में शाँतिकुँज ने न सिर्फ स्थूल कलेवर और दृश्यमान गतिविधियों का विस्तार किया है, बल्कि सूक्ष्म क्षमता भी व्यापक बनाई है। इतने दिनों में इसकी अदृश्य क्षमता और दिव्य शक्तियों का आश्चर्यजनक विस्तार हुआ हैं। यहाँ अपरिमित आध्यात्मिक ऊर्जा संग्रहित हुई है। अपनी स्थापना के प्रथम दिन से ही यहाँ जो आध्यात्मिक प्रयोग सम्पन्न हुए हैं, उनकी झलक पिछले पृष्ठों में दी जा चुकी है। वन्दनीया माताजी के संरक्षण में 24 देवकन्याओं द्वारा सम्पन्न किए गए 24-24 लाख के 24 गायत्री महापुरश्चरण, प्राण प्रत्यावर्तन सत्र, कल्पसाधना सत्र, कल्पसाधना सत्र, चांद्रायण शिविर, संजीवनी, साधना, जीवन साधना सत्र जैसे अनगिन सत्रों से अब तक यहाँ साधक लाभान्वित होते रहे हैं।

अभी तक यहाँ जा साधनाएँ होती रहीं उसमें शाँतिकुँज की भूमिका एक तपः स्थली की थी। यह सिर्फ संस्कारित दिव्य साधना स्थली भर थी पर, अब जबकि पूज्यवर एवं माताजी सूक्ष्म शरीरधारी हो गए- यह शाँतिकुँज उनका स्थूल शरीर बन चुका है। इसके द्वारा वहीं भूमिका सम्पादित होनी है जो कभी गुरुदेव-माताजी का यह निर्माण अब स्वयं निर्माता बन गया है। इस तथ्य को बनाने हुए पूज्यवर के शब्द हैं- “ अभी हम लोगों के शरीर शाँतिकुँज में रहते हैं। पीछे भी हम इस परिसर के कण-कण में समाए हुए रहेंगे इसकी अनुभूति निवासियों और आम...... का समान रूप से होती रहेगी। आगे कि दिनों में शाँतिकुँज ही हमारा स्थूल शरीर होगा। यहाँ से वे गतिविधियाँ, प्रवृत्तियां चलती रहेंगी, जिन्हें हम स्थूल शरीर के माध्यम से चलाते रहते हैं। यहाँ आने वालों को अनुदान, वरदान मिलने एवं मार्गदर्शन प्राप्त करने का सिलसिला भी जारी रहेगा। इसीलिए शरीर परिवर्तन की बात सोचने पर न हमें कुछ खिन्नता होती है और न शाँतिकुँज का वास्तविक स्वरूप समझने वाले अन्य किसी स्वजन परिजन को होनी चाहिए।”

आज के शाँतिकुँज के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने तीस नवम्बर 1989 की एक गोष्ठी में कहा था-”आगे आने वाले दिनों में यहाँ आने वालों को बहुत कठिन साधनाओं के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ना पड़ेगा। उन्हें तुम लोग इतना बताना- अब शाँतिकुँज ही गुरुजी का स्थूल शरीर है, यहाँ की प्रत्येक गतिविधि एवं क्रियाकलाप में उन्हीं का स्पर्श है। शरीर के रक्त प्रवाह एवं प्राण प्रवाह की तरह गुरुजी -माताजी का तप प्राण यहाँ बिखरा हुआ हैं। इसे अपनी हर साँस में धारण करो। हरपल-हरक्षण इसी भाव में रहो कि यहाँ की तप-ऊर्जा रोम-रोम से, साँस-साँस से अन्दर प्रवेश कर रही है।”

यहाँ के संचालन तंत्र ने ऊर्जा अनुदान के इन विशेष साधना सत्रों को वर्तमान रजत जयन्ती वर्ष में आयोजित करने का क्रम चलाया है। अपने प्रयोजन एवं प्रक्रिया के अनुरूप इनका नाम भी ऊर्जा अनुदान सत्र रखा गया है। युग सन्धि के इन क्षणों में असुरता अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। उसे भी महाकाल की सुनिश्चित विधान का पता है पर जिसका अस्तित्व ही समूल नष्ट होने वाला हो, वह भला अपना अन्तिम जार लगाने में क्यों कोर-कसर उठा रखेगा। आसुरी शक्तियों के भी यही हाल है। उनने अन्तिम साँसों में देवत्व के मार्ग पर वज्र प्रहार करने की कसम खा ली है। यही कारण है कि सज्जनता, भलमनसाहत इन दिनों कुछ विशेष ही पीड़ित हैं। नवनिर्माण के अभियान में जुटे युग सेनानियों को भी असंख्य घात-प्रतिघात झेलने पड़ रहे हैं। आज इन सबको पूज्यवर की ऊर्जा अनुदान की जितनी सख्त जरूरत है, उतनी शायद पहले कभी नहीं रही।

पू. गुरुदेव की सूक्ष्म सत्ता का निर्देश पिछली बसंत को इसी रूप में उतरा था और उसे क्रियान्वित भी किया गया। ऊर्जा अनुदान सत्रों की शृंखला अपने अपेक्षित रूप में ही चल रही है। इन सत्रों में साधना एवं प्रशिक्षण दोनों का समावेश है। ध्यान-साधना के प्रभावी प्रयोग के साथ इसमें गायत्री महामंत्र के विलक्षण प्रयोग बताए जाते हैं। जिन दिनों राम-रावण युद्ध अपनी चरम सीमा पर था। रावण अपनी विनाशकारी शक्तियों के प्रयोग में जी-जान से लगा हुआ था। उन्हीं दिनों महर्षि अगस्त्य एवं महर्षि विश्वामित्र के आश्रम की गतिविधियाँ भी पूरे जोर-शोर पर थी। ये दोनों ऋषि अपनी विलक्षण तपशक्ति से रीछ-वानरों का प्रतिपल ऊर्जा अनुदान बाँट रहे थे। इस क्रम में एक बार तो महर्षि अगस्त्य को सूर्यशक्ति का एक विलक्षण प्रयोग बताने के लिए स्वयं रणभूमि में आना पड़ा।

आज भी मानवता को संकटापन्न दशा से उबारने में जुटे युग सेनानियों को ऊर्जा अनुदान की जरूरत है। जिसकी व्यवस्था शाँतिकुँज में की गई है। अब पहले की तरह वर्ष में एक बार आने से काम नहीं चलेगा। उन्हें साल में कम से कम दो बार जरूर आना चाहिए। स्वयं आने के साथ अपने साथ जुड़ने वाले नए परिजनों को भी लाएँ। गुरु सत्ता का स्पर्श, समर्थ प्राणों से महामिलन जितनी बार और जितने अधिक समय तक हो उतना ही अच्छा।

साधना का सुयोग, समर्थ सत्ता का भावपूर्ण स्पर्श, युग-सन्धि की वर्तमान क्षणों के लिए प्रभावी कार्य-नीति का प्रशिक्षण एक साथ प्राप्त हो सकेंगे। ऊर्जा अनुदान के इन सत्रों में आने के इच्छुक व्यक्तियों को पूर्व सूचना भेजकर स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। असमय और अस्त-व्यस्त मनः स्थिति लेकर आने पर प्रभावी प्रशिक्षण एवं साधनात्मक मनोवृत्ति का निर्माण दोनों ही नहीं बन पड़ते हैं। इसलिए हम अस्त-व्यस्तता का जितना दूर किया जाये उतना ही अच्छा। परिजन इन सत्रों को रजत जयन्ती वर्ष का विशिष्ट अनुदान मानें । इनका स्वरूप भले उतना कठोर व बनाया गया हो, पर इनसे होने वाले लाभों को चमत्कारी और आश्चर्यचकित करने वाला ही कहा जाएगा। समर्थ शक्ति उद्गम से ऊर्जा का अनुदान पाने वाले आत्मकल्याण और लोककल्याण के लिए कुछ ऐसा कर सकेंगे जो युगों तक भुलाया न जा सके।

*समाप्त*


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