गायत्री जयन्ती-जून, 1985
यह संदेश परम पूज्य गुरुदेव ने वीडियो टेप के माध्यम से अपनी हीरक जयन्ती के अवसर पर गायत्री जयन्ती-जून, 1985 में दिया था।
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियों! भाइयों! यह समय इस तरह का है जिसको सामान्य नहीं, असामान्य कहना चाहिए। यह युग संधि का समय है तो आप जानते हैं कि कुछ-न-कुछ हेर’-फेर अवश्य होता है। जब बच्चा पैदा होता है और पेट में से निकलकर बाहर आता है, तो कितनी पीड़ा होती है। पुराना युग जा रहा है और नया युग चला आ रहा है। ऐसे समय में दो काम होते हैं-एक बनाव होता है। परिवर्तन की इस संधिवेला में बिगाड़ क्या होने वाले हैं? बिगाड़ क्या होने वाले है? बिगाड़ वे होने वाले हैं जिनके बारे में बाइबिल में कहा गया है- “सेवन टाइम आयेगा और दुनिया तबाह हो जायेगी।” जिसके बारे में इस्लाम धर्म के कुरान शरीफ में कहा गया है- “चौदहवीं सदी आयेगी और दुनिया तबाह हो जायेगी।” भविष्य पुराण में यह लिखा हुआ है- “दुनिया उस मोड़ पर आयेगी जहाँ पूर्णतया तबाह हो जायेगी।” यह तबाही का भी समय है और बनाने का भी समय है। यह युग परिवर्तन का समय है। संधिकाल का समय है।
संधिकाल में निर्माण और ध्वंस के कार्य साथ-साथ चलते हैं। इन दिनों भी एक ओर निर्माण हो रहा है तो दूसरी ओर निर्माण हो रहा है तो दूसरी ओर बिगाड़ हो रहा है। मकान बनाना होता है तो नींव खोदने वाले नींव खोदते जाते हैं। और चिनाई करने वाले चिनाई करते जाते हैं। एक तरफ खोदने का काम शुरू होता है और दूसरी ओर उसको बनाने का भी काम शुरू हो जाता है। इन दिनों भी बनाने और बिगाड़ने के दो काम एक-साथ शुरू हो रहे हैं और इन शुरू हो रहे कामों के समय पर कोई एक बड़ी जरूरत पड़ती हैं। बच्चा जब पैदा होता है तो दाई की जरूरत पड़ती है- डाक्टर की नर्स की जरूरत पड़ती है। देखभाल करने के लिए और लोगों की जरूरत पड़ती है। इसी तरह बदलते हुए समय में बहुत -सी देखभाल करने की आवश्यकता है। बड़े बिगाड़ जो होने वाले हैं। आपको मालूम नहीं है कि ‘नेचर’ नाराज हो गई है। ‘नेचर’ के नाराज होने की वजह से कहीं बाढ़ आती है, कहीं अतिवृष्टि होने लगती है, तो कहीं सूखा पड़ने लगता है। कहीं तूफान आ जाते हैं क्या होता है तो कहीं क्या? हर तरह से नेचर हममें नाराज हो गयी है कि जो नई पीढ़ियाँ पैदा होती हैं, नये बच्चे पैदा होते हैं, ऐसे कुसंस्कार जन्म से ही लेकर आते हैं कि न तो माँ का कहना मानते हैं, न बाप का कहना मानते हैं, न मास्टर का कहना मानते हैं। जरा-जरा-सी उमर से ही जाने क्या-क्या खुराफातें करना शुरू कर देते हैं। यह सब खराब वातावरण का प्रभाव है।
इससे बचने के लिए वातावरण को परिशोधित करने के लिए हमने कुछ काम करना शुरू कर दिया है। कुछ तो का हमने अपने जिम्मे लिए हैं और कुछ काम आपके जिम्मे किए हैं। हमने अपने जिम्मे क्या लिया है? हम एक उस तरह की तपश्चर्या कर रहे हैं, जिस तरह की भगीरथ ने की थी। भगीरथ ने तपस्या की तो क्या हुआ? गंगा स्वर्ग लोक में रहती थी। उनकी तपश्चर्या से जमीन पर आयीं। गंगा जब जमीन पर बहीं तो तमाम जगह हरियाली हो गयी, पेड़ पैदा हो गये, बगीचे पैदा हो गये गेहूँ पैदा हो गया। इस तरह भगीरथ ने जिस तरीके से तप किया था, ठीक उसी तरीके से एक तप हम भी कर रहे हैं। एक और समय ऐसा था, जब दैत्यों ने देवताओं को मारकर भगा दिया था और देवता बेचारे मारे-मारे फिर रहे थे। दैत्यों ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। देवता ब्रह्माजी के पास पहुँचे । उन्होंने कहा-