विशाखा सन्त के रूप में प्रख्यात हुई (Kahani)

October 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नगर सेठ अनंगपाल जितने मृदुल स्वभाव के थे, उनकी पत्नी बिंदुमती उतनी की कर्कशा। इस कर्कशता का परिणाम यह होता कि कोई नौकरानी उनके पास टिकती नहीं थी। इतने बड़े घर की साज सँभाल उनसे अकेले होती नहीं थी। तब उनका क्रोध पति पर बरसता।

संयोगवश एक सेविका ऐसी मिली, जिसने कर्कशता के बीच जीवन गुजारा, घबराई नहीं, वरन् सुधार के बाद तक दृढ़तापूर्वक रुकी ही रही। सब कुछ ठीक होने पर ही वह अन्य ऐसे ही घर को सुधारने के लिए नया आश्रय ढूँढ़ते-ढूँढ़ते नगर सेठ के यहाँ पहुँची। आवश्यकता थी ही, सो तुरन्त नियुक्ति मिल गयी। सेविका की श्रमशीलता और मृदुलता ने गृहस्वामिनी का मन जीत लिया और न केवल व्यवस्था ही बनाई, वरन् स्वभाव भी बदल दिया।

काम पूरा हुआ, तो विशाखा अन्यत्र किसी कर्कशा गृहिणी के परिवार में आश्रय पाने के लिए निकली। गृह-स्वामी और सेठ उसे सभी सुविधा और साधन देते थे। फिर भी विशाखा मानी नहीं, उसने दूसरा वैसा ही घर तलाशा, जहाँ कलह और दारिद्रय का बोलबाला हो।

इस अद्भुत प्रकृति के बारे में पूछने वालों को विशाखा एक ही उत्तर देती-प्रवचन द्वारा धर्मोपदेश करने की अपेक्षा विपन्न लोगों के साथ रहकर उन्हें अपनी सदाशयता के सहारे सुधार लेना अधिक उपयुक्त है।

विशाखा के गुणों और उपदेशों की सर्वत्र चर्चा हुई। अन्ततः वह ब्रह्मावर्त क्षेत्र में प्रसिद्ध सन्त के रूप में प्रख्यात और सम्मानित हुई।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118