वेदों के उद्धार हेतु प्राणवान परिजन आगे आयें

October 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संसार में जितने भी धर्म-सम्प्रदाय आज हैं, उनमें वैदिक धर्म सबसे पुराना है। यदि एक दृष्टि से देखें तो जितने भी सम्प्रदाय स्थापित हैं, उनका उद्गम उस धर्म के मूल ग्रंथ को ही माना गया है। इस्लाम धर्म की स्थापना कुरान शरीफ से, ईसाई धर्म न्यू टेस्टामेंट से, यहूदी धर्म ओल्ड टेस्टामेंट से, पारसी धर्म जिन्दावेस्ता से, बौद्ध धर्म त्रिपिटक से तथा सिक्ख धर्म गुरु ग्रंथ साहब की संरचना से स्थापित माना जाता है। इन सभी ग्रन्थों के प्रति इनके अनुयायी असीम श्रद्धा का भाव रखते हैं तथा उनको विधिवत् व्यवस्था के साथ पाठ के पश्चात् श्रद्धाभाव से इन्हें रखते हैं। समय-समय पर उत्सव आयोजन भी किये जाते हैं, झाँकियाँ निकाली जाती हैं व उन सम्प्रदायों के लोग उन्हें पूजते हैं। इन धर्म-सम्प्रदायों का निरन्तर विकास और अभिवृद्धि इसी आधार पर हो रही है।

वैदिक धर्म की-हिन्दू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई है, जिन्हें अपौरुषेय कहा जाता है। यह एक दुर्भाग्य ही है, घोर विडम्बना ही है कि इसके मूलभूत धर्मग्रन्थ वेद जो ज्ञान और विज्ञान के रत्न केवल अगाध भाण्डागार समझे जाते है, प्रत्युत सारे संसार के प्राचीनतम ग्रंथ होने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है, उन्हें प्रायः बहुसंख्य लोगों ने भुला दिया है, उनकी स्मृति पुरातत्वावशेष जितनी मात्र रह गयी है। जिस आदिकालीन संस्कृत भाषा में उन्हें लिखा गया, उसे अब विज्ञान ने भी कम्प्यूटर से भी श्रेष्ठतम, विज्ञान सम्मत मान्यता प्रदान कर दी है। वस्तुतः देवशक्तियों से सम्पर्क सीधे स्थापित करने का यदि कोई माध्यम हो सकता है तो वह वैदिक ऋचाएँ ही हैं। हमारे ऋषिगणों ने इन्हें रचा ही इसलिए था कि ये वैदिक स्तुतियाँ मानव व देवलोक में सम्पर्क स्थापित करने का माध्यम बनें। वैदिक सूत्रों में जो वैज्ञानिकता पायी जाती है, वह संसार के अन्य किसी ग्रन्थ में नहीं देखी जाती। इन सबके बावजूद हमने इन्हें न केवल विस्तृत कर दिया अपितु, उपेक्षा के गर्त्त में डाल दिया है। आज यदि किसी हिन्दू से प्रश्न किया जाय कि, हिन्दुओं के आदि ग्रंथ क्या है तो उनका कोई सुनिश्चित उत्तर नहीं है-गीता भागवत्, रामायण में से किसी को भी आदि ग्रंथ बता देते हैं। ये भी सबके घर में होना जरूरी नहीं। किसी के पास माहात्म्य पाठ है तो किसी के पास चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सहस्र नाम आदि अर्थात् वेदों की गरिमा का भान न होने से कोई भी हिन्दू अपने आदि ग्रंथ को वह सम्मान नहीं देता जो अन्यान्य धर्मानुयायी देते आये हैं व अभी भी देते है। जिन्हें यह मालूम है कि हमारे आदि ग्रंथ मूलतः वेद हैं, जरूरी नहीं कि उन्हें चारों वेदों का ही नाम पता हो, सही उच्चारण वे कर सकते हों। जो लाभ हमारे ऋषिगणों ने उनके अध्ययन-अनुशीलन से पाया था, उसकी बात तो कोसों दूर है।

कभी किसी राजकुमारी ने यह गुहार लगायी थी कि कोई है ऐसा वीर पुरुष जो इन वेदों का पुनरुद्धार करेगा? (को वेदान पुरनद्धसि?) तो एक व्यक्ति निकलकर आया था, जिसका नाम था कुमारिल भट्ट। भले ही गुरुद्रोह करके उसने वेदों को पुनर्जीवित किया हो ताकि यह परम्परा नष्ट न होने पाये, प्रायश्चित स्वरूप स्वयं को अग्नि में भी जला डाला एवं बलिदानियों की परम्परा में एक नया इतिहास लिख डाला। आज भी यही प्रश्न पुनः आ खड़ा हुआ है, जब मध्यकाल में हमारी संस्कृति पर हुए आक्रमण, अंधकार युग व पाश्चात्य सभ्यता के आज के युग में अंधानुकरण ने हमारी जड़ों पर कुठाराघात कर हमारी आर्य विरासत को लगभग बन्दीगृह में डाल दिया है। इस बन्दीगृह से निकालकर इसे जन-जन तक पहुँचाना हमारा आपका सबका कर्तव्य है। परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने हर बालक को महामानव बनाने वाले, आत्मसूत्र का परमात्म सत्ता का ज्ञान कराने वाले इस वैदिक ज्ञान को आज से पैंतीस वर्ष पूर्व सर्वसुगम सुबोध भाष्य द्वारा सरल हिन्दी में प्रस्तुत किया था। तब से अब तक इसके कई संस्करण छप चुके। उन्हीं के निर्देशानुसार परम वन्दनीय माताजी ने उन्हें विज्ञान की अद्यतन उपलब्धियों के समायोजन के साथ उन्हें आठ जिल्दों में सरल हिन्दी व वैज्ञानिक टिप्पणियों के साथ विगत दो वर्षों में सम्पादित प्रकाशित किया। अब चारों वेद ऋग्वेद(चार जिल्दों में), अथर्ववेद (दो जिल्दों में) तथा यजुर्वेद व सामवेद (एक-एक जिल्द में) सबके लिए प्रथम पूर्णाहुति तक उपलब्ध है। इनका मूल्य छह सौ रुपये है। किन्तु श्रीमन्तों से प्रार्थना की गयी है कि हर हिन्दू के घर ये स्थापित हो सकें, इसके लिए उन्हें जो इतने समर्थ नहीं हैं आधी कीमत पर तीन सौ रुपये में स्थापित करायें। जो पूरा मूल्य दे सकने की स्थिति में हो, वे सम्पूर्ण मूल्य देकर अपने घरों में वेद स्थापना संस्कार करायें।

इन वेदों की स्थापना विधिवत् एक शास्त्रीय कर्मकाण्ड के साथ की जाये, इसके लिए शान्तिकुञ्ज द्वारा यह अभियान चलाया जा रहा है। सभी परिजन अपने घरों में तो यह स्थापना करायें ही, औरों, श्रीमन्तों, सम्पन्नों के घरों अथवा सामान्य आजीविका वालों के घरों में भी इसे करायें। इसके लिए शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार से सम्पर्क स्थापित कर नवम्बर के प्रथम सप्ताह में होने वाली प्रथम पूर्णाहुति में इन वेदों के सभी खण्डों की प्राप्ति की व्यवस्था बनायें। यहीं पर विराट रूप में वेद स्थापना संस्कार कराने का निश्चय किया गया है। इस ऋषियों द्वारा प्रणीत ब्रह्मकर्म में सभी सम्मिलित होंगे, इस प्रत्यक्ष ब्रह्मभोज में सभी भाग लेंगे, यह अभिलाषा महाकाल की सत्ता की है। आशा है इसे सभी पूरी करने की यथा शक्ति प्रयास करेंगे।

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118