पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हुआ (Kahani)

October 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कुशी नगर का राजा लोगों के पुण्य खरीदने के लिए प्रसिद्ध था। उसने तराजू लगा रखी थी। पुण्य बेचने वाले अपनी ईमानदारी की कमाई का विवरण लिखकर एक पलड़े में रखते। उस कागज के अनुरूप तराजू स्वयं स्वर्ण मुद्राएँ देने की व्यवस्था कर देती।

जय नगर पर शत्रुओं का आक्रमण हुआ और वहाँ के राजा को स्त्री-बच्चे समेत रात्रि के अँधेरे में भागना पड़ा। पास में कुछ न था। वे मार्ग व्यय तक के लिए कुछ साथ लेकर न चल सके।

दूर पहुँचने पर एक वृक्ष की छाया में बैठकर राजा-रानी विचार करने लगे कि अगले दिनों उदरपूर्ति किस प्रकार होगी? रानी ने सुझाया आपने जीवन भर बहुत दान-पुण्य किया था, उसी में से थोड़े से कुशी नगर नरेश को बेचकर धन प्राप्त कर लिया जाय।

राजा सहमत हो गये, पर भूखे पेट कुशी नगर तक पहुँचा कैसे जाये? रानी को एक उपाय सूझा बोली-ग्रामीणों के घरों में जाकर आटा पीसूँगी और नित्य के खाने में से जो बचेगा उसे जमा करती जाऊँगी। राजा रोटी बनायेंगे।”

राजा उस दिन रोटी सेंक रहे थे। कई जगह से अपने हाथ जला भी चुके थे। भोजन के पूर्व ही एक भिखारी वहाँ आ पहुँचा। उसने जब क्षुधित मुद्रा में रोटी माँगी, तो राजा हतप्रभ रह गए। अगर यह भी दे दिया, तो खाएँगे क्या? खाएँगे नहीं, तो दूसरे राज्य कैसे पहुँचेंगे?

रानी मदद को सामने आयीं। बोलीं-हम एक दिन और भूखा रह लेंगे, पहली वरीयता इसकी है। रानी की सलाह पर राजा ने सारी रोटियाँ उसे दे दीं व पूरा परिवार आगे चल पड़ा भूखे पेट।

मार्ग व्यय के लायक आटा हो गया, तो उसे लेकर राजा बनाते-खाते दस दिन में कुशी नगर पहुँचे। राजा को अपना अभिप्राय सुनाया। उत्तर मिला-धर्म काँटे पर चले जाइये, जो ईमानदारी का कमाया हो, उसे एक पलड़े में रख दीजिए। काँटा आपको उसी आधार पर स्वर्ण मुद्राएँ दे देगा।

जय नगर राजा ने अपने पुराने पुण्य स्मरण किये और उनमें से कई विवरण काँटे के पलड़े में रखा, पर उससे कुछ भी न मिला। उपस्थित पुरोहित ने कहा-आपने परिश्रमपूर्वक जो कमाया और दान किया उसी का विवरण लिखें।”

राजा को पिछले दिनों भिखारी को दी हुई रोटियाँ याद आई। उनने उसका ब्यौरा लिखकर तराजू में रखा। दूसरे पलड़े में उसके बदले में सौ स्वर्ण मुद्राएँ गिन दीं।

पुरोहित ने कहा-उसी दान का पुण्य फल होता है, जो ईमानदारी से परिश्रमपूर्वक कमाया गया हो।”

राजा ने रानी की उस दिन की सलाह को, परोपकार वृत्ति को धन्यवाद दिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हो सका व प्रतिफल मिल सका।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118