शिष्य की विनयशीलता (Kahani)

October 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

देश विदेश के पण्डितों का एक शास्त्रार्थ हुआ। राजा ज्ञानसेन इसी बहाने विद्वानों का सत्कार करते थे। धन और मान सभी को मिलता था। पर शास्त्रार्थ में जो विजयी होता था, उसके मार्गदर्शन में अन्यान्यों को चलना पड़ता था। उन दिनों अपनी-अपनी हाँकने और मत-मतान्तर खड़े करने की एक प्रकार से प्रथा-सी चल पड़ी थी।

उस शास्त्रार्थ समारोह में विद्वान् भारवि विजेता घोषित किए गए। उपस्थित विद्वानों ने नेतृत्व स्वीकार किया।

विजेता का सम्मान प्रदर्शित करने के लिए राजा ने उन्हें हाथी पर बैठाया और स्वयं चँवर डुलाते हुए उनके घर तक ले गये। भारवि जब इस सम्मान के साथ घर पहुँचे, तो उनके माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।

घर लौट कर सर्वप्रथम उनने अपनी माता को प्रणाम किया। पिता की ओर उपेक्षा भरा अभिवादन भर कर दिया।

माता को यह अखरा। झिड़क कर साष्टांग दण्डवत् के लिए संकेत किया, उनने उसका भी निर्वाह कर दिया। पिता ने सूखे मुँह से “चिरंजीव” भर कह दिया।

बात समाप्त हो गयी, पर माता और पिता दोनों ही खिन्न थे। उन्हें वैसी प्रसन्नता न थी, जैसी कि होनी चाहिए थी। गुरुकुल से लौटे हुए छात्र जिस शिष्टाचार से गुरु का अभिवादन करते थे और गुरु जिस प्रकार छाती से लगाकर शिष्य के प्रति आत्मीयता भरा आशीर्वाद प्रदान करते थे, उसका सर्वथा अभाव था। राजा द्वारा हाथी पर बिठाकर चँवर डुलाते हुए घर तक लाने का अहंकार जो था भारवि को। इसमें उसने शिष्टाचार को, विनम्रता को भुला दिया था। मात्र चिह्न पूजा भर की।

पिता की मुख मुद्रा पर खिन्नता देखकर, भारवि माता के पास कारण पूछने गए।

माता ने बताया। विजयी होने पर लौटने के पीछे, तुम्हारे पिता की कितनी साधना थी, यह तो तुम भूल ही गये। शास्त्रार्थ के दसों दिन उन्होंने जल लेकर सफलता के लिए उपवास किया और इससे पूर्व पढ़ाने में कितना श्रम किया, इसका तो तुम्हें स्मरण ही नहीं रहा। विजय की अहंता तुम्हारे चेहरे पर झलकती है और अभिवादन में चिह्न पूजा भर का शिष्टाचार था।

भारवि को अपनी भूल प्रतीत हुई। विद्वत्ता का अहंकार गल गया और एक शिष्य एवं पुत्र का जो विनय होना चाहिये, वह उदय हुआ।

माता की आँखों में आँसू आ गये। उनने कहा-वत्स तुम्हारी विजय के पीछे पिता की साधना है, उसे विस्मरण मत करो। विद्वत्ता की विजय के पीछे शिष्य की विनयशीलता का विस्मरण नहीं होना चाहिए।”


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118