सामूहिक प्रार्थना के चमत्कारी सत्परिणाम

October 1995

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एकांकी और सामूहिक प्रयत्नों की सफलता के स्तर में भारी अन्तर रहता है। अलग-अलग रहकर दस आदमी अलग प्रयत्नों से जितना काम कर सकते हैं, उनकी तुलना में उन दसों का संयुक्त प्रयत्न कहीं अधिक परिणाम उत्पन्न करेगा। अलग-अलग रहकर सींकें उतनी सफाई नहीं कर सकतीं जितनी कि उन्हें मिलाकर बनने वाली बुहारी द्वारा संभव होती हैं। ठीक इसी प्रकार अलग-अलग की जाने वाली उपासना व्यक्ति एवं वातावरण को परिष्कृत करने में जितनी उपयोगी सिद्ध होती हैं उसकी तुलना में एक संकल्प सूत्र में आबद्ध होकर एक तत्त्वावधान में ही गई साधना का प्रभाव कहीं अधिक होता है। सामूहिक प्रयास,सत्संग, कथा, कीर्तन, यज्ञानुष्ठान, परिक्रमा, तीर्थ यात्रा आदि की क्षमता सामान्य गणना में कहीं अधिक होती है।

शब्द शक्ति का संयुक्त समावेश कितना प्रभावी होता है, इसका एक प्रमाण तब मिलता है जब किसी भारी वजन को ऊपर उठाने या आगे धकेलने के लिए मजदूर लोग एक नारा लगाकर, एक साथ अपनी सामर्थ्य को केन्द्रित करते हैं। प्रातः सायं मंदिरों में होनेवाली आरती, विद्यार्थियों की सामूहिक प्रार्थना में भी यही विशेषता रहती है कि संयुक्त मन, संयुक्त भाव प्रवाह से यही विशेषता रहती है कि संयुक्त मन, संयुक्त भाव प्रवाह से उत्पन्न शब्द शक्ति उच्चारण कर्ताओं से लेकर अन्य असंख्यों के समग्र वातावरण को प्रभावित करने में विशेष रूप से फलप्रद होती है।

ध्वनि शक्ति के संदर्भ में जो शोध कार्य वैज्ञानिक क्षेत्रों में चल रहा है, उससे सामूहिक उच्चारण की प्रतिक्रिया के संबंध में नये तथ्य सामने आये हैं। एक निष्कर्ष यह निकला है कि संसार के 50 प्रतिशत व्यक्ति भी यदि सक्रिय हों तो वे शब्दों तथा ध्वनियों द्वारा 3 घण्टे में 6 हजार खरब वॉट विद्युत शक्ति पैदा करते हैं, जो भारत में पैदा की जाने वाली कुल ऊर्जा से 8 गुना ज्यादा है। सम्पूर्ण विश्व में इस ऊर्जा से घण्टों प्रकाश किया जा सकता है।

साधारणतया वाणी का उपयोग बातचीत के एवं जानकारियों के आदान-प्रदान हेतु ही होता है। यह उसका अति स्थूल प्रयोग है। शब्द की सूक्ष्म शक्ति और उसके उपयोग की विधि जानी जा सके तो उससे जितने गुना लाभ आमतौर से उठाया जाता है, उससे असंख्य गुना उठाया जाना सम्भव हो सकता है।

शब्द से जुड़ा विद्युत प्रवाह कितना प्रचण्ड है, इसे पदार्थ विज्ञानवेत्ता जानते हैं और उसी ज्ञान के आधार पर रेडियो, टेलीविजन, राडार आदि यंत्रों का निर्माण करते हैं। आज इसी शब्द शक्ति के आधार पर शरीर की विभिन्न गहन पर्तों में छुपी व्याधियों का निदान भी सम्भव है। ............................... द्वारा प्रतिध्वनि प्राप्त कर मस्तिष्क की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है तो उसी तरह इको कार्डियोग्राम द्वारा हृदय की व्याधियों का। आवाज मुँह से निकलने वाली हवा मात्र ही नहीं है। वह एक शक्तिशाली ऊर्जा (एनर्जी)की तरह है।

उच्चारित शब्द कान व त्वचा वर सीधा प्रभाव डालते हैं। कान एक प्रकार का माइक्रोफोन है जिसमें 02 से 20000 आवृत्तियों का प्रवेश होते ही एक धारा प्रवाहित होने लगती है। सीधे मस्तिष्क तक पहुँचकर यह शरीर के सभी भागों एवं ग्रंथियों को क्रियाशील बना देती है। मनुष्य शरीर, विचारणा एवं भाव स्थिति की त्रिविधि क्षमताओं का समन्वय करके जो विद्युत प्रवाह प्रस्तुत होता है, उसकी क्षमता को अध्यात्म .................. ने समझा है उसी आधार पर .................. का आविष्कार किया है।

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शब्दोच्चारण होता है उनका सीधा सम्बन्ध मानव शरीर के सूक्ष्म संस्थानों से है। षट्चक्र, उपात्मक एवं दिव्य नाड़ियों, ग्रन्थियों का सूक्ष्म संस्थान है, जिनसे हमारे मुख्य यंत्र के तार जुड़े हुए है। जब मंत्र गुंफनों का प्रभाव उक्त संस्थानों पर पड़ता है तब एक अतिरिक्त शक्ति तरंगों का प्रवाह चल पड़ता है। जो मंत्र विज्ञानी को लाभान्वित करता है, उसकी प्रसुप्त क्षमताओं को जगाता है। जब वे कम्पन बाहर निकलते हैं तो वातावरण को प्रभावित करते हैं। ये कम्पन सूक्ष्म जगत में अभीष्ट परिस्थितियों का सृजन करते हैं और व्यक्ति विशेष को प्रभावित करना हो तो उस पर भी असर डालते हैं।

भारतीय संस्कृति के प्राचीन ग्रन्थों में शब्दों की इन्हीं प्रक्रियाओं को ध्यान में रखकर विविध शब्द प्रक्रियाओं का विधान किया गया है। आज के वैज्ञानिक युग में यह सब मनोवैज्ञानिक युद्ध यानी “साइकोलॉजीकल वार” (या स्रावयिक युद्ध) के अंतर्गत आता है।

इसी शब्द शक्ति का उपयोग करके पिछले दिनों कनाडा के उत्तरी भाग में हजारों वर्ग मील के क्षेत्र में सोवियत रूस द्वारा रोगवर्धक तरंगें फैलाई गयी थीं। जिनसे वहाँ के निवासियों में चिड़चिड़ापन, मानसिक तनाव, डिप्रेशन, आत्महत्या की वृत्ति देखने में आयीं। विश्लेषण करने पर मालूम हुआ कि किसी स्थान विशेष से तरंगें छोड़ी जा रही हैं जो किन्हीं निश्चित आवृत्तियों में होने से मानसिक क्षमताओं पर ऐसा प्रभाव छोड़ रही है। इस तरह शब्द शक्ति का दुरुपयोग कर ‘साउण्ड वार’ भी आरम्भ हो गया है। दूसरी ओर चिकित्सकों ने ध्वनि विज्ञान का सहारा लेकर साउण्ड थेरेपी नामक एक नयी ही चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया है जिससे शरीर के विभिन्न भागों में दर्द आदि कष्टों का इलाज किया जाता है। ध्वनि के कम्पनों द्वारा परमाणु को सूक्ष्मतम भागों में विभाजित करना अब सम्भव है। इन सबके मूल में हमारे ऋषि मनीषियों द्वारा प्रतिपादित मंत्र शक्ति है जिसमें ध्वनि विज्ञान का आश्रय लेकर सूक्ष्म संस्थानों व वातावरण को प्रभावित किया जाता है।

पाश्चात्य देशों में शब्द-शक्ति के एक रूप को सम्मोहन (हिप्नोटिज्म) और आत्म परामर्श (आटो सजेशन) की संज्ञा प्रदान की गई है। प्रसिद्ध रूसी मनोवैज्ञानिक आई. पी. पावलोव ने शब्दों को अत्यन्त शक्तिशाली अनुकूलित प्रतिवृत्त (उत्तेजक) कण्डीशण्ड रिपलेक्स की संज्ञा दी है। शब्द शक्ति पर पावलोव ने विशद कार्य किया है, जो विश्व प्रसिद्ध है। शब्द शक्ति का महत्व वैज्ञानिक जानते हैं व उसे उपयोग में भी अब लाने लगे हैं। यदि यह सब संभव है तो मंत्र विद्या की सामर्थ्य को समझकर हम उसका समुचित उपयोग कर भौतिक उन्नति से कम नहीं बल्कि कई गुनी अधिक लाभदायक आध्यात्मिक उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं।

यह शब्द शक्ति तब और भी अधिक प्रखर हो उठती है जब उसका भावनात्मक तारतम्य एवं उच्चारण का प्रवाह सामूहिकता को अपना ले। वेद मंत्रों को सामगान के स्वर क्रम में गाने वाले उद्गाता अपने उपक्रम से चमत्कारी परिणाम उत्पन्न करते हैं। यज्ञानुष्ठानों में भी यही शब्द सहकार एक महत्वपूर्ण तथ्य होता है और उसका प्रभाव भी असाधारण ही होता है।


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