परिवर्तन की और गतिशील सोवियत रूस
इन दिनों समाचार पत्रों पर दृष्टि डालें तो प्रतीत होगा कि परिवर्तन की एक विश्वव्यापी लहर तेजी से कालचक्र को गतिशील बना रही है। उदाहरण के लिए अफगानिस्तान से फरवरी 89 के अन्त तक रूसी सेनाओं की वापसी को प्रथम चरण के रूप में देखा जा सकता है। विगत 8 वर्षों से टिकी इस सेना जिसका संख्या 15000 से अधिक थी को अफगानिस्तान में डटे देखकर लगता था कि कहीं वह भी एक वियतनाम न बन कर रह गया किन्तु यू.ए.एस.आर. के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचेव को श्रेय जाता है कि उनने प्रतिष्ठा का प्रश्न न बना कर अपने सैनिक वापस बुला लिए।
दो और सराहनीय कदम
इसी श्रृंखला में श्री गेर्वाचेय के दो कदम और प्रशंसनीय हैं व लगता है कि इस विश्वनेता की पेरेस्नोइका व ग्लासनोस्ट की नीति क्रमशः पूरे विश्व में तनाव मुक्ति का वातावरण बनाएगी। एक कदम है- मंगेलिया व चीन से लगी अपनी सीमा पर सुरक्षा हेतु तैनात दो लाख से अधिक सैनिक को वापस बुलाकर बैरकों में न भेजकर रचनात्मक कार्यों में लगा देना ताकि रूस से गरीबी हटे व सुरक्षा व्यय कम हो। इस संबंध में चीनी नेताओं के साथ एक संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर 18 मई 1989 को इनने एक इतिहास लिख डाला।
दूसरा कदम है अमेरिका की धुड़की से न डरने वाले पश्चिमी जर्मनी के चाँसलर हेलमट कोहल से वह समझौता करना कि वे यूरोप के मोर्चे से हथियारों की कटौती क्रमशः उसी अनुपात में करते जायेंगे, जिस अनुपात में श्री कोहल करेंगे। यह एक क्रान्तिकारी कदम है। इस नाते कि श्री कोहल अमेरिका की अगुआई में बने मोर्चे नाटो सदस्य देश के प्रमुख हैं, द्वितीय विश्वयुद्ध की मुख्य रणभूमि ए जर्मनी के प्रमुख हैं एवं अब अमेरिका के इच्छा के विपरीत संभावित विनाश से राष्ट्र को बचाने के लिए इस संधि पर राजी हो गए हैं, कि हथियारों में तेजी से कटौती कर तनावमुक्ति का माहौल बनायेंगे। प्रेरणा श्री गोर्वाचेय की रही है व क्रियान्वयन श्री कोहला का।
प्रजातंत्र लाने हेतु अहिंसक आंदोलन बीजिंग के छात्रों द्वारा
कभी असंभव सा लगता था कि कम्यूनिज्म के गढ़ चीन में उनके नेताओं के विरुद्ध ही इतनी तीव्र प्रतिक्रिया होगी कि तानाशाही हटाकर प्रजातंत्र को वापस लाने के लिए लाखों की संख्या में विश्व विद्यालय के छात्र यहाँ के प्रमुख केन्द्र तिआननमेन स्क्वेयर में एकत्र होकर अनशन पर उतारू हो जायेंगे। मई के मध्य में इन विद्यार्थियों ने बढ़ते भ्रष्टाचार एवं निरंकुशवाद के खिलाफ कड़ा संघर्ष करने के लिए कमर कस ली एवं इस सीमा तक अहिंसक प्रतिरोध पर उतर आए कि स्वयं राष्ट्रपति व महासचिव को उन्हें यह आश्वासन देना पड़ा कि वे दमन की कोई कार्यवाही तब तक नहीं करेंगे जब तक छात्र अपनी ओर से शान्त हैं। लाखों छात्र इन पंक्तियों के लिखे जाने तक बीजिंग के इस चालीस हेक्टेयर चौड़े में अनशन पर बैठे हैं। इससे लगता है कि पूरे विश्व में किस तेजी से युग परिवर्तन की प्रक्रिया गति पकड़ रही है।
एक आदर्श उदाहरण हालैंड
85 करोड़ की आबादी वाला भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन लोकताँत्रिक व्यवस्था में आचरण कितना आदर्श होना चाहिए- वह मात्र डेढ़ करोड़ की आबादी वाले समृद्ध यूरोपीय देश नीदरलैंड (हालैंड) ने एक नमूना प्रस्तुत करके दर्शाया है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के प्रति सचेत इस छोटे राष्ट्र में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों व कारों पर कर लगने में असफल रहने पर श्री टैण्ड लुयर्स की सरकार ने पिछले दिनों नैतिक आधार पर त्याग दे दिया, यद्यपि वे ऐसा करने को विवश न थे। अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण के लिए सचेत व सक्रिय संगठनों व राष्ट्रों को इससे क्या कोई प्रेरणा नहीं मिलती?
भारत हथियार घटायेगा। नैतिकता के क्षेत्र में अगुआई करेगा
यह भविष्यवाणी है- 1962 में शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त श्री लिनीस पाँलिंग की, जिनकी एक पुस्तक आय.सी.सी.आर. ने पिछले दिनों प्रकाशित की है-”साइंस एण्ड वर्ल्ड पीस”। वे लिखते हैं कि यद्यपि पिछले दो दशकों में भारत ने सैन्य शक्ति बढ़ायी है पर वह अब क्रमशः अस्त्रों व सुरक्षा बलों को घटाकर अन्यान्य राष्ट्रों का नेतृत्व ही नहीं करेगा, मोरेलिटी (नीति) एवं सेनिटी (विवेकशीलता) के क्षेत्र में भी शेष विश्व का नेतृत्व करेगा।
*समाप्त*