श्री माताजी (kahani)

July 1989

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योगी अरविन्द उन दिनों पांडिचेरी में साधना रत थे। साथ ही वे अध्यात्म प्रशिक्षण का आश्रम भी चला रहे थे। दुहरे कार्य में उनकी व्यस्तता अत्यधिक बढ़ गई थी। सहायक का अभाव बुरी तरह खल रहा था।

पेरिस के सम्प्रान्त परिवार के रिचर्ड दंपत्ति उस आश्रम में आए कुछ दिन ठहरे और आश्रम की गतिविधियों तथा आवश्यकताओं को उन लोगों ने गंभीरता पूर्वक समझा।

रिचर्ड अपने व्यवसायिक कार्यों में व्यस्त रहना चाहते थे। पर उनने अपनी धर्मपत्नी से कहा यदि तु चाहों तो इस महान कार्य में अपने को खपा सकती हो। विचार विनिमय के उपरान्त बात निश्चित हो गई वह फ्राँसीसी महिला पाण्डिचेरी आश्रम के संचालन में जुट गई और जीवन भर यही रही। उन्हें श्री माताजी, कहा जाता था। अरविंद का अधिकाँश कार्य भार उनने बटा लिया था।


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