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April 1982

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अनन्तपारं बहु वेदशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः। सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसो यथा क्षीर मिवाम्बुध्यात्॥

वेद व शास्त्र अपार हैं, मनुष्य की आयु थोड़ी है और उसमें अनेकों विघ्न भी उपस्थित होते रहते हैं। अतएव ‘नीर−क्षीर विवेकी’ हंस के समान व्यर्थ−विस्तार को त्याग कर उपयोगी सारतत्व को ही ग्रहण करना चाहिए।


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