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April 1982

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नास्ति ध्यानं बिना ज्ञाँन नास्ति ध्यानमयोगिनः। ध्यानं ज्ञानं च यस्यास्ति तीर्णस्तेन भवाणव॥

ज्ञानं प्रसन्नमेकाँग्रशेषोपाधिविज्जतम्। योगाभ्यासेन युक्तस्य योगिनस्त्वेव सिद्धयति॥

प्रक्षीणाशेषपापानाँ ज्ञाने ध्याने भवेन्मतिः। पापोप्रहतबुद्धीनाँ तद्वाताँषि सुदुलभा॥

यथा वह्विर्महादीप्तः शुष्कमाद्रं च निर्दहेत्। तथा शुभाशुभं कर्म ध्यानाग्निर्दहते क्षणात्॥ –शिव पुराण

ध्यान ही ज्ञान का मुख्य साधन है और योग के बिना ध्यान सिद्ध नहीं हो सकता। इसलिए योग द्वारा ध्यान का प्राप्त करना सर्वोपरि कर्त्तव्य है।जो ज्ञान और ध्यान दोनों को प्राप्त कर लेता है वह इस संसार चक्र से निश्चय ही मुक्त हो जाता है। जिनके पाप क्षीण हो जाते हैं उन्हीं की रुचि ज्ञान और ध्यान की ओर जाती है अन्यथा पापी लोगों को तो इस तरह को बातें भी अच्छी नहीं लगतीं। जैसे प्रज्वलित अग्नि गीले सूखे सब पदार्थों को भस्म कर देती है उसी प्रकार ध्यान की अग्नि भी कर्मों को शीघ्र ही नष्ट कर देती है।


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