अज्ञान का निराकरण (kavita)

April 1982

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इस दुनिया में सभी दुखों का कारण है केवल अज्ञान।

इसमें पड़कर मनुज भूल जाता अपना कर्त्तव्य−विचार।

और मान लेता है जीवन के पथ पर वह अपनी हार॥

आगे बढ़ना होता है पर पीछे मुड़ते उसके पैर।

असफलता ही मिलती है,हो जाता जब विवेक से बैर॥

अपनी अमित शक्तियों को ही मनुज नहीं पाता पहचान।

इस दुनिया में सभी दुःखों का कारण है केवल अज्ञान॥

सबसे बड़ा शत्रु है यह ही मानव के अमूल्य मन का। है

व्यवधान मोक्ष का यह ही–कारण है भव−बंधन का॥

मन के राग−द्वेष पलते हैं, बस इसकी ही छाया में।

नीति−न्याय से विमुख हुआ मन, भ्रमता इसकी माया में॥

मोहग्रसित हो, धनुष फेंक देता अर्जुन−सा व्यक्ति महान।

इस दुनिया में सभी दुःखों का कारण है केवल अज्ञान॥

अज्ञान सहता विपदाएँ भोगा करता गहन अभाव।

आधि−व्याधियाँ करतीं रहतीं हृदयंतर में कितने घाव॥

रुक जाते हैं, प्रगति और उन्नति के उसके सारे मार्ग।

आश्रित रहता औरों पर औं कोसा करता अपना भाग॥

उसे श्रेय मिलता न कहीं भी, पग−पग पर सहता अपमान।

इस दुनिया में सभी दुःखों का कारण है केवल अज्ञान॥

अतः करो साधना ज्ञान की, इस जीवन का करो सुधार।

हों विवेक द्वारा संचालित जीवन के सारे व्यापार॥

अपनी प्रज्ञा को विकसाओ करें साधना मेधा की।

जला ज्ञान की ज्योति, करो अन्त्येष्टि बन्धु! हर बाधा की॥

जड़ता का बन्धन काटो जो बना मुक्ति पथ का व्यवधान।

इस दुनिया में सभी दुःखों का कारण है केवल अज्ञान॥

–माया वर्मा

*समाप्त*


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