अनैतिकता छिपाये नहीं छिपती

September 1980

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अनैतिकता अस्वाभाविक है उसका मानवी प्रवृति के साथ ताल-मेल नहीं बैठता। ऐसे तत्व विजातीय कहे जाते हैं जो अनुकूल एवं उपयोगी न होने के कारण जीव प्रकृति द्वारा खदेड़कर बाहर किये जाते है। विषाक्त भोजन उदरस्थ करने पर उल्टी एवं दस्त होने लगते हैं। रक्त में ऐसे तत्व घुस पड़े तो तो उन्हें फोड़े, फुन्सियों द्वारा बाहर निकलना पड़ता है। पारा हजम नहीं हो सकता और पाप को भी कोई पचा नहीं सकता। देर-सवेरे में उसका भेद खुलता ही है। न खुले तो भी उसके कारण अन्तःक्षेत्र में हुई गड़बड़ी शारीरिक, मानसिक रोगों के रुप में उभरती और कष्ट कर त्रास देती हुई बाहर निकलती हैं। छिपाने के प्रयत्न भी एक सीमा तक ही सफल होते हैं। आमतौर से अनुचित चिन्तन और आचरण करने पर सहज प्रवृति में ऐसा अन्तर पड़ता है जिसे विचित्र कहा जा सके। सामान्य बुद्धि को भी इसका आभास मिल जाता है। सूक्ष्मदर्शी बुद्धि तो उसे और भी आसानी से पकड़ लेती है। अब तो ऐसे यंत्र भी बन गये है। जो मनुष्य को अस्वाभाविक हरकतों को देखकर यह पता लगा सके कि यह अनौचित्य के अपराधी प्रवाह में बह रहा है।

झूठखोजी मशीन का सिद्धान्त यह है कि व्यक्ति जब झूठ बोलता है तो तनाव की वजह से उसके शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं, जिन्हें यह मशीन जान लेती है। पाँलीग्राफ या लायडिटेक्टर नामक यह उपकरण भारत में भी मुख्य संस्थानों के पास एवं विदेशों में सभी पुलिस हेडक्वार्टर्स पर हैं।

इज्रायल ने एक यन्त्र विकसित किया है- जिसका नाम है-अणुतरंग श्वासप्रबोधक (माइक्रोवेव रेस्पीरेशन माँनीटर)। इसकी मदद से आधे मील की दूरी से यह तय किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या नहीं। इज्रायली पुलिस इस मशीन का प्रयोग अरब हमानों’ पर करती है। सीमा पर ही यह निर्णय ले लिया जाता है कि यह व्यक्ति वाँछनीय है अवाँछनीय। सैनिक सवाल करते हैं और इस बीच अणुतरंग संकेत शरीर में प्रवेश कर तय करते हैं कि सवाल जबाव के दौरान व्यक्ति अधिक तेजी से साँस ले रहा है।

ओहिया की कैट स्टेट प्रयोगशाला में एक अन्य मशीन तैयार की है जो सवाल पूछे जाते वक्त व्यक्ति की आँख पर निगाह रखती है। पुतली का हिलना व भावभंगिमा में परिवर्तन पर सूक्ष्म दृष्टि रखी जाती है। आदमी कुछ न बोले, परन्तु यह मशीन बोल देगी ।

अतीन्द्रिया क्षमता सम्पन्न मनुष्य किसी के नैतिक और अनैतिक स्तर को आसानी से समझ लेते हैं। इस जानकारी के आधार पर अवाँछनीय तत्वों के आक्रमण से बचे रहना ही नहीं, उन्हें रोकना, पकड़ना, दएड़ देना अथवा सुधारना भी सम्भव हो सकता है। चोर की चारी पकड़ने में जासूसी कुत्तों तक के लिए सम्भव हो जाता है फिर कोई कारण नहीं कि सूक्ष्मदर्शी पर्यवेक्षण से मनुष्यों की प्रकृति जानना और उनसे तदनुरुप व्यवहार करने का कौशल सम्भव न हो सके।

साधना सम्पन्न आत्मवेत्ता तो ऐसे सफल प्रयोग करते ही रहते हैं। कभी-कभी सामान्य स्तर के लोगों में भी वह क्षमता उभरी हुई पाई जाती है कि वे व्यक्ति स्तर की विशेषताओं और अनैतिक आचरण वाली प्रकृति को समझ सके और अपराधों तथा अपराधियों की रोकथाम में समुचित सहायता कर सके।

रेग मैकहग कुछ समय तक कनाडा में पुलिस अफसर भी थे और चोरियाँ पकड़ने में उसे ख्वाति प्राप्त थी। यह सफलताएँ उसे बुद्धि कौशल या साधन सूत्राो से नहीं वरन् ऐसी विशिष्ट क्षमता के सहारे मिलती रही, जिसे आतीन्द्रिय समर्थ्य कहा जा सकता है। चोर के समीप आते ही उसका जी मिचलाता। फलतः वह अनुमान लगा लेता कि इसी का दुष्कृत्य है। छान-बीन करने पर तथ्य उजागर होते, चोरी का भेद खुलता, माल मिलता और चोर सजा पाता। इस सफलता ने उसे अपने विभाग में अच्छी ख्वाति प्रदान की।

पीछे उसने नौकरी से निवृतिल ले ली और यह कार्य स्वतंत्र व्यवसाय के रुप में करने लगा। बहुत सी व्यवसायिक कम्पनीयों का ढ़ेरों माल हर साल चोरी हो जाता था। चोरों का पता न चलने से वे हर साल भारी घटा उठाती थीं। रेग ने उनसे आर्थिक आधार पर ठेके लिए जाने जितनी चोरी पकड़ी जाय उसका लाभाँश उसे मिले।अनेकों कम्पनीयाँ खुशी-खुशी इसके लिए तैयार हो गईं । इससे दोनों पक्षों को भारी लाभ हुआ। चोरियाँ पकड़ी गईं। कोई जादूगर चोरी पकड़वा देता है इस अफवाह के फैलते ही आधी तो अपने आप रुक गईं जो चलती थीं वे धड़ाधड़ पकड़ी गईं। फलतः रेग कुछ ही समय में धनवान बन गया।

सरकारी अफसरों एवं सामान्य लोगों को भी उसने सहायता की और चोरी के माल पकड़वाये। यह ख्वाति सारे अमेरिका में फैली। उसके विवरण रेडियों पर सुनाये गये और घटनाक्रम टेलीवजन पर दिखाये गये। सन् 1973 में उसकी विलक्षता प्रदर्शित करने वाली एक फिल्म भी टोरेन्टो नगर में बनी।

अपने इस कौशल के सम्बन्ध में रेग का कहना यह है कि यह विशेष क्षमता बीज रुप से हर मनुष्य के भीतर मौजूद है। किसी को बिना श्रम के अनायास ही मिल जाती है, पर प्रयत्न करने पर उसे अन्य विशिष्ट क्षमताओं की तरह ही जगाया और परिपक्व किया जा सकता है। इससे किसी मन्त्र या देवता के अनुग्रह की आवश्यकता नहीं।

रेग ने बाद में अपना व्यवसाय बड़े रुप में चलाया। सन् 1971 में उसने एक विधिवत् कम्पनी खोली ‘इनवेस्टीगेशन एण्ड सिक्योरिटी’। उसकी सहायता हर किसी को उपलब्ध हो सकती है। इस विज्ञापन ने उसका कारोबार बहुत बढ़ा दिया। कम्पनी में सैकड़ों कर्मचारी काम करने लगे।

काम बढ़ने से उसने कई सहायकों को प्रशिक्षित उनकी सहायता से काम हलका हुआ और केस भी कई गुने सुलझाये जाने लगे। यह शिष्यों में से कई को आशाजनक सफलता मिली। फलतः कम्पनी की कई शाखयें कई नगरों में खोली गईं।

रेग के प्रयोग परीक्षण और निर्ष्कष यह बताते हैं कि मनुष्य को सामान्यजनों द्वारा प्रयुक्त होने वाली क्षमताएँ ही होती हों ऐसी बात नहीं है। उसमें और भी ऐसी विशेषताएँ बीज रुप से विद्यमान हैं जो काम ना आने से पगसुप्त पड़ी रहती हैं। वे बुद्धि एवं बलिष्ठता की तरह प्रयत्नपूर्वक यदि कई जगाई जा सके तो अधिकाँश को इस रहस्यमय क्षेत्र में सहज सफलता मिल सकती है।

यह परीक्षण कुछ अधिक कठिन नहीं है। थोड़े से अभ्यास से यह विशेषता किसी में भी उभर सकती है। अपराधी और नीतिवान व्यक्तियों की आकृतियों को ध्यानपूर्वक देखा जाये तो प्रतीत होगा कि नीतिवानों के चेहरे पर एक सहज सौम्यता, शान्ति, सन्तोष स्थिरता तथा प्रसन्नता के लक्षण पाये जाते हैं। इस अन्तःस्थिति के प्रकटीकरण में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के मुख मण्डल की पेशियाँ, विभिन्न प्रकार से मुड़ती, सिकुड़ती, फैलती तथा ठहरती हैं। आवाज में भी यही विशेषताएँ घुली रहती हैं। इनके विपरित अनीत के कारण उत्पन्न हुए अन्तर्द्वन्द, घबराहट, भय, चिन्ता, दुराव, ग्लानि, असन्तोष जैसे भाव चेहरे पर उभरते हैं। इन उभारों का अन्तर बहुत समय तक देखते रहा जाय और उस अनुभव को अभ्यास में उतारा जाता रहे तो यह जानने में सहज बुद्धि ही समर्थ हो सकती है कि नीतिवान तथ अनाचारी किस प्रकार अपने आन्तरिक रहस्यों को स्वयं ही प्रकट करते रहते हैं।

जिन्हें इस प्रकार का आभास नहीं हैं वे भी व्यक्ति के अन्तराल को- विशेषतया चरित्र चिन्तन को-किसी कदर समझते रहते हैं। यही कारण है कि अपराधियों के कुचक्र में फँसने से अधिकाँश व्यक्ति बचते रहते हैं। यह सहज बुद्धि न होती तो अनाचारी छझ व्यक्ति अधिकाँश लोगों को अपने चंगुल में फँसा लेते ।


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