प्रकृति द्वारा निद्रा का उपयोग स्वप्न

September 1980

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जागते हुए जो स्वप्न देखे जाते हैं वे कल्पनाएँ कहलाते हैं तथा सोते हुए जो कल्पनाएँ की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहा जाता है। स्वप्न और कल्पना में प्रायः यही अन्तर देखा और समझा जाता है, परन्तु इतना मात्र ही अन्तर नहीं है। जिस प्रकार जागृत स्थिति में कई विचित्र और अबूझ अनुभव होते हैं उसी प्रकार निद्रित अवस्था में भी अनेक स्वप्न ऐसे होते हैं जो अदृश्य जगत की वास्तविक अनुभूति कराते हैं और वह अनुभूति ऐसी होती है कि उन्हें स्थूल नेत्रों से प्रायः नहीं देखा जा सकता।

साधारणतः स्वप्न में होने वाले अनुभवों को प्रत्यक्ष अनुभवों से कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता, लेकिन कईबार स्वप्न में ऐसी अनुभूतियाँ होती हैं जिन्हें विचित्र और विलक्षण ही नहीं चमत्कारिक भी कहा जा सकता है। ऐसे स्वप्नों का विश्लेषण करते हुए मनःशास्त्रियों का कथन है कि उस समय मनुष्य की निद्रितावस्था में काम करने वाली मानसिक शक्ति ऐसे कार्य कर दिखाती है जो जागृतावस्था में मन को अत्यन्त कठिन या असम्भव मालूम होती है। किसी गणितज्ञ को एक प्रश्न बहुत कठिन मालूम होता था। अनेक बार प्रयत्न करने पर भी वह प्रश्न हल न हो सका। एक दिन उक्त प्रश्न को स्लेट पर सोचते सोचते ही वह गणितज्ञ सो गया। सुबह उठते ही उसे यह मालूमत हुआ कि उसके मन ने उक्त प्रश्न को हल कर लिया है। तत्काल उसने स्लेट पर उस प्रश्न का पूरा हल स्लेट पर लिख डाला और वह आनन्द से नाचने लगा।

कुछ विचारकों ने अपने अनुभवों में लिखा है कि उनकी जागृत अवस्था में न सूझने वाले उदात्त तथा प्रगल्भ विचार स्वप्नावस्था में उनके मन को सूझ पड़े और उनको मालूम हुआ कि मानो उनके मन ने अतिसुन्दर तथा यथायोग्य भाषा में सब विचार उनके सन्मुख रख दिये हैं। कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रकृति के अत्यन्त गहन रहस्य का पता उन्हें स्वप्नावस्था के मन के व्यापार से लगा। कईबार अनुभव होता है कि स्वप्नावस्था में कार्य करने वाले मन के व्यापार दिक्कालादि की मर्यादा से बँधे हुए नहीं हैं। उदाहरणार्थ कभी कभी स्वप्नावस्था में हजारों मील के फासले पर रहने वाले सम्बन्धियों के व्यवहार हमें यथावत् मालूम हो जाते हैं प्रत्यक्ष अनुभव की बातों से हमें मालूम होता है कि जागृत अवस्था में काम करने वाले मन में जो शक्ति नहीं है वह निद्रितावस्था में काम करने वाले अचेतन मन में है। बातों का समाधान करने के लिए यह मानना पड़ता है कि अचेतन मन एक प्रकार से विवके शून्य है। वह स्वपन में बाहरी वस्तुओं से मिलने वाली किसी भी प्रेरणा के तत्काल अधीन हो जाता है। साधारण व्यवहार में असत्य मालूम होने वाली कई विचित्र बातें स्वप्न में दिखाई देती हैं और स्वप्नावस्था में वे सब सत्यवत् मालूम होती हैं। कईबार स्वप्न में हजारों फुट ऊँचे आदमी दिखाई देते हैं। कभी अपनी मृत्यु होती हुई मालूम होती है और दिखाई देता है कि अन्य लोग हमारे प्रेत का संस्कार कर रहे हैं। कभी मालूम होता है कि गगनचुम्बी पहाड़ों पर से हमें कसी ने ढकेल दिया है। परन्तु फिर भी अंग-भंग न होकर प्रहलाद की तरह हम चलने लगे हैं। इसका अर्थ यही है कि जागृतावस्था में सत्य या असत्य का निर्णय करने वाला मन स्वप्नावस्था में अनुपस्थित रहता है। और अन्य कोई मन उस समय कार्य करता रहता है। उस मन को सारासार विचार बिल्कुल नहीं होता। इस मन का धर्म है कि किसी भी बाहरी प्रेरणा को पाकर उसके अनुसार भटकता रहे। मिष्ठान भोजन के बाद पेट भारी होने पर सोने वाले मनुष्य को स्वप्न आता है कि कोई उसकी छाती पर बैठकर उसका गला घोंट रहा है। इसका कारण यह है कि पेट के भारीपन से श्वासोच्छवास में रुकावट पैदा होती है। और इस प्रेरणा के कारण स्वपनावस्था में मन नाना प्रकार के कुतर्क करने लगता है। स्वप्नावस्था का अनुभव करने वाले मनुष्य को ये कुतर्क सत्यवत् प्रतीत होते हैं।

‘एवर क्राम्वी’ नामक ग्रन्थकार ने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है कि “किसी सोये हुए मनुष्य के पैरों पर गरम पानी से भरी हुई बोतल रखी गई तब उसे स्वप्न में मालूम हुआ कि वह एकटा नामक ज्वालामुखी के निकटवर्ती गरम प्रदेश में यात्रा कर रहा है।” इस ग्रन्थकर्ता ने एक और उदाहरण लिखा है “एक आदमी अपने कमरे में सो रहा था। खिड़की से ठण्ड़ी हवा आने के कारण उसके शरीर पर का कपड़ा हट गया। उसे तत्काल स्वप्न आया कि वह हडसन उपसागर के निकट ठएड के दिन बिता रहा है। और वहाँ की वर्फ के कारण उसे ठण्ड का कष्ट हो रहा है।”

स्वप्नों के सम्बन्ध में ये साधारण बातें हुई। इन दिनों वैज्ञानिकों के लिए स्वपन एक अलग ही विज्ञान बना हुआ है और इस सम्बन्ध में अनेकों खोंजें हो रही हैं। इन निष्कर्षो को विभिन्न प्रयोजनों के लिए महत्वपूर्ण उपयोग किये जाने की सम्भावना है। स्वप्न विज्ञान के विश्व-विख्यात अमेरिकी वैज्ञानिक “एडबिन डायमन्ड”ने अनेक वर्षों तक स्वप्नों के सम्बन्ध में गहन अध्ययन तथा अनुसन्धान किया है। उन्होने कहा है-”संसार में औसत मनुष्य रात्रि को सोते समय पाँच या छः बार स्वप्न देख लिया करता है। इसके बहुत ही कम अपवाद होते हैं।

लेगों के स्वप्नों का औसत काल 20 मिनट होता है। श्री डायमन्ड का कहना है कि “स्वप्न देखने से मनुष्य मानसिक रुप से स्वस्थ एवं प्रसन्न बने रहते हैं उन्होंने परिक्षणों से पता लगाया कि जिन व्यक्तियों ने बिल्कुल स्वप्न न आने देने का प्रयास किया, उनका मानसिक सन्तुलन गिबगड़ गया और बहम के शिकार हो गए।

जो भी हो, स्वप्न प्रकृति की विचित्र माया, विलक्षण व्यवस्था है। इसे अभी पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। स्वप्नों का विश्लेषण करने पर यह जान समझ पाना सम्भव हो सकता है कि शरीर की इस प्रक्रिया का क्या उद्देश्य है और इसका किन प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जा सकता है ? प्रकृति ने मनुष्य शरीर को एक एक क्षण के लिए उपयोगी कार्य में व्यस्त कर रखा है तो व्यक्ति सात, आठ घंटे जो नींद लेता है वह समय केवल विश्राम के लिए ही व्यतीत करने की व्यवस्था तो नहीं हो सकती। प्रकृति ने उस अवकाश के समय का उपयोग भी किसी न किसी उच्छे उद्देश्य के लिए रिने की व्यवस्था कर रखी हे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118