श्रद्धावान होने का अर्थ अन्ध श्रद्धा नहीं है

September 1980

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

श्रद्धा मनुष्य जीवन के उन आधरभूत सिद्धान्तों में से एक है जिससे वह पूर्ण विकास करता है। श्रद्धा न हो तो मनुष्य साँसारिक सफलताएँ प्राप्त करके भी आत्मिक सुख प्राप्त न कर सकेगा, क्योंकि जिन गुणों से आध्यात्मिक सुख मिलता है उसकी पृष्ठभूमि श्रद्धा पर ही निर्भर है। मानसकार ने इसीलिए श्रद्धा और विश्वास को शंकर का रुप बताया है। ‘शंकरह्न शिवत्व’ जीवन के बुरे तत्वों का संहार करने का प्रमुख कारण है किन्तु शिव अकेला अपूर्ण है उसके साथ उमा भी चाहिए, उमा अर्थात गुणों का अभिवर्धन। शिव का अर्थ असुरता का संहार और भवानी का अर्थ भावनाओं का परिष्कार। शिव के रुप में विश्वास दृढ़ होता है, पर भवानी के रुप में विश्वास सुदृढ़ होता है, पर भवानी के रुप में श्रद्धा, सरल और सुखदायक होती है। अतः विश्वास जगाना हो तो श्रद्धा की ही शरण लेनी चाहिए। श्रद्धा साधना को सरल बना देती है।

श्रद्धा का समावेश मनुष्य के पारलौकिक जीवन को भी आनन्दमय बनाता है। मनुष्य मृत्यु से इसीलिए दुःखी रहता है कि वह जानता है उस ओर अकेला जाना पड़ेगा। भय की, भूल की, अज्ञान की जड़ अकेलापन है। उससे सभी को दुःख मिलता है, पर हृदय की श्रद्धा जीवित रहे तो अकेलापन भी नहीं अखरता। श्रद्धा स्वयं अन्तःकरण में आनन्द का उद्वेग करती है तो ऐसा अभ्यास होता है कि हमारी प्रिय वस्तु हमारे बहुत समीप अपनी कल्पना में ही ओत-प्रोत है। अपना अन्तर्देवता श्रद्धा के वश में है, वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति अन्तःकरण में ही कर लिया करता है और उससे मनुष्य को असीम तृप्ति मिलती है।

आत्मिक विकास और आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए श्रद्धा जितनी आवश्यक और उपयोगी है, जितनी लाभप्रद है उतनी ही घातक है- अन्ध श्रद्धा। अन्धश्रद्धा का अर्थ है बिना सोचे समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी घनघोर विश्वास। इस तरह की अंधश्रद्धा किस प्रकार सर्वनाश के कगार पर ले पहुँचती है इसका उदाहरण पिछले दिनों (अमेरिका) 900 व्यक्तियों द्वारा सामूहिक आत्महत्या कर लिये जाने के समय देखने में आया। 21 नवम्बर 78 को विश्व के लगभग सभी समाचार पत्रों में यह समाचार छपा। 900 व्यक्तियों द्वारा सामूहिक रुप से आत्महत्या कर लिए जाने के पीछे अमेरिका के एक धर्मगुरु का हाथ था, जो स्वयं को अपने अनुयायिओं का पिता बताता था।

दक्षिण अमेरिका के एक प्रान्त गुयाना की राजधानी जार्ज टाउन से 238 किलोमीटर दूर घने जंगलों में करीब 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में एक नगर सा बसा हुआ था- जोंस टाउन। यह कस्बा जिम जोंस के अनुयायिओं द्वारा बसाया गया था और वही लोग यहाँ रहते थे। अन्य व्यक्तियों का प्रवेश निषिद्ध था। 18 नवम्बर को शाम के समय इस कस्बे में बने एक उपासना घर में एकत्रित करीब नौ सौ व्यक्ति जिमजोंस के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन व्यक्तियों के कान में अपने गुरु की आवाज गूँजी-”अब वह समय आ गया है जिसके लिए मैं तुम लोगों को सदैव तैयार रहने के लिए कहता रहा हूँ। हम सबको आज ही मरना है, इसी वक्त।

इसके बाद उपस्थित सभी पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को विष मिला शरबत बाँटा गया। कुछ लोग ऐसे भी थे जो मरना नहीं चाहते थे। वे भागने की सोच रहे थे। इसके लिए उन्होंने अपने आस-पास देखा तो पाया कि चारो ओर बन्दूक तथा विष बुझे तीर चढ़ाये कमान ताने पहरेदार नियुक्त हैं। कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की तो उनसे कहा गया कि बेहतर है स्वयं ही विषपान कर लिया जाय- क्योंकि यहाँ से बचकर कोई नहीं जा सकता।

पहले छोटे-छोटे बच्चों को चम्मच से विष पिलाया गया। इसके बाद उपस्थित स्त्री-पुरुषों ने विषपान किया। जिन्होंने अपने गुरु की अवज्ञा करते हुए भागने की चेष्टा की वे पहरेदारों के तीरों और बन्दूक की गोलियों का निशाना बने। कुछ ही घण्टों में जोंस टाउन लाशों ही लाशों से पटा था। न केवल मनुष्यों की वरन् पशु-पक्षियों की लाशें भी वहाँ बिछ गयीं और पीपुल्स टेम्पल के गुरु जिम जोंस ने स्वयं को गोली मार ली थी।

जिमजोंस पश्चिम में अन्धश्रद्धा का व्यापार चलाने वाले अधर्म गुरुओं में से एक था, जो पश्चिम की चौंधिया देने वाली भौतिक समृद्धि से ऊबे आध्यात्मिक क्षुधा का दोहन करने में लगे हुए हैं। पिपासा इतनी तीव्र है और अज्ञान इतना गहरा है कि कौन सही तथा कौन गलत ? इसका निर्णय करने का किसी को अवकाश ही नहीं है। जहाँ थोड़ा बहुत आकर्षण दिखाई दिया, वहीं प्रभावित हो गए और इन्हीं को अपना इष्ट, आराध्य मानकर उनकी उचित-अनुचित आज्ञाओं, आदेशों का आँख मूँदकर पालन करने लगे।

जिमजोंस ने पश्चिमी सभ्यता से ऊबे लोगों की इस कमजोरी का लाभ उठाने के लिए सन् 1950 में पीपुल्स टेम्पल नामक एक सम्प्रदाय चलाया लोगों में अपना प्रभाव बढ़ाने तथा उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की हर संभव कोशिशें की। परिणामतः बड़ी संख्या में लोग जिमजोंस के अनुयायी बनने लगे। जब उसके शिष्य वड़ी संख्या में बनने लगे तो उसने सन् 1970 में अपना मुख्यालय कैलीफोर्निया से सैनफ्राँसिस्को स्थानाँतरित कर दिया। एक वर्ष पूर्व तक जिम का सितारा पूरी बुलन्दी पर था, लेकिन पिछले साल उसके कुछ अनुयायिओं ने पीपुल्स टेम्पल के रहस्य खोलना आरम्भ कर दिये। उनका कहना था कि पीपुल्स टेम्पल देखने भर को ही आदर्शों का प्रचार करने वाला संगठन है अन्यथा इस सम्प्रदाय में आतंक और नाटकीय यातनाओं का राज्य है। वहाँ जिम की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। उसकी मर्जी के थोड़ा भी विरुद्ध जाने वालों को बुरी तरह पीटा जाता है तथा अन्य दण्ड दिये जाते हैं। जिमजोंस पर झूठा धार्मिक उपचार करने और भक्तों की सम्पत्ति हथियाने का आरोप भी लगाया।

अमेरिकी अधिकारियों से यह शिकायत की गई कि जिम अपने अनुयायिओं से बहुत ही पाशविक व्यवहार करता है। न केवल उनके अनुयायिओं को मारापीटा जाता है बल्कि उनसे दिनभर कसकर मेहनत कराई जाती है और नाम मात्र का भोजन दिया जाता है। कड़ी मेहनत करने वाले यह व्यक्ति वही लोग होते हैं जो अपनी सम्पत्ति पीपुल्स टेम्पल को सौंप चुके होते हैं। एक बार उसके चंगुल में फँसकर बच निकलना मुश्किल है। जिम ने अपने अनुयायिओं के बीच ही काफी गुप्तचर छोड़ रखे हैं और छोटी सी सेना भी बना रखी है ताकि बाहरी संकट का सामना किया जा सके।

पिछले वर्ष तो अमरीका जैसे जिम विरोधी हवा ही बहने लगी। ‘न्यू वेस्ट’ और ‘सैनफ्राँसिस्को एग्जामिनर’ पत्रिकाओं ने पीपुल्स टेम्पल के बारे में सनसनी खोज विवरण प्रकाशित किये और अमरीकी प्रशासन से उसकी जाँच कराने की माँग की। यह माँग जोर पकड़ने लगी तो जिमजोंस अपने अनुयायिओं सहित गुयाना भाग गया।

स्वयं और सम्प्रदाय पर संकट के बादल मँडराते और पोल खुलती देखकर जिम अपने अनुयायिओं को समझाने लगा था कि कोई बाधा सिर पर आती देखकर हम लोग आत्महत्या कर लेंगें। उसने सामूहिक आत्महत्या की योजना को कई बार अपने अनुयायिओं के बीच स्पष्ट किया था। जिमजोंस से विद्रोह करने वाले उसके एक भूतपूर्व अनुयायी डैवी ब्लैकी ने अदालत को यह बताया कि उसके गुरु ने कुछ खास अनुयायिओं को आश्रम के सभी बच्चों को मार डालने की जिम्मेदारी सोंप दी थी। उसके साथ यह भी बता दिया था कि बच्चों को मारने के बाद वे एक दूसरे की हत्या कर देंगें।

अपने ऊपर लगाए गये अभियोगों से बचने का यह कौनसा तरीका है ? समझ में नहीं आता। लेकिन जनता और अखबार जैसे-जैसे पीपुल्स टेम्पल की असलियत जानने और उसकी जाँच कराने की माँग करने लगी, उससे जिम का मनोबल टूटने लगा। उसने एक वक्तव्य दिया कि यदि सरकार या अन्य किसी बाहरी व्यक्ति ने आश्रम में घुसने का प्रयास किया तो वे सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे।

जनता की माँग और पीपुल्स टेंपल की गतिविधियों का रहस्य जानने के लिए अमेरिकी सीनेटर लियोरियान की अध्यक्षता में एक बारह सदस्यीय दल गुयाना पहुँचा। 18 नवम्बर यह दल अपने साथ कुछ असंतुष्ट जोंस पंथियों को लेकर मठ से बाहर निकल रहा था कि आश्रम के कुछ लोगों ने उन्हें चाकू दिखाकर रोका। बीच बचाव करने और समझाने, बुझाने के बाद वह लोग सुरक्षित निकल सके। वहाँ से निकल कर दल के लोग प्रतिनिधि उस जंगल में बनी पोर्ट कैतुमा हवाई पट्टी पर खड़े विमान में सवार होने लगे तो पीपुल्स टेंपल के अनुयायिओं का एक दस्ता वहाँ तुरन्त ही आ पहुँचा और विमान और गोलियों की बौछार करने लगा। उससे लियोरियान सहित जाँचकर्ता चार प्रतिनिधि मारे गये।

स्पष्ट था यह आक्रमण जिम द्वारा अपने मठ की सुरक्षा के लिए गठित सेना द्वारा ही किया गया था। इस आक्रमण के संगठित परिणामों से जिमजोंस इतना भयाक्राँत हो उठा कि उसे अगले दिन अपने सहित नौ सौ शिष्यों की सामूहिक आत्म-हत्या अथवा हत्या के लिए बाध्य होना पड़ा। अमेरिकी प्रतिनिधि मण्डल पर हमले की खबर जब गुयाना की राजधानी पहुँची तो वहाँ के सैनिक जोंसटाउन पहुँचे। सैनिकों ने जोंसटाउन में प्रवेश किया तो उन्हें लाशों का अम्बार मिला। नौ सौ लाशों के अलावा आश्रम में 17 शारगन, 15 रायफल, 7 रिवाल्वर एक फ्लोयर गन और भारी मात्रा में गोला बारुद का भण्डार भी मिला। इसके अलावा करीब 800 पासपोर्ट, कीमती सामान और नकद डालर भी बरामद हुए।

एक ही पंथ के अनुयायियों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में एक साथ आत्म-हत्या करने की यह घटना वियव इतिहास में अनोखी और अकेली घटना है। यों व्यक्तिगत रुप से तो कई लोगोंने धर्म के नाम पर अपनी आपकी बलि दी है। देवी के सामने अपना सिर काटकर चढ़ा देने, जीभ काट देने और अंग-भंग कर लेने की घटनाये तो आये दिन अपने देश में भी घटती रहती हैं। जिम जोंस और उसके अनुयायियों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में मौत को गले लगाने की घटना इसी तरह की अन्धश्रद्धा का व्यापक प्रतिफल है।

अंधविश्वास या अंधश्रद्धा व्यक्ति और समाज की दुर्बल मनोभूमि का परिचायक है और यह सिद्ध करता है कि उसमें स्वतः विचार कर निर्ष्कष करने की क्षमता का अभाव है। विश्वास श्रद्धा में भी तो किया जाता है फिर प्रश्न उठता है कि अंधश्रद्धा और श्रद्धा में कोई सीमा रेखा खींची जा सकती है ? श्रद्धा और अंधश्रद्धा स्वरुपतः एक जैसी ही दिखाई पड़ने पर भी दोनों में मूलभूत अन्तर है। श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास, ईश्वर पर विश्वास। प्रतीक कुछ भी चुन लिए जाएँ, परन्तु श्रद्धा अपने विवेक को ताक पर रखने की प्रेरणा नहीं देती। स्मरण रखा जाना चाहिए कि श्रद्धा के आधर प्रतीक चुन लिए जाएँ तो भी उसमें किसी भी प्रतीक पर पूर्णतः निर्भर नहीं हुआ जाता, क्योंकि कोई भी प्रतीक प्रतिमान का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। वह आधार सहायता के लिए चुने जाते हैं न कि उनपर निर्भर होने के लिए। जबकि अंधश्रद्धा प्रतीकों को ही पकड़कर बैठ जाती है और उन्हीं पर निर्भर रहने लगती है। हमें श्रद्धावान तो बनना चाहिए, अंधश्रद्धा और अन्ध भक्ति से सदैव बचना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118