एक बार भगवान् बुद्ध अपने उन शिष्यों के साथ बैठे बात कर रहे थे जो बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए जाने वाले थे। बुद्ध ने उनसे प्रश्न किया- “भन्ते ! यदि तुम कहीं उपदेश दो और वहाँ के व्यक्ति उसे सुनें नहीं तो उनके प्रगति तुम्हारे कैसे विचार होंगें ?”
“भगवन् ! हम सोच लेंगें कि व्यक्ति बुरे नहीं हैं। उन्होंने हमारे उपदेश नहीं सुने तो कोई बात नहीं । हमसे कोई कड़वी बात तो नहीं कही ।” भिक्षु बोले।
“और यदि कड़वी बात कहें तो ?” बुद्ध ने प्रश्न किया । शिष्य बोले- तो हम सोचेंगें कि कड़वी बात ही तो कही मार-पीट तो नहीं की है । व्यक्ति अच्छे हैं ।”
‘और मारपीट करें तो क्या सोचेंगे ? पुनः प्रश्न हुआ। ‘तो भी हम यही सोचेंगें कि व्यक्ति अच्छे हैं । उन्होंने हमें जान से तो नहीं मारा है ।’
शिष्यों की बात सुनकर भगवान् बुद्ध बोले- ‘भिक्षुओं अब तुम धर्म प्रचार के लिये जा सकते हो । धर्मप्रचारकों में जिस सहिष्णुता और उदात्त विचार धारा की आवश्यकता होती है, वह दिखलाई देती है । इसे निरन्तर बनाये रखना ।’