किसी पात्र में यदि छिद्र किये जायें एवं इसे भरने का प्रयास किया जाय तो यह प्रयास निरर्थक ही जाता है। खर्च के कई साधन हों पर आमदनी सीमित हो बचत की कोई गुँजाइश ना हो तो शीघ्र ही ऐसा व्यक्ति आर्थिक संकट में स्वयं को पाता है नित्य के जीवन व्यापार में ऐसे कई व्यक्ति पाये जाते हैं जो बचत का महत्व न समझते हुए अपने संचित भण्डार को शनैः शनैः नष्ट करते रहते हैं। अदुरदर्शीतावश ये व्यक्ति यह कहीं सोच पाते कि यदि अपनी आर्थिक सम्पदा को बचाये रखकर उन्होंने मितव्ययता से खर्च किया होता तो स्वयं को कठिनाई के क्षणों में मानसिक उद्वेगों से बचाया जा सकता था दूसरों की देखादेखी अपव्यय की आदत अन्ततः उन्हें कर्जे के बोझ से लाद देती है।
राष्ट्रिय बचत योजना, डाकखानों के सेविंग प्रमाण-पत्र एवं बैंकों की फिक्सड्डिपाजिट योजना के पीछे एक दूरदर्शी चिन्तन होता है। अपनी आपातकालीन जरुरत के लिए व्यक्ति बचत का उपयोग कर सकता है। शादी-ब्याह, बच्चों की ऊँची पढ़ाई या किसी अप्रत्याशित कारण से कोई खर्चे आ ही पड़े तो समझदार व्यक्ति संचित भंडार से ही व्यवस्था बनाता है। बचत की नीति अन्ततः लाभकारी ही सिद्ध होती है।
मानव शरीर की सुगढ़तापूर्ण व्यवस्था में इन सिद्धान्तों को भली प्रकार समझा जा सकता है। प्रकृति ने सारी रहस्यमय विलक्षणताएं इस कलेवर में भर दी हैं। मनुष्य मात्र इन्हें देखकर ही अपने जीवन को सुनियोजित, व्यवस्थित बना सकता है। हमारे शरीर में बैंकिंग एवं स्टोरेज सिस्टम के रुप से बड़ी सुन्दर व्यवस्था जुटाई गयी है। इस व्यवस्था के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों में भी, अप्रत्याशित जरुरत के बावजूद आन्तरिक संस्थान सारा क्रिया-कलाप सुचारु रुप से चलते हैं।
शरीर में रक्त का आयतन कुल 5 लीटर है। हृदय एक पम्प की तरह 0.8 सैकिण्ड में एक बार धड़कता है और इस रक्त को धनियों केपीलरीज के माध्यम से जीवकोषों तक पहुँचाता है। इतना रक्त शरीर को चयापचमिक गतिविधियों के लिए काफी होता है। आपरेशन के समय रक्तस्त्राव के कारण, चोट लगने से रक्तस्त्राव के कारण, खून की उल्टी होने पर, रक्ताल्पता के कारण समुचित मात्रा में आक्सीजन जीवकोषों को न मिलने के कारण रक्त का उपलब्ध आयतन कम हो जात है। ऐसे में रक्त की स्टोरेज व्यवस्था (केन्द्रिय भण्डागार) सक्रिय होती है। यह होती है बोनमेरो (अस्थ मज्जा) में। यहाँ पर विशिष्ट कोषों के माध्यम से अतिरिक्त रक्त का निर्माण होता है जो तुरन्त रक्तवाहिनियों में पहुँचा दिया जाता है। शरीर में मस्तिष्क एवं हृदय को रक्त समुचित मात्रा में न मिले तो उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। रिजर्ब स्टोर से आया रक्त इसीलिए महत्वपूर्ण अंगों को भेज दिया जाता है। रक्त का वौल्यूम पूरे शरीर में पहले जैसा ही हो जात है।
यह प्रक्रिया बड़ी जटिल है। रक्त क्षय की स्थिति में रक्तदाब व रक्त की मात्रा बनाये रखने के लिए शरीर तुरन्त आपातकालीन व्यवस्था करता है। मस्तिष्क के मेडुला आब्लागेंटा के बासोमोटर केन्द्रों को इसका आभास सबसे पहले होता है। वे तुरन्त ऐड्रीनेलिन नामक रस के स्त्राव हेतु एडरीनल ग्रन्थियों को सन्देश भेजते हैं। यह स्त्राव धमनियों-कोशिकाओं को संकुचित कर हृदय की गति को बढ़ा देता है। प्रतिमीटर 5 लीटर रक्त को औसतन 70 धड़कनों के माध्यम से फेंकने वाला हृदय अब करीब 5 लीटर रक्त को 10,100 धड़कनों के माध्यम से प्रत्येक धड़कन में पहले से कम भेजता है। इसी समय किड़नी में उत्पन्न होने वाला इरिथोपाइटिन नामक रस रक्त में मिलकर हड्डियों के सिरों पर स्थित उत्पादन इकाइयों तक जा पहुँचता है। यहाँ पर हिमोसाइटो ब्लास्ट नामक सेल्स होते हैं जो उक्त रस के प्रभाव से नये रक्त कणों को तेजी से बनाने लगते हैं। आक्सीजन के परिवहन के लिये उत्तरदायी रक्तकण इस संचित कोष से मिल जाते हैं तो गुर्दों के माध्यम से, पसीने के माध्यम से होने वाली को रोककर बचा लिया जात है। यह व्यवस्था की व्यवस्था आने से पूर्व यथासम्भव की जाती है।
जब सीमाओं पर तैनात सुरक्षा सेना के हौंसले आक्रमणकारियों के सामने परस्त होने लगते हैं तो रक्षा शासन द्वारा रिजर्व फोर्स सीमा पर भेजी जाती है। इसी प्रकार राज्स में कहीं अराजकता की स्थिति आने पर पुलिस बल के अतिरिक्त केन्द्रिय आरक्षी पुलिस (सी. आर. पी.) के जवान भेजे जाते हैं। शरीर में कुछ ऐसी ही व्यवस्था है। रक्त के श्वेत कण जब जीवाणु-विषाणु के हमलों से लड़ते-लड़ते ढेर हो जाते हैं। तब शरीर का इम्यून संस्थान अपने स्टोर से एण्टीबाँडीज भेजता है। यह शरीर की रिजर्व फोर्स है। ऐसी व्यवस्था बनाकर रखी जाय तो विभिन्न संस्थानों की कार्यक्षमता तुरन्त गिर जायेगी एवं मृत्यु होते देर न लगेगी।
हमारे भोजन विभिन्न प्रकार के पदार्थ होते हैं और इनमें से अधिकाँश का उद्दंश्य होता है, जलकर जलोरी अर्थात् ऊर्जा प्रदान करना, जिससे शरीर की त्रिविधियों के लिए ईंधन बराबर मिलता रहे। जिस प्रकार रेल्वे इंजन पानी की भाप से चलता है उसी प्रकार शरीर के अवयव कार्बोहाईड्रेट, चर्बी, प्रोटीन के सूक्ष्मतम कणों के कैलोरीज में बदलने से चलते हैं। जब ये तत्व समुचित या अधिक मात्रा में मिलते हैं, तब कैलोरीज को, अतिरिक्त फैट स्टोरेज के रुप में जमा कर लिया जाता है। तुरन्त नष्ट नहीं कर दिया जाता है। स्टोरेज है- चमड़ी के नीचे चमड़ी की परत के रुप में जमा माँसपेशियों के साथ-साथ चर्बी के रुप में, पेट में ओमेण्टम या पेरिटोनियम के बाहर फैट के पैड के रुप में। जब अनाहार अथवा अधिक परिश्रम के कारण कैलोरीज की आवश्यकता होती है तो यही चर्बी जलकर गर्मी जाती है। इसी स्टोरेज के कारण शरीर कई दिनों तक खा रहकर भी शरीर के संस्थानों को गतिमान बनाये रख सकता है। अपने शरीर की अवस्था के कारण स्वयं को जीवित बनाये रखते हैं। वियतनाम से भागी एक शरणार्थी लड़की प्रशान्त महासागर पर एक टापू पर 38 दिन तक निराहार पड़ी रही। उसके साथ आये परिवार के सभी सदस्य एक एक करके मौत के मुँह में चले गये। पर यह असाधारण लड़की मात्र कभी-कभी हो जाने वाली वर्षा के जल पर अपने को जीवित बनाये रही, जब तक कि एक अमरिकी जहाज ने उसे बचा न लिया। शरीर के स्टोर सथासम्भव अन्दर से ही उपलब्ध होने वाली आपातकालीन व्यवस्था बनाये रखते हैं।
हमारी आँखें हमेशा नम, गर्म, धूल भरे वातावरण के सर्म्पक में रहती है। इनके सम्वेदनशील काँनिया वाले काले हिस्से को बचाये रखने के लिये एक पतली परत आँसुओं की लेक्राइमल से स्त्रावित रस से बनती हैं। ये ग्रन्थियाँ ऊपरी पलक के अन्दर छिपी होती हैं। जब मन दुःखी होता है, फूट पड़ने को जी चाहता है तो सम्वेदना केन्द्र से आये सन्देशों के प्रभाव से ये ग्रन्थियाँ रस स्त्राव आरम्भ कर देती हैं। अगर आँसू न हों, उनका रिजर्व स्टोर न किया जाये तो आँखें सूखेपन के कारण शीघ्र अन्धी हो जायेंगी। जिनकी ग्रन्थियाँ व्याधि के कारण स्त्राव बन्द कर देती है उनकी काँनिया में छाले पड़ जाते हैं, इससे आँसुओं की स्वस्थ आँखों के लिए आवश्यकता का पता चलता है।
उपरोक्त उदाहरणों के अतिरिक्त ऐसी कई व्यवस्थाएँ मानव शरीर में भरी पड़ी है जो बचत सिद्धान्त का ही पालन करती हैं। यदि शरीर ने ऐसा न किया होता तो उसकी भी वही हालत होती किसी कर्ज में डूबे अपव्ययी की होती है।
इसी से कुछ सीखकर मानव अपव्यय की हानिकारक प्रवृति पर नियंत्रण लगा सकता है। जीवन में आवश्यकताएँ अनन्त है, पर अनिवार्य और साधारण का अन्तर समझकर ऐसी व्यवस्था विवेकशील व्यक्ति को बनानी चाहिए कि अनिवार्य की पूर्ति समय पर की जा सके। यह बचत से ही सम्भव है।