युग-निर्माताओं से (kavita)

August 1979

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यही घड़ी है निर्माताओ! नवयुग के निर्माण की। आओ! नवयुग की प्रतिमा में करें प्रतिष्ठा प्राण की॥1॥

महाकाल ने परिवर्तन का क्रम फिर से दोहराया है। इस धरती पर स्वर्ग-सृजन का संदेशा पहुंचाया है॥ नव-निर्माण को सके, ऐसा वातावरण जुटाया है। निर्माताओं के प्राणों में फिर तूफान उठाया है॥ नहीं उपेक्षा करना है अब सृष्टा के आह्वान की॥2॥

सृजन-स्वेद की सरिताओं में फिर तूफान उठाना है। जन-मानस की सृजन-सुधा का फिर से पान कराना है॥ युग-युग से इस तृषित-धरा की फिर से प्यास बुझाना है। इस धरती पर हमें प्रीति की पावन-फसल उगाना है॥ मुखर हो रही नई ऋचाएं जन मंगल के गान की॥3॥

यही समय है मनुज-धरा को स्वर्ग समान बनायें हम। और सुप्त-देवत्व मनुज का जन-जन बीज उगायें हम॥ मानवता का पाप पतन से पीछा चलो! छुड़ायें हम। सृजन-शिखर पर नैतिकता की धर्म-ध्वजा फहरायें हम॥ नई कथाएं गढ़ें चलो! हम मानव के उत्थान की॥4॥

सद् प्रवृत्तियां मुखर हो सकें, मानव के आचारों में। और श्रेष्ठ चिंतन की ही हो छाया मनुज-विचारों में॥ दया, क्षमा, करुणा, संवेदन हों मानव-उद्गारों में। हो न कहीं नीलाम आस्था, श्रद्धा फिर बाजारों में॥ मानव में हो प्राण प्रतिष्ठा भावों के भगवान की॥5॥

-मंगल विजय

*समाप्त*


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