गायत्री नगर की तीर्थ सेवन की नई व्यवस्था

August 1979

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आज अन्य धर्म-परम्पराओं की भाँति तीर्थ यात्रा भी लक्ष्य विहीन और निहित स्वार्थों के अधीन बनकर रह गई है। साँस्कृतिक पुनरुत्थान में ‘तीर्थ सेवन’ की साधना को नया जीवन और नया प्रकाश मिलना अपेक्षित है। .... अभियान का आरम्भ तो शक्ति पीठों की प्रक्रिया तथा महापुरश्चरण आयोजनों की व्यवस्था के लिए नियोजित किया, गया पर अन्ततः उसका मूल उद्देश्य धर्म-प्रचार को संपर्क यात्रा के रूप में ही होना है। यही प्रयास तीर्थयात्रा है। तीर्थयात्रा की प्रव्रज्या प्रकारान्तर से अन्योन्याश्रित है।

तीर्थ स्थानों का निर्माण मात्रा इस प्रयोजन के लिए किया गया था कि धर्म प्रेमी कुछ समय प्राणवान वातावरण में निवास करें। अपना मानसिक भार हलका करें और भावी जीवन के लिए उपयुक्त प्रकाश तथा अनुदान प्राप्त करें। तीर्थ संचालक मनीषी, आगन्तुकों के निवास भोजन आदि का प्रबन्ध करते थे और उस स्वल्प अवधि को ही प्रवास आनन्द तथा प्रेरणाप्रद प्रशिक्षक को हर दृष्टि से मंगलमय बना देते थे। तीर्थयात्री, तीर्थ सेवन की प्रक्रिया पूरी करते लौटते थे तो प्रत्यक्ष परिवर्तन का पुण्य फल असंदिग्ध रूप से प्राप्त करते थे। आज की स्थिति लौटती है लोग धन, समय और धर्म विश्वास को बड़ी मात्रा गँवा कर ही वापिस लौटते हैं।

आवश्यक समझा गया कि तीर्थ सेवन को प्राचीन काल के पुनीत परम्परा के अनुकूल बनाया जाए। इसके लिए शान्ति-कुंज की गतिविधियों में एक नये प्रयोग का नये सिरे से समावेश किया जा रहा है। गायत्री नगर में 240 तीर्थयात्रियों के निवास, भोजन, पर्यटन तथा प्रशिक्षण का प्रबन्ध किया जा रहा है, अब तक महिला बच्चों समेत आने पर प्रतिबन्ध लगता रहा है। पर तीर्थ सेवन की व्यवस्था बन पड़ने पर यह प्रतिबन्ध सहज ही उठ जायगा। लोग प्रसन्नतापूर्वक अपने परिवार तथा सम्बन्धियों के साथ हरिद्वार आ सकेंगे। स्वच्छ निवास सस्ता भोजन, पर्यटन के लिए सुव्यवस्थित वाहन, साथ में उपयुक्त मार्गदर्शन का प्रबन्ध करने की नई व्यवस्था बनाई जा रही ही है। इस प्रयोजन के लिए 50 नये कमरे स्नान, शौच, बरामदा तथा रसोई बनाने की सुविधा समेत बनाये जाने हैं। इन कक्षों की लागत सात हजार .... गई है।

तीर्थ यात्रा सत्र पाँच-पाँच दिन के रहा करेंगे। प्रातः काल से लेकर दस बजे तक सभी को नित्य कर्म, साधना, यज्ञ, प्रशिक्षण भोजन आदि से निवृत्त करा दिया जायगा। दस से छः तक आठ घंटे में हरिद्वार क्षेत्र के दूर-दूर तक फैले हुए ज्ञात एवं अविज्ञात तीर्थों के दर्शन बस द्वारा करा दिये जायेंगे। न केवल दर्शन वरन् उनकी पूर्ण गाथा तथा प्रेरणा से भी यात्रियों को लाभान्वित कराया जाता रहेगा।

कितने ही लोग तीर्थों में प्रायश्चित करने, बच्चों के संस्कार कराने, मृतकों के अस्थि विसर्जन करने, श्राद्ध तर्पण आदि के उद्देश्य से आते हैं। वे कार्य विधिवत् भी नहीं हो पाते, लूट खसोट के जंजाल में फँसकर खीज और अश्रद्धा लेकर वापिस लौटते हैं। शान्ति कुंज की प्रस्तुत ‘तीर्थ सेवन, व्यवस्था में यह सभी प्रयोजन बिना किसी खर्च की परम्परा के अनुरूप सम्पन्न हो जाया करेंगे। व्यक्तिगत समस्याओं के संदर्भ में उपयुक्त मार्गदर्शन प्राप्त करने की जो व्यवस्था सदा से रही है वह इन तीर्थ यात्रियों को भी यथावत् उपलब्ध होती रहेगी।

ब्रह्मवर्चस् साधना सत्र एक-एक महीने के ब्रह्मवर्चस आरण्यक की सिद्धि पीठ में चला करेंगे। परिव्राजकों के न्यूनतम एक महीने के सत्र शान्ति कुंज में चला करेंगे। गायत्री नगर में कार्यकर्त्ताओं के परिवारों का निवास निर्वाह एवं प्रशिक्षण क्रम तो पूर्ण योजना के अनुरूप चलेगा ही, इसके अतिरिक्त खाली जगह में ‘तीर्थ सेवन’ के लिए उपयुक्त व्यवस्था बनाने का निश्चय किया गया है। इसके लिए न केवल निवास के लिए धर्मशाला जैसा स्थान बनाया जा रहा है वरन् सस्ते भोजन, नाई, धोबी दूध, आवश्यक सामान, वाहन आदि के आवश्यक साधन वहीं उपलब्ध रहें, ऐसा प्रबन्ध किया जा रहा है। पाँच सौ व्यक्तियों के एक साथ बैठ कर सत्संग करने तथा नौ कुण्डी यज्ञशाला बनाना, फुहारा तथा उद्यान भी इसी निर्माण योजना में सम्मिलित है।

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व से इस योजना को कार्यान्वित करने का श्री गणेश कर दिया गया है। दिवाली या कार्तिकी पूर्णिमा से युग निर्माण परिवार के परिजनों को तीर्थ सेवन के लिए आमन्त्रित किया जा सकेगा। इस महंगे निर्माण में उदार धनीमानियों के सहयोग की अपेक्षा की गई है।


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