स्थूल से परे शरीर और भी है।

July 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

भौतिकवादी जीवन दर्शन इसलिए भ्रान्त और अपूर्ण है कि वह पंच तत्त्वों से बने शरीर को ही सब कुछ समझता है और खाओ , पीओ मौज करो की रीति नीति को ही जीवन का मूल मंत्र मानता है। जबकि असलियत कुछ और है। बाह्य दृष्टि हिम पर्वत के उसी भाग को देखती है, जो समुद्र की सतह से ऊपर रहता है। जबकि उसका तीन चौथाई भाग समुद्र के पानी में रहता है। भौतिक विज्ञान इस बाह्य स्वरूप, जो आँखों से देखा जाता और इन्द्रियों से अनुभव किया जाता है तक ही पहुँच कर रह जाता है। वास्तविकता तो इससे अधिक अदृश्य और इन्द्रियों के अनुभव से परे है।

मान्य किया जाय या न किया जाय इससे क्या होता है ? सचाई तो सचाई है और ज वह सामने आती है। तो भौतिक दृष्टि से सोचने वाले हक्के बक्के रह जाते हैं और आत्मा के अस्तित्व को, चेतना की शक्ति को न समझने के कारण हतप्रभ हो उठते हैं। घटना 7 नवम्बर 1918 की है। तब पहला विश्व युद्ध चल रहा था। एक फ्रांसीसी लड़का टैड जिसका पिता फ्रांस के मोर्चे पर लड़ रहा था, खेलते खेलते एक दम चिल्लाया-मेरे पिता का दम घुट रहा है। वे एक तंग कोठरी में बन्द हो गये है ओर उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। घर के लोग कुछ भी नहीं समझ पाये। टैड इतना कह कर बेहोश हो गया था। कुछ देर बेहोश रहने के बाद उसे होश आया ओर बोला-अब वे ठीक हो जायेंगे घर के लोगों ने टैड के बेहोश होने से पूर्व कहे गये शब्दों और बाद में होश आने पर कहे शब्दों से इतना ही अन्दाज लगाया कि टैड ने अपने पिता के सम्बन्ध में कोई दुःस्वप्न देखा होगा। बात जहाँ की तहाँ समाप्त हो गयी।

प्रथम विश्वयुद्ध, जब समाप्त हुआ और टैड के पिता घर लौटे तो स्वजनों को उस दिन की घटना याद आ गयी, जब टैड के पिता ने बताया कि 7 नवम्बर को मैं मरते मरते बचा। पूछा गया कि क्या बात हुई थी तो उन्होंने बताया कि मैं उस दिन एक गैस चैम्बर में फँस गया था, जिसमें मेरा दम घुटने लगा था। मुझे दिखायी देना भी बन्द हो गया था। तभी मैंने देखा कि टैड जैसा एक लड़का उस युद्ध की विभीषिका में न जाने कहा से आ पहुँचा और उसने चैम्बर का मुँह खोल कर, मुझे हाथ पकड़ कर बाहर खींचा। तभी मेरी यूनिट के सैनिकों की दृष्टि मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे अस्पताल पहुँचाया। यह विवरण सुन की ही घर वालों को उस दिन टैड के चीखने, बेहोश होने तथा होश में आने पर आश्वस्त ढंग से बात करने की घटना याद आयी।

इटली के एक पादरी अलफोन्सेस लिगाडरी के साथ 21 सितम्बर 1974 को ऐसी ही घटना घटी। उस दिन वे ऐसी गहरी नींद में सोये कि जगाने की बहुत कोशिशें करने के बाद भी न जगायें जा सकें। यह भ्रम हुआ कि कही वे मर तो नहीं गये है। इस भ्रम की परीक्षा के लिए उनकी जाँच की गयी तो पता चला कि वे पूरी तरह जीवित हैं। कई घण्टों तक वे इसी स्थिति में रहें। उन्हें जब होश आया तो देखा कि आसपास लगभग सभी साथी सहयोगी खड़े हुए हैं। उन्होंने अपने साथियों से कहा-मैं आपको एक बहुत ही दुःखद समाचार सुना रहा हूँ कि हमारे पूजनीय पोप का अभी अभी देहान्त हो गया है।” साथियों ने कहा-आप तो कई घण्टों से अचेत है, आपको कैसे यह मालूम हुआ।

लिगाडरी ने कहा-मैं इस देह को छोड़ कर रोम गया हुआ था और अभी अभी वहीं से ही लौटा हूँ। उनके साथियों ने समझा कि वे कोई सपना देख कर उठे है और सपने में ही उन्होंने पोप की मृत्यु देखी होगी। चार दिन बाद ही यह खबर लगी कि पोप का देहान्त हो गया है और वह उसी समय हुआ जब कि लिगाडरी अचेत थे तो उनके मित्र साथी चकित रह गये।

एक स्थान पर रहते हुए भी मनुष्य अपनी आत्मा की शक्ति द्वारा दूरवर्ती क्षेत्रों में सन्देश पहुँचा सकता है। उपरोक्त घटनाओं में जाने अनजाने सूक्ष्म शरीर ही सक्रिय रहा है। यदि सूक्ष्म शरीर की शक्ति की जागृत कर लिया जाय तो उससे जब चाहे तब मन चाहे करतब किये जा सकते हैं। 1929 में अल्जीरिया में कैप्टन दुबो के साथ ऐसी ही घटना घटी, जिससे सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व ओर उसकी शक्तिमत्ता का प्रमाण मिलता है। कैप्टन दुबो जय अल्जीरिया के एक छोटे से गाँव का मुखिया अब्दुल उन्हें धन्यवाद देने के लिए उनके साथ साथ आया, बातों ही बातों में अब्दुल ने कैप्टन से सूक्ष्म शरीर के अनेक चमत्कारों का उल्लेख कर दिया। दुबो ने अब्दुल की बातों में कोई रुचि नहीं दिखाई और उल्टे इसे गप्पेबाजी कहा। इस पर अब्दुल ने कहा कि मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूँ। कैप्टन ने जब उसकी यह बात सुनकर भी अविश्वास से सिर हिलाया तो अब्दुल कुछ देर के लिए ध्यानस्थ हुआ ओर फिर आँखें खोलकर बोला-आप अपने पीछे मुड़कर देखिए। जैसे ही उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उन्होंने दीवार पर एक ऐसी कलाकृति टंगी पायी जो उन्हें बहुत प्रिय थी और इस समय वहाँ से हजारों मील दूर पेरिस में उनके घर पर थी।

उस दिन कैप्टन दुबो के पिता पियरे ने पेरिस की पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि उनके घर से 10 लाख रुपये मूल्य की एक अद्वितीय कलाकृति चोरी चली गयी। पुलिस कमिश्नर पियरे के अच्छे मित्र थे, उन्होंने शिकायत मिलते ही अपने सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर कलाकृति की खोज में लगा दिये। कई दिन तक लगातार खोज चली, पर कलाकृति की खोज न की जा सकी। जिस कमरे में कलाकृति टंगी थी, उसमें किसी के जबरन प्रवेश करने या उँगलियों के निशान नहीं मिले थे। पियरे ने इस कलाकृति की चोरी की खबर अपने पुत्र को भी दी। तब सारी बात जान कर कैप्टन दुबो, पुलिस कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ।

इन घटनाओं के कारण जो अनेक देशों एवं अनेक लोगों के साथ घटी है, वैज्ञानिकों का ध्यान भी इस और जाने लगा है। विज्ञान भी यह सोचने के लिए विवश हुआ है कि क्या स्थूल शरीर से परे भी मनुष्य का कोई अस्तित्व है, जो उसके संदेशों को सुदूर क्षेत्रों में पहुँचाता है। तथा ऐसे ऐसे काम कर डालता है जो शरीर द्वारा ही किये जा सकते हैं। बिना किसी स्थूल माध्यम के एक मनुष्य के विचारों और संदेशों को पहुँचाने की इस प्रक्रिया का नाम है, विश्वविद्यालय में फिजियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो0 लियोनिद वासिलयेन ने अभी कुछ समय पूर्व एक अनूठा प्रयोग किया है। स्मरणीय रूस का शासनतंत्र धर्म, ईश्वर और आत्मतत्त्व की मान्यता को न केवल अनावश्यक मानता है वरन् उसे अफीम भी बताता है। फिर भी इस तरह की घटनाओं के कारण वास्तविकता की ओर उनका ध्यान गये बिना नहीं रहा। प्रो0 वासिलयेन ने टेलीपैथी द्वारा कई मील दूर स्थित एक प्रयोगशाला में कार्यरत अनुसंधानकर्ताओं को सम्मोहित कर दिया और वे लोग जो प्रयोग कर रहे थे, उनसे वह प्रयोग स्थूल शरीर से परे मनुष्य के सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व अब विज्ञान द्वारा भी प्रभावित होने लगा है। सन 1963 से अब तक रूस के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कई सफल प्रयोग किये हैं। वहाँ के एक इलेक्ट्रान विशेषज्ञ से मयोन किर्लियान ने अपनी वैज्ञानिक पत्नी बेलिण्टाना के सहयोग से फोटोग्राफी एक विशिष्ट प्रविधि का आविष्कार किया। इस विधि द्वारा सजीव प्राणियों के आस पास होने वाले सूक्ष्म कम्पनों और देह ऊर्जा के क्रिया कलापों का छायांकन किया जा सकता है।

एक दूसरे प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक रुग्ण पत्नी की फिल्म खींची इसमें प्रकाश कणों का वह वलय आरम्भ से जीर्ण था और वह शीघ्र ही समाप्त भी हो गया। अगले प्रयोग में किर्लियान दम्पत्ति ने एक मनुष्य के पास से उसके शरीर के चित्र इसी विशेष विधि से लिये । ये छाया चित्र उसके शरीर के विभिन्न भागों के लिये गये थे। गर्दन, हृदय और उदर प्रदेश के अत्यन्त निकट से खींचे गये इन चित्रों में बहुत ही सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिये, जो इन अंगों से विसर्जित होने वाली विद्युतीय ऊर्जा के द्योतक थे। इन छाया चित्रों से वह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक प्राणी के दो शरीर होते हैं। पहला प्राकृतिक अथवा भौतिक जो आँखों से दिखाई देता है। और दूसरा सूक्ष्म शरीर जिसकी सब विशेषताएँ प्राकृतिक शरीर जैसी होती है, पर जो दिखाई नहीं देता। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह सूक्ष्म शरीर ऐसे सूक्ष्म पदार्थों से बना होता है जो इलेक्ट्रान की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं। उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर, भौतिक शरीर से अलग होकर कही भी विचरण कर सकता है।

रूस के अतिरिक्त अमेरिका में भी इस विषय पर काफी वैज्ञानिक खोजे चल रही हैं। न्यूयार्क राज्य विश्व विद्यालय ने परामानसिक तत्त्वों की खोज के लिए एक स्वतंत्र विभाग ही खोला है जिसके अध्यक्ष डा0 राबर्ट बेफर हैं। अधिकांश लोगों का दृष्टि केन्द्र चर्मचक्षुओं से दिखाई पड़ने वाला भौतिक शरीर है और वे इसी की सुख सुविधा के लिए सारे जोड़ तोड़ बिठाते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर के अस्तित्व और उसकी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाय तो काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। क्योंकि जब मनुष्य केवल इस शरीर को ही सुखी बनाने के लिए प्रयत्न नहीं करेगा वरन् वह अपनी आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील होगा। भारतीय अध्यात्म इस क्षेत्र में पहले ही काफी आगे बढ़ चुका है। कहना न होगा, प्राचीन कालं में जन सामान्य का सदाचार निष्ठ और सत्य परायण होना अध्यात्म के गहन आधारों पर अवलम्बित रहने का सुपरिणाम ही था।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118