ईश्वर की दिव्य सत्ता जो श्रद्धा करने योग्य है।

July 1977

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विद्युत एक अदृश्य तत्त्व है। किन्तु अन्धकार दूर करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनानी पड़ती है और उस अदृश्य विद्युत का प्रभाव दृश्य प्रकाश के रूप में परिणत हो जाता है। चुम्बकत्व यों एक ऐसी शक्ति है जिसे देखा नहीं जा सकता किन्तु उसे ही एक लोहे की सुई में पिरो दिया जाता है तो वही दिशा बोध कराने वाली कुतुबनुमा बन जाती है। परमात्मा एक अदृश्य तत्त्व है किन्तु अन्तः करण की श्रद्धा और मन का विश्वास एकाकार होते हैं तो उस सत्ता के प्रभाव पुण्यफल देखते ही बनते हैं।

कौरवों की सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, वह अबला असहाय खड़ी थी, मनुष्य की नहीं ईश्वर की सहायता प्राप्त हुई और उसकी लाज बच गई। दमयन्ती बीहड़ वन में अकेली थी, सहायक कोई नहीं। उसकी नेत्र ज्योति में से भगवान प्रकट हुए और व्याध जलकर भस्म हो गया। दमयन्ती पर कोई आँच नहीं आई। प्रहलाद के लिये उसका पिता ही जान का ग्राहक बना बैठा था, बच कर कहाँ जाय? खम्भे में से नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रहलाद की रक्षा हुई। घर से निकाले हुए पाण्डवों की सहायता करने, उनके घोड़े जोतने भगवान स्वयं आये। नरसी महता की सम्मान रक्षा भगवान ने अपनी सम्मान रक्षा की तरह ही मानी। ग्राह के मुख से गज के बन्धन छुड़ाने के लिये प्रभु नंगे पैरों दौड़े आये थे।

मीरा को विष का प्याला भेज गया और साँपों का पिटारा, पर वह मरी नहीं। न जाने कौन उनके हलाहल को चूस गया और मीरा जीवित बची रही। गाँधी को अनेक सहयोगी मिले और वे दुर्दान्त शक्ति से निहत्थे लड़ कर जीते। भगीरथ की तपस्या से गड़ा द्रवित हुई और धरती पर बहने के लिये तैयार हो गई। शिवजी सहयोग देने के लिये आये गड़ा को जटाओं में धारण किया, भगीरथ की साध पूरी हुई। दुर्वासा के शाप से संत्रस्त राजा अम्बरीष की सहायता करने भगवान का चक्र सुदर्शन स्वयं दौड़ा आया था। समुद्र से टिटहरी के अण्डे वापिस दिलाने में सहायता करने के लिये भगवान अगस्त्य मुनि बनकर आये थे। नल और नील ने समुद्र पर पुल बाँधने का असम्भव दीखने वाला काम सम्भव कर दिया था। हनुमान को समुद्र छलाँगने की शक्ति भी किसी अदृश्य शक्ति से ही उपलब्ध हुई थी।

यह उदाहरण प्राचीन पौराणिक गाथाएँ कहकर झुठलाये जा सकते हैं और उनकी सत्यता से इनकार किया जा सकता है। हमारा देश सदियों से भाव प्रधान और आस्तिक आध्यात्मिक विचारों की जन्मभूमि रहा है अतएव इन घटनाओं को किंवदन्तियों की भी संज्ञा दी जा सकती है। किन्तु सनातन सत्ता तो काल गति और ब्रह्माण्ड से सर्वथा अतीत है जिस तरह वह प्राचीन काल में थी, आज भी है और उसकी अदृश्य सहायताएँ पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण तक आज भी प्राप्त करते रहते हैं। टंग्स्टन तार पर धन व ऋण विद्युत धाराओं के अभिव्यक्त होने की तरह यह ईश्वरीय अनुदान जिन दो धाराओं के सम्मिश्रण से किसी भी काल में प्रकट होते रहते हैं वह है श्रद्धा और विश्वास। यह सत्ताएँ जहाँ कही जब कभी हार्दिक अभिव्यक्ति पाती है परमेश्वर की अदृश्य सहायता वहाँ उभरे बिना नहीं रह सकती। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण लेडीवीटर ने अपनी पुस्तक "अनविजिवल हेल्पर्स”(अदृश्य सहायक) पुस्तक में दिये है जिनसे इस युग में भी अतीन्द्रिय सत्ता के अस्तित्व पर विश्वास हुए बिना नहीं रहता और लेडिरुथ मान्ट गुमरी की पुस्तक “सत्य की खोज में” (इन सर्च आफ ट्रुथ) में 20 वीं शताब्दी की सबसे आश्चर्यजनक घटना के रूप में “सराक्यूज की रोती हुई प्रतिमा” (वीपिगं स्टेच्यू आफ सराक्यूज) में दिया है। एक सरल हृदय अपंग किन्तु श्रद्धालु महिला की भाव भरी प्रार्थना से विह्वल होकर उसकी प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमा की आँखों से आँसू बह निकले। डच विद्वान् फादर ए. सोमर्स ने स्वयं मूर्ति और उसके आँसुओं का परीक्षण करने के बाद उसे विस्तार से समाचार पत्रों में छपाया और एच जोर्गन ने उसका अँगरेजी रूपान्तरण प्रकाशित कराया।

29 मार्च 1953 को कुमारी एण्टोर्निएटा का श्री एँग्लोजेन्यूसी के साथ पाणिग्रहण संस्कार हुआ। इस अवसर पर उपहार की अन्य वस्तुओं में यह छोटी सी प्लास्टर आफ पेरिस की अन्दर से पोली ऊपर एनामिल चढ़ी प्रतिमा भेंट में मिली थी एण्टोर्निएटा को मीरा के गिरधर गोपाल की तरह यह मूर्ति बहुत प्यारी लगी और वह उसकी इष्टदेवी बन गई।

विवाह के बाद एन्टोर्निएटा गर्भवती हुई। गर्भ जैसे जैसे विकसित हुआ वह अत्यधिक दुर्बल होती गई। आँखें धँस गई, मुँह पीला पड़ गया, एक दिन तो मुँह से बोलना और आँख से दिखाई देना भी बंद हो गया। यही नहीं उन्हें मिर्गी के फिट्स भी पड़ने लगे। डाक्टरों ने जाँच करके बताया गर्भ में जहर फैल गया है और लड़की का बचना असम्भव है उस दिन उसे भयंकर दौरा भी पड़ा। दौरा शान्त हुआ उस समय एन्टोर्निएटा अत्यधिक शान्त किन्तु भाव विह्वल थी। भीतर ही भीतर मन व्याकुल था और परमात्मा की गुहार कर रहा था। अन्तः करण से शिकायत उठ रही थी। हे प्रभु ! तू कितना निर्दय है कि अपनी सन्तान को पीड़ित देखकर भी तुझे दुःख नहीं होता। यह भावना उमड़ी ही थी कि मेडेना-उस मूर्ति की आँखों से एकाएक आँसू झर-झर झर उठे। यह दृश्य देखकर सारा वातावरण स्तम्भित हो गया। धीरे धीरे खबर मुहल्ले पड़ोस, नगर और समूचे प्रान्त सराक्यूज तथा अमेरिका में फैल गई। दुनिया भर के अखबारों ने इस अद्भुत घटना का उल्लेख किया। 29 अगस्त से मूर्ति के आँसुओं का निरीक्षण परीक्षण प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम डा.मारियो मेसीना-जो बाइआ कारसो में रहते थे उन्होंने मूर्ति का भीतर बाहर, ताज हटाकर पूरी तरह निरीक्षण किया। मूर्ति में कहीं कोई नमी नहीं पर आँसू रुकने का नाम ही न लेते थे। जन्यूसो घर से बाहर था। वह घर पहुँचा तो पत्नी की पीड़ा और बदले में मूर्ति का रुदन देखकर दहाड़ मार कर रो उठा। उसी रात पुलिस ने घेरा डाल कर मूर्ति का निरीक्षण किया। अधिकारी गण तक इस घटना से भाव विह्वल हो उठे। किसी की समझ में नहीं आया, मूर्ति में आँसू कहाँ से आ रहे हैं। दूसरे दिन, ”ला सिसीलिआ” दैनिक पत्र के सम्पादक ने स्वयं निरीक्षण कर अपने पत्र में लिखा-आँसू वास्तविक हैं, कहीं कोई छल-छद्म नहीं। परमात्मा की शक्ति विलक्षण है।

श्री मासूमेकी, और 10 पुरोहितों के डेलीगेशन इटालियन क्रिश्चियन लेबर यूनियन के अध्यक्ष प्रोफेसर पावलो अलबानी आदि ने भी तथ्यों की जाँच की और सही पाया। लगातार कई दिनों तक अश्रुपात होते रहने के कारण आश्चर्य और भीड़ एक साथ बढ़ रही थी। समाचार पत्र सात दिन तक इस विस्मयकारी घटना की आँखों देखी खबरें छापते रहे। 1 सितम्बर को एक जाँच आयोग (ट्रिव्यूनल) नियुक्त किया गया जिसके सदस्य थे-(1) जोऐफ ब्रूनो. पी. पी. (२)डा. माइकल कैऐला, डायरेक्टर आफ माइक्राग्रेफिक डिपार्टमेंट (३)डा. फ्रैंक कोटजिया असि डायरेक्टर (4)डा. लूड डी उर्सो।

इसके अतिरिक्त निस सैम्परिसी चीफ कान्स्टेबुल, प्रो. जी. पास्क्विलीनों, डी फ्लोरिडा, डा. ब्रिटनी (केमिस्ट), फैरिगो उम्बर्टो (स्टेट पुलिस के ब्रिगेडियर) तथा प्रेसीडेन्ट आफिस के प्रथम लेफ्टिनेंट कारमेलो रमानो भी थे। पिपेट की सहायता से दोनों आँखों से एक एक सी. सी. आँसू एकत्र किये गये उनका विश्लेषण करने से पता चला कि आँसू वास्तविक है और किसी 3-4 वर्ष के बालक के से ताजे आँसू है पर वह कहाँ से क्यों निसृत हो रहे हैं ? यह कोई नहीं जान सका। स्वयं मूर्तिकार भी विस्मित था। उसकी सैकड़ों मूर्तियाँ बाजार में थी, पर ऐसी अद्भुत घटना का कारण कोई नहीं समझ सका। प्रो. एल. रोजा ने एम. डी. कास्त्रो को इस घटना का विवरण इस प्रकार भेजा-

पू0 श्री एम. डी. कास्त्रो

प्रीस्ट आफ सेन्टिगों डी सूडाड रिकाल स्पेन।

आपकी प्रार्थना पर यह सब लिख रहा हूँ। कमीशन ने आँसू इकट्ठे किये हैं। मूर्ति दो पेंचों से जुड़ी हुई थी। मूर्ति का प्लास्टर बिलकुल रूखा था। आँसुओं का परीक्षण आर्क विशप क्यूरियो द्वारा नियुक्त कमीशन ने किया है। माइक्रो किरणों से देखने पर इन आँसुओं में वह सभी तत्त्व पाये गये है जो तीन वर्ष के बच्चे के आँसुओं में होते हैं यहाँ तक कि क्लोरेटियम के पानी का घोल। प्रोटीन व क्वाटनरी साफ झलक दे रहा था। मेरी पूर्ण जानकारी में मेरे हस्ताक्षर साक्षी हैं-

हस्ताक्षर प्रो. एल. रोज्ञा,

सात दिन तक घटना चक्र चला। बिना किसी चिकित्सा के एण्टोनिपेटा चंगी हो गई पर यह पहेली न सुलझ सकी कि इन आँसुओं का कारण क्या है? अपनी सत्ता को उस परमात्मा के अतिरिक्त कौन समझ सकता है?

सन् 1874 की बात है। इंग्लैण्ड का एक जहाज धर्म प्रचार के सिलसिले में न्यूजीलैण्ड के लिये रवाना हुआ। उसमें 214 यात्री थे। वह विस्के की खाड़ी से बाहर ही निकला था कि जहाज के पेंदे में छेद हो गया। मल्लाहों के पास जो पम्प थे तथा दूसरे साधन थे उन सभी को लगाकर पानी निकालने का भरपूर प्रयत्न किया, पर जितना पानी निकलता था उससे भरने की गति तीन गुनी तेज थी।

निराशा का वातावरण बढ़ता जाता था। जब जहाज डूबने की बात निश्चित हो गई तो कप्तान ने सभी यात्रियों को छोटी लाइफ बोटों में उतर जाने और उन्हें खेकर कहीं किनारे पर जा लगने का आदेश दे दिया। डूबते जहाज में से जो जाने बचाई जा सकती हो, उन्हें ही बचा लिया जाय। अब इसी की तैयारी हो रही थी।

तभी अचानक पम्पों पर काम करने वाले आदमी हर्षातिरेक से चिल्लाने लगे। उन्होंने आवाज लगाई कि जहाज में पानी आना बन्द हो गया। अब डरने की कोई जरूरत नहीं रही। यात्रियों ने चैन की साँस ली और जहाज आगे चल पड़ा। कार्ल्सडाक बन्दरगाह पर उस जहाज की मरम्मत कराई गई तब पता चला कि उस छेद में एक दैत्याकार मछली की पूँछ फँसकर इतनी कस गई थी कि न केवल छेद ही बन्द हुआ वरन् मछली भी घिसटती हुई साथ चली आई।

“अनविजिवल हेर्ल्पस” सी. डब्लू. लेडी बीटर ने लन्दन की हालबर्न स्ट्रीट का एक उदाहरण देते हुए लिखा है- एक बार इस सड़क के कुछ मकानों में भयंकर आग लगी। जिससे दो मकान पूरी तरह जलकर राख हो गये। एक बुढ़िया को छोड़कर शेष सभी को बचा लिया गया किन्तु सामान कुछ भी नहीं बच सका। उस रात जिस दिन आग लगी मकान मलिक के एक मित्र किसी कार्यवश कालचेसटर गये थे वे अपने बच्चे को उन्हीं के पास छोड़ गये थे। मकान पूरी तरह जल गया और सभी लोगों की गणना की गई तब उस बच्चे की याद आयी। उसे अटारी पर सुलाया गया था। उसकी खोज की गई तो यह देखकर सब की आँखें फटी की फटी रह गई कि जिस चारपाई पर बच्चा सोया था उसके चारों ओर एक गोले भाग में आग का रत्ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ा था और बच्चा पूरी तरह सुरक्षित इस तरह सो रहा था मानो वह अपनी माँ की ही गोद में सो रहा हो। यह तथ्य देखकर लोगों ने अनुभव किया कि वास्तव में कोई सार्वभौमिक सत्ता है अवश्य जो प्राकृतिक परमाणुओं को भी पूरी तरह अपने नियंत्रण में रख सकती है। इस घटना को देख सुनकर होलिका दहन और उसमें से प्रहलाद को जीवित बचा लेने की, खम्भे को चीर कर नृसिंह भगवान के प्रकट होने की पौराणिक आख्यानों की सत्यता सामने आ जाती है।

नृसिंह पूर्वतापिन्युपनिषद् के एक प्रसंग में देवता ब्रह्मा जी से प्रश्न करते है-है प्रजापति ! भगवान को नृसिंह क्यों कहते है? ब्रह्मा जी उत्तर देते है-सब प्राणियों में मानव का बौद्धिक पराक्रम प्रसिद्ध है। सिंह का शारीरिक पराक्रम दोनों के संयोग का अर्थ है प्रकाश और दृश्य रूप में-बुद्धि और बल रूप में अपने भक्तों की रक्षा में तत्पर रहना। नृसिंह कोई साकार स्वरूप हो या नहीं पर प्रकाश और पराक्रम के रूप में उसका अस्तित्व कही भी अभिव्यक्त देखा जा सकता है।

वकिंघम शायर बर्नहालवीयों के निकट एक किसान के छोटे छोटे दो बच्चे खेत पर से खेलते खेलते दूर जंगल में भटक गये। रात को पता चला। किसान दम्पत्ति बच्चों को बहुत प्यार करते थे। अज्ञात भय से वे बच्चों को खोजने सड़क पर निकले उनने एक अद्भुत नीलवर्ण प्रकाश देखा-वे उधर ही बढ़े, जितना वे आगे बढ़ते प्रकाश भी उस गति से एक ओर जंगल में बढ़ना शुरू हुआ और एक भयानक जीव जन्तुओं से भरे सुनसान में जाकर स्थिर हो गया। किसान अनुमान करता हुआ जैसे ही उस स्थान पर पहुँचा वह यह देखकर चकित रह गया कि दोनों बच्चे वृक्ष की एक जड़ के सहारे इस तरह शान्त और निश्चिन्त सोये हैं मानों कोई उनकी पहरेदारी की रहा हो।

लारेंको मार्क्वोस (मोजाम्बिक) की घटना है। एक पंगु अफ्रीकी को लकवा मार गया। पैर मुड़ जाने से वह घिसट कर चलता था। अर्नेस्टो टिटोस मुल्होव नामक यह अफ्रीकी बड़ा ईश्वर भक्त था। उसकी भक्ति और वर्तमान स्थिति पर उसके मित्र अक्सर टीका टिप्पणी करते रहते। वपूतिस्मा (ईसाई धर्म में दीक्षा का ड़ड़ड़ड़) के दिन उससे रहा नहीं गया वह भाव विह्वल अन्तःकरण से प्रोटेस्टेण्ट चर्च की ओर घिसटता हुआ भागा। जितना वह भागता उसकी प्राण शक्ति उतनी ही सक्रिय होती गई और चर्च तक पहुँचते न जाने किस अद्भुत शक्ति ने उसे खड़ा कर दिया, जिसे डाक्टर भी ठीक नहीं कर सकते थे। अनायास ठीक हो जाने पर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ए. एफ. सी. ने यह समाचार देते हुए स्वीकार किया कि सचमुच संसार में कोई अद्भुत अदृश्य शक्ति है अवश्य जो अपनी सर्वशक्तिमत्ता का परिचय देती रहती है।

26 जून 1954 को देहली से छपने वाले दैनिक हिन्दुस्तान में भी इसी तरह की एक अद्भुत घटना छपी है-पत्रा जिले के धर्मपुर स्थान में कच्ची ईंटों को पकाने के लिये एक भट्ठी लगाया गया था। किसी को पता भी नहीं कि ईंटों के बीच एक चिड़िया ने घोंसला बनाया है और उसमें अण्डे सेये हैं। एक सप्ताह तक भट्ठी जलती रही। ईंटें आग में पकती रही आठवें दिन भट्ठी खोला गया तो एक चिड़िया उसमें से उड़कर भागी। आश्चर्यचकित सैकड़ों लोग वहाँ एकत्र हो गये। लोग तब यह मानने को विवश हो गये कि परमात्मा की अदृश्य सत्ता का संरक्षण सर्व समर्थ है जब उन्होंने देखा कि दो अंडे सुरक्षित रखे हुए हैं और जिस स्थान पर घोंसला बना है उसके एक फीट दायरे में आग पहुँची ही नहीं जब कि सारे भट्ठी में इस तरह का एक इंच स्थान भी न बचा था।

ऐसे असंख्य उदाहरण आये दिन हमारे सामने आते रहते हैं जब अनहोनी उस नियामक के अस्तित्व का संकेत करती रहती है पर स्थूल बुद्धि के व्यक्ति उस सूक्ष्म को कहाँ स्वीकारते है? स्वीकार लें तो न केवल आध्यात्मिक अपितु हमारा व्यावहारिक संसार भी सुख शान्ति से ओत प्रोत हो सकता है।


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