फरिश्ते ने जैसे ही इंसान को देखा तो आश्चर्य से चकित रह गया। इंसान के मस्तक पर छिटकी पसीने की प्रत्येक बूँद में भगवान विराजमान् थे।
महाकवि नागोची।
सोते रहने का नाम कलियुग -आलस्य में पड़े रहने का द्वापर -अनिश्चय की स्थिति में खड़े रहने का नाम त्रेता और निरन्तर गतिशील रहने का नाम सतयुग है।
ऐतरेय ब्राह्मण