अतृप्त आकांक्षाओं से पीड़ित भूत-प्रेत

July 1977

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जो मनुष्य जितनी अधिक वासनाएँ ओर आकांक्षाएँ अपने साथ लेकर मरता है उसके भूत होने की सम्भावना उतनी ही अधिक रहती है। अमृत आकांक्षाओं का उद्वेग मरने के बाद भी प्राणी को चैन नहीं लेने देता और वह सूक्ष्म शरीरधारी होते हुए भी यह प्रयत्न करता है कि अपने असन्तोष को दूर करने के लिए कोई उपाय, साधन एवं मार्ग प्राप्त करे। साँसारिक कृत्य या उपयोग शरीर द्वारा ही हो सकते हैं। मृत्यु के उपरान्त शरीर रहता नहीं। ऐसी दशा में उस अतृप्त प्राणी की उद्विग्नता उसे कोई शरीर गढ़ने की प्रेरणा करती है। अपने साथ लिपटे हुए सूक्ष्म साधनों से ही वह अपनी कुछ आकृति गढ़ पाता है जो पूर्व जन्म के शरीर से मिलती जुलती किन्तु अनगढ़ होती है। अनगढ़ इसलिए कि भौतिक पदार्थों का अभीष्ट अनुदान प्राप्त कर लेना, मात्र उसकी अपनी इच्छा पर ही निर्भर नहीं रहता। उसके लिए प्रकृति का सहयोग ओर ईश्वरीय विधि व्यवस्था का समर्थन भी चाहिए। तीनों तथ्य मिलने पर ही परिपूर्ण शरीर मिलता है। किन्तु मृतक को एकाकी प्रयत्नों तक ही सीमित रहना पड़ता है, अस्तु वह एक अपनी छोटी सामर्थ्य के अनुसार अनगढ़ शरीर ही रच सकता है। वह इतना ही बन पाता है कि बहुत प्रयत्न करने पर थोड़े समय के लिए दृश्य बन सके और कुछ हरकतें कर सके अन्यथा स्थिति में ही अपना निर्वाह करता रहे।

‘भूत’ अपनी इच्छा पूर्ति के लिए किसी दूसरे के शरीर को भी माध्यम बना सकते हैं। उसके शरीर से अपनी वासनाओं की पूर्ति कर सकते हैं अथवा जो स्वयं करना चाहते थे वह दूसरों के शरीर से करा सकते हैं। कुछ कहने या सुनने की इच्छा हो तो वह भी अपने वशवर्ती व्यक्ति द्वारा किसी कदर पूरी करते देखे गये है।

इसके लिए उन्हें किसी को माध्यम बनाना पड़ता है। हर व्यक्ति माध्यम नहीं बन सकता। उसके लिए दुर्बल मनःस्थिति का-आदेश पालन के लिए उपयुक्त मनोभूमि का व्यक्ति होना चाहिए। प्रेतों के लिए सवारी का काम ऐसे ही लोग दे सकते हैं। मनस्वी लोगों की तीक्ष्ण इच्छा शक्ति उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं करतीं।

ब्राजील के अति प्रतिष्ठित दैनिक पत्र ओ क्रूजीरों के प्रतिनिधियों ने आँखों देखा और जाँचा हुआ समाचार छापा था कि साओपाअलो राज्य के इटापिका नगर के एक किसान सिडकान्टो के घर पर न जाने कहाँ से पत्थर बरसते थे और घर में रहने वालों को घायल करते थे। भूत उपचारकों से लेकर अन्य सभी प्रकार के उपाय जब इसकी रोकथाम में असफल हो गये तो पुलिस को सूचना दी गई। वे लोग भी रहस्य पर से पर्दा न उठा सके तो विषय सर्वसाधारण की चर्चा का बन गया और ब्राजील ही नहीं योरोप के अन्य विशिष्ट व्यक्ति भी तथ्य का हर दृष्टि से पता लगाने के लिए पहुँचे, पर न तो घटना क्रम को झुठलाया जा सका और न उसका रहस्योद्घाटन किया जा सका।

इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानी और दार्शनिक सी0 ई0 एम0 जोड ने बी0 बी0 सी0 पर एक परिसंवाद में भाग लेते हुए कहा था-मैं भूतो पर विश्वास नहीं करता था, पर एक दिन जब मेरे ऊपर प्रयोगशाला में बैठे बैठे चारों ओर से साबुन की टिकिया बरसनी आरम्भ हो गई और खोज करने पर उसका कोई आधार नहीं सूझ पड़ा तो मेरा विश्वास बदल गया और मैं अब भूतो के अस्तित्व को मानता हूँ।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रेतात्माओं सम्बन्धी शोध कार्य करने के लिए एक विशेष विभाग ही खुला हुआ है।

अमेरिका की साइकिल रिसर्च फाउण्डेशन द्वारा अनेक वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों के सहयोग से सुनियोजित शोध कार्य चल रहा है।

महाकवि विलियम ब्लैक के बारे में कहा जाता है कि वे माइकेल ऐजिलो भोजेज क्लीओ पेट्रा की स्वर्गीय आत्माओं के साथ रात्रि के एकान्त में वार्तालाप करते थे। वे आत्माएँ आकर उनके साथ महत्त्वपूर्ण विषयों पर वार्तालाप करती थीं।

कोई बीस वर्ष पूर्व इंग्लैण्ड में पोर्टस साउथ उसमें बन्दूक की गोली इस तरह लगती कि शीशे , छत या दरवाजे पर एक इंच का छिद्र साफ, सीधा, गोल और व्यवस्थित होता। मानो किसी मशीन से किया गया हो। ऐसी घटनाएँ लगातार होती रही। क्षेत्र में आतंक फैल गया।

पुलिस की छानबीन तथा स्काटलैंड यार्ड की वैज्ञानिक जाँच इस घटना का सुराग न लगा सकी। यहाँ तक कि नगर पालिका ने पुलिस के विरुद्ध प्रस्ताव पास किया कि पुलिस जाँच करने में असफल रही है। सुरक्षाएँ की गई किन्तु वे बेकार रही। धीरे धीरे आवागमन ठप्प होने लगा।

यह भी कहा जाने लगा कि इस क्षेत्र में मृत्यु किरणें छिटक कर ऐसा कर रही है। किन्तु वैज्ञानिकों ने इसका खण्डन किया। कुछ समय पश्चात् ऐसी घटनाएँ अपने आप बन्द हो गई। पर खोज तो वही की वही है।

परोक्ष जीवन और अदृश्य जगत पर विश्वास करने वाले इस घटना का सम्बन्ध भूत काल से जोड़ते हैं। क्लेयर माउण्ट स्टेट पूर्व थी। उसने विलिथ केन्ट नामक ठेकेदार से एक झील तैयार करवाई। तैयार होने पर ड्यूक ने उसका पैसा दबा लिया और उसे मार कर उसी झील में फिंकवा दिया। वह किसी भी प्रकार झील से निकल आया, पर दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। शायद वही क्षुब्ध आत्मा ड्यूक मोटर मालिक के प्रति घृणा करने लगी हो। ड्यूक के साथ साथ मोटरों से भी घृणा करने लगी है। ड्यूक तो रहा नहीं, पर मोटरों से वह आत्मा इस प्रकार का वैर ले रही हो।

एक अन्य किम्वदन्ती यह है कि यह लार्ड क्लाइव की विक्षुब्ध आत्मा है जिसे मोटरों का शोर नापसन्द है। लार्ड क्लाइव ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से हिन्दुस्तान गया। वहाँ उसने छल, कपट द्वारा अंग्रेजी राज्य बढ़ाया तथा अपना व्यक्तिगत स्वार्थ भी सिद्ध किया। वह इंग्लैण्ड गया तब करोड़ों की सम्पत्ति यहाँ से साथ ले गया। उससे उसने क्लेवर माउण्ट का इलाका खरीद कर उस जंगल में एक महल बनवाया। उसमें वह अनेक खानसामा, रसोइयों, नौकरों, वैश्याओं के साथ रहने लगा। वहाँ वह पूर्व के कुकृत्यों को बार बार स्मरण करके अर्धविक्षिप्त सा हो गया। उसे मोटरों की आवाज नापसन्द थी। उसने सनक में आकर उस सड़क को खतम करवा दिया और मोटरों के लिए 12 मील दूर रास्ता बनवा दिया।

क्लाइव भारत में किये गये कुकर्मों की गाथाओं को स्वयं को ही सुनाया करता। एक दिन असह्य मानसिक तड़पन में उसने आत्म हत्या कर ली।

सम्भव है, वही क्लाइव की आत्मा उन मोटरों से द्वेष रखने के कारण अनोखे शस्त्र से मोटरों पर आक्रमण करती हो। परोक्ष जीवन और अदृश्य पर विश्वास करने वाले ऐसा ही मानने लगे है।

अब्राहम क्यूमिग्ज 18 वीं सदी के अन्तिम चरण से 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक क्रियाशील एक पादरी थे। सन 1826 में उन्होंने एक किताब छपवाई। सतहत्तर पृष्ठीय इस पुस्तिका का नाम है-इम्मार्टलिटि प्रुब्ड वाइ द टैस्टीमोनी आफ साइन्स।”इसमें एक कप्तान बटलर की मृत पत्नी की प्रेत छाया के बारे में प्रामाणिक विवरण है। इस ग्रन्थ की मूल प्रति न्यूयार्क पब्लिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है। पादरी क्यूमिग्ज ने इस पुस्तिका में 30 व्यक्तियों की शपथपूर्वक की गई घोषणा छापी है कि उन्होंने उस मृतात्मा को देखा व सुना था। स्वयं पादरी ने उसे कई बार देखा व सुना था।

अमरीका के कैलीफोर्निया शहर के इन्डोवरी मुहल्ले में एक भुतहा मकान था। वहाँ कोई भी रहने को तैयार न होता। चार साहसी छात्रों ने एक बार उसे किराये पर लिया। वे भूत प्रेतों की मान्यता को निरी भ्रान्ति मानते थे। पर एक दिन सहसा आँगन में कुर्सियों पर बैठे बैठे उन्होंने पाया कि उनकी कुर्सियाँ वायु में ऊपर उठकर सात आठ फुट की ऊँचाई पर स्थिर हो रही। फिर एक रात सहसा पत्थर वर्षा होने लगी। खोजबीन से मालूम हुआ। वहाँ एक डाक्टर 4-5 वर्ष पूर्व आत्महत्या कर चुका है, उसी की प्रेतात्मा का यह करिश्मा है। छात्रों ने मकान छोड़ दिया।

धर्मयुग के 1 दिसम्बर 1963 के अंक में श्री दामोदर अग्रवाल ने भी ऐसी ही एक आपबीती ही सुनाई है। उनके घर में सफाई के बावजूद दुर्गन्ध आने, अल्मारी में ताले में बन्द पूरियाँ रात को गायब हो जाने ओर ताला ज्यों का त्यों बन्द रहने, धुले बर्तन सुबह जूठे मिलने , आँगन में रखें लड्डुओं की जगह गीली मिट्टी बचे रहने,मिठाइयों के रात भर में सड़ जाने, रसोईघर में अजनबी पंजों के निशान अंकित होने और दीवारों आदि पर उँगलियों के चिन्ह दिखने तथा दूध का भरा गिलास पल भर में गायब होने की घटनाएँ घटती थी।

नवनीत (हिन्दी डाइजेस्ट) में सितम्बर 1969 में भी एक घटना छपी थीं अमरीका के श्री रोजेनहीम एडवोकेट के घर में सहसा टेलीफोन की घण्टियाँ टनटना उठती, ट्यूबलाइट बिना स्विच दबाए जल उठती, बल्ब जलकर फूट जाते, टेलीफोन उठाने पर गोलियाँ की बौछार सुनाई पड़ती। लगातार छानबीन व चौकसी के बावजूद शरारती व्यक्ति या समूह का पता न चला।

“फ्रीवर्ग इन्स्टीट्यूट आफ पैरासाइकोलाजी” के अध्यक्ष परामनोवैज्ञानिक प्रो0 ह्मस बेन्डर ने मामले की पड़ताल की और पाया कि मामला साइकोकाइनेसिस यानी मनोगति क्रम का है। मनोगति क्रम का अर्थ है, ऐसी सूक्ष्म मानसिक शक्तियाँ, जो भौतिक पदार्थों को नियन्त्रित निर्देशित कर सके। प्रो0 बोल्डर के अनुसार भूत प्रेत के रूप में भी ऐसी मानसिक अवस्था सम्भव है।

किसी जमाने में अफ्रीकी देश नाइजीरिया अंग्रेजों का गुलाम था। उसी क्षेत्र में एक अंग्रेज अफसर फ्रैंक हाइव्स कार्यवश इसुइन्गु गया। वहाँ उसने एक टूटे फूटे डाक बंगले में ठहरने का निश्चय किया। इस पर इसुओर गुकवीले के आदिवासियों ने समझाते हुए उसमें ठहरने के लिए मना किया ओर उसमें एक प्रेत का निवास होना बताया।

किन्तु अफसर ने इसे अन्धविश्वास समझा कर उसी डाक बंगले में रात बिताने का निर्णय लिया। यों तो मजदूरों ने खण्डहर की सफाई आदि की व्यवस्था कर दी किन्तु रात में वहाँ ठहरने के लिए कोई राजी नहीं हुआ। अंग्रेज अफसर ने अकेले ही वहाँ रात बिताने का निर्णय किया।

अर्द्ध रात्रि तक अफसर आराम से सोया। किन्तु इसके बाद उसकी मच्छरदानी खिंचनी प्रारम्भ हो गई। असह्य दुर्गन्ध फैलने लगीं। तेज हवा के झोंकों से खिड़कियाँ खुल गई। मेज पर रखी हुई प्लेटें नीचे गिर गई। ऐसा आभास होने लगा कि कोई आकृति टहल रही है। पिस्तौल लेकर अफसर बाहर निकल आया।

बाहर कोई नहीं था अफसर ने कटु शब्द कहे, चारों ओर आवाज दी किन्तु कोई उत्तर नहीं मिला। तब वह पुनः भीतर जाकर लेट गया। तभी फिर वह आकृति दिखी ओर उसकी शकल स्पष्ट होने लगी। उसका चेहरा भयानक था। अफसर भयभीत और स्तब्ध हो गया। धीरे धीरे वह आकृति पीछे हटती हुई जाकर खम्भे पर चढ़ने लगी। तभी अफसर ने दनादन दो गोलियाँ दागीं। किन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ। छाया तो ओझल हो गई, पर भयाक्रान्त अफसर चीख के साथ बेहोश हो गया। आदिवासी आस पास ही थे। चीख सुनते ही वे दौड़ आये और बेहोश अफसर को उठाकर चौपाल में ले गये।

दूसरे दिन होश में आने पर अफसर ने रात वाली घटना के तारतम्य में डाक बगलें का पिछला इतिहास आदिवासियों से पूछा। उन्होंने बताया कि इस डाक बगलें के स्थान पर एक जजू देवता का टीला था। जहाँ नर बलि और पशु बलि दी जाती थी। किन्तु अंग्रेजों ने इन मूर्तियों को हटाकर टीला साफ करवाकर इसके स्थान पर डाक बंगला बनवा दिया। इसका भयंकर विरोध देव पुरोहित ने किया। अंग्रेजों के जाने के बाद देव पुरोहित ने गाँव वालों से कहा कि इस डाक बंगले को साफ करके पुनः जजू देवता की स्थापना कर दी जावे और पुनः नर बलि और पशु बलि प्रारम्भ कर दी जावे। किन्तु भयभीत आदिवासी ऐसा न कर सके। पुरोहित बड़बड़ाता रहा और विक्षिप्त स्थिति में बोलता भी कि तुम इस डाक बंगले को आज साफ मत करो परन्तु एक दिन इसे कोई न कोई जलाकर नष्ट करेगा ही। अक्सर वह मन्त्र पढ़ते पढ़ते उस बंगले का चक्कर काटता रहता। एक दिन वही पुरोहित उसी बंगले में फाँसी लगाकर मर गया। तब से वही प्रेत बनकर इस बंगले में किसी को नहीं ठहरने देता है। इस बंगले में जो भी ठहरता है, विचित्र प्रकार की दुर्गन्ध, कभी भीषण उष्णता, कभी अति ठण्डक, हवा बन्द होते हुए बंगले के अन्दर आँधी तूफान आदि का अनुभव करता है। फ्रैंक हाइव्स ने अपने अनुभव के आधार पर इन घटनाओं को भी सत्य माना।

उसने उस डाक बंगले को जलाकर भस्मी भूत करवा दिया। इस तरह पुरोहित की भविष्य वाणी सत्य हुई।

विश्वविख्यात नर्तकी अनापावलोवना की मृत्यु स्मृति में उसकी शिष्या ने एक नृत्य समारोह आयोजित किया तो उसकी मृतात्मा भी साथ साथ नृत्य कर रही थी। दर्शकों ने उसे अपनी आँखों से देखा।

इटली के प्रसिद्ध वायलिन वादक पागगिनी की मृत्यु स्मृति में आयोजित समारोह में मृतात्मा का प्रिय वायलिन स्वयं ही बज उठा और आवाजें आई कि मैं पागगिनी हूँ-मैं पागगिनी हूँ। दर्शकों ने इसे प्रेतात्मा समझा।

यह सर्वविदित था कि नील नदी की घाटी में अवस्थित तूतन खामन की समाधि सबसे अधिक रहस्यमय और संपत्ति से भरी पूरी है। इसको लोक खोजी लोग नहीं छोड़ पा रहे थे। इतनी मौतें देखते देखते हो जाने के कारण इंग्लैण्ड वासियों में आतंक छा गया और प्रेतात्माओं पर अविश्वास करने वाले विश्वास करने के लिए बाध्य हो गये।

यह खुदाई हावर्ड कारटर (पुरातत्व विभाग सम्हालने वाले विद्वान्) तथा लार्ड कार्नावन (उत्साही धनपति ) के साझेदारी में हुई थी। इसमें उन्हें सर्वाधिक हानि उठानी पड़ी।

कतिपय अमेरिकी और अंग्रेज सम्मिलित रूप में मिश्र की समाधियों की खोज करके पुरातत्व के रहस्यों, स्वर्ण सम्पदा तथा उन प्रेतात्माओं का पता लगाने गये, जो इन समाधियों की रक्षा कर रही थी। एक समाधि पर स्पष्ट लिखा हुआ था-

“जो पुरानी कब्रों से छेड़छाड़ कर मृतात्माओं की शान्ति भंग करेगा उसे अकाल मृत्यु ख जायेगी।”

लार्ड कार्नार्वल ने अपने परिवार एवं सहचारी मंडल सहित समाधियों की खुदाई प्रारम्भ की। इसका विपरीत परिणाम सामने आया कि लगभग 22 व्यक्ति कुछ ही समय में काल कवलित हो गये। लार्डवेस्टरी अचानक ही छत पर चढ़कर कूदें ओर मर गये। उनका पुत्र जो खुदाई का इञ्चार्ज था। रात्रि को भली भाँति सोया था, प्रातः मरा हुआ मिला। डा0 अर्चिवाल्ड डग्लस रीड एक मनी का एक्सरे करते हुए हार्ट फेल के कारण मर गये। आर्थर बाइगाल को मामूली बुखार सदा के लिए ले गया। आव्रेहर्वर्टन अचानक ही पागल होकर आत्महत्या कर बैठे। लार्ड कार्नार्वल की पत्नी लेडी एलिजाबेथ तुच्छ कीड़े की शिकार होकर मर गई।

व्हाइट हाउस (अमरीकी राष्ट्रपति का निवास स्थल) तो प्रसिद्ध ही इसके लिए है कि वहाँ अधिकांश स्वर्गीय अमरीकी राष्ट्रपतियों की रूहें जब तब दिखाई पड़ती है। परिणाम स्वरूप जब भी कोई नया राष्ट्रपति निर्वाचित होकर व्हाइट हाउस में रहने आता है, तब उसकी पत्नी को निवर्तमान राष्ट्रपति की पत्नी परम्परानुसार व्हाइट हाउस के बारे में जानकारी देती है। उस समय वह भूतों के अस्तित्व व स्थलों की जानकारी निश्चित तौर पर देती है। 18 एकड़ भूमि पर विनिर्मित यह भव्य प्रासाद व्हाइट हाउस, जो भौतिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक समृद्ध व विकसित देश के राष्ट्रपति का निवास स्थान है, मरणोत्तर जीवन की सत्यता का, भूतों के बहने, मानो बरबस ध्यान दिलाता रहता है।

व्हाइट हाउस में अब तक स्वर्गीय अब्राहम लिंकन को लोगों ने विभिन्न मुद्राओं में देखा है। कभी राष्ट्रपति एडास की स्वर्गीय पत्नी कपड़े सुखाती देखी गई है। कभी राष्ट्रपति क्वीक्लैंड की स्वर्गीय पत्नी हँसती या चीखती सुनी गई है,

तो कभी राष्ट्रपति मैडीसन की स्वर्गीय पत्नी अपने गुलाब के बगीचे के आस पास खड़ी या टहलती देखी गई है।

प्रसिद्ध भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का भूत तो वहाँ सैकड़ों बार देखा गया। राष्ट्रपति ट्रूमैन सहम गये। चुपचाप द्वार बन्द किए और बिस्तर पर जा लेटे।

हालैंड की साम्राज्ञी बिल्हेल्मिना अमरीका भ्रमण के समय विशिष्ट अतिथि के नाते व्हाइट हाउस में ही ठहराई गईं। रात उनके दरवाजे पर सहसा दस्तक हुई। द्वार खोलने पर उन्होंने सामने श्री लिंकन के भूत को स्पष्ट देखा। दिन में साम्राज्ञी ने अपने मेजबान अमरीकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट को यह घटना बताई। रुजवेल्ट ने बताया कि लिंकन के भूत के कारण ही श्रीमती रुजवेल्ट को अपना शयनकक्ष बदलना पड़ा, क्योंकि वहाँ लिंकन महोदय अकसर रात में आ धमकते। श्री रुजवेल्ट की सेक्रेटरी कुमारी मेरी ने भी लिंकन को विभिन्न मुद्राओं में अनेक बार देखा।

श्री अब्राहम लिंकन का मृत्यु के बाद भी व्हाइट हाउस से लगाव क्यों? भूत रूप में वे क्यों वहाँ दिखते है? भारतीय दर्शन के अनुसार इसका कारण यह है कि श्री लिंकन में व्हाइट के प्रति गहरी आसक्ति शेष थी।

इसी तरह भूतपूर्व राष्ट्रपति क्वीक्लैंड की स्वर्गीय पत्नी की रूह भटकती पाई गई है। उनका एक बच्चा वही जन्म लेकर कुछ दिनों बाद मर गया। माना जाता है कि श्रीमती क्वीक्लैंड को उसी बच्चे का मोह भटकाता है। उनकी हँसी और चीखें वहाँ कई बार सुनी गई है।

भूत प्रेतों पर विश्वास न रखने वाली राष्ट्रपति विल्सन की पत्नी ने एक बार व्हाइट हाउस के गुलाब के बगीचे का स्थान बदलना चाहा। यह उद्यान राष्ट्रपति मैडीसन की स्वर्गीय पत्नी ने अपने समय में लगवाया था। श्रीमती विल्सन ने उद्यान का स्थान बदलने का माली को निर्देश दिया और माली उद्यान के पास पहुँचा तो वहाँ स्वर्गीय श्रीमती मैडीसन उसे खड़ी दिखी। भयभीत माली ने जाकर श्रीमती विल्सन को घटना बताई तो वे स्वयं वहाँ पहुँची। उन्होंने भी वहाँ श्रीमती मैडीसन का भूत देखा। उन्हें ऐसा भी लगा मानो श्रीमती मैडीसन उनसे कर रही है कि बगीचे की जगह बदली, तो अच्छा न होगा। श्रीमती विल्सन ने वह योजना रद्द कर दी।

भूतों के अस्तित्व से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है। वे भी मनुष्यों की तरह ही जीवनयापन करते हैं। मनुष्य धरती पर स्थूल शरीर समेत रहते हैं, भूत सूक्ष्म शरीर से अन्तरिक्ष में रहते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से उनको सामर्थ्य और साधन जीवित मनुष्यों की तुलना में कम होते हे इसलिए वे डराने के अतिरिक्त और कोई बड़ी हानि नहीं पहुँचा सकते। डर के कारण कई बार घबराहट, चिन्ता, असन्तुलन जैसी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। भूतोन्माद में यह भीरुता और मानसिक दुर्बलता ही रोग बनकर सामने आती है। वे जिससे कुछ अपेक्षा करते हैं उनसे संपर्क बनाते हैं और अपनी अतृप्तिजन्य उद्विग्नता के समाधान में सहायता चाहते हैं। संपर्क समय का अनभ्यस्त अजूबापन ही प्रायः डर जाने का मुख्य कारण होता है।

भूतो के अस्तित्व को सिद्ध करने वाली घटनाओं से एक तथ्य तो स्पष्ट होता है कि मरने के पश्चात् जीवन का अन्त नहीं हो जाता है जैसा कि भौतिक विज्ञानी पिछले दिनों आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हुए कहते रहे हैं। शरीर के साथ ही आत्मा मर नहीं जाता, वरन् अपनी सत्ता आगे भी बनाये रहता है इस सत्य को यदि स्वीकार कर लिया जाय तो भौतिकवाद और अध्यात्मवाद के बीच की एक बहुत बड़ी खाई पट सकती है। भूतो का अस्तित्व स्वीकार करने पर इस खाई के पटने में सहायता ही मिलती है।


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