मंत्रशक्ति के आधार स्रोत

July 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मन्त्र विज्ञान के अनेक आधार हैं जिनमें सर्वप्रथम है उसका शब्द गुँथन और उच्चारण का सम्यक् विधान। कविता की तरह मन्त्र का निर्माण भाव प्रधान या अर्थ प्रधान नहीं है। वरन् उस आधार पर है कि अक्षरों को किस क्रम से संजोया जाय ताकि उनके क्रमबद्ध उच्चारण से वह ध्वनि प्रवाह निसृत हो जो अभीष्ट प्रयोजन के लिए आवश्यक माना गया है। सितार में तारों का गुँथन एक क्रम विशेष को ध्यान में रखते हुए नियत निर्धारित रहता है। किसी किस्म का तार कही भी फिट कर देने से उनसे ध्वनियाँ एक जैसी निकालेंगे और विभिन्न प्रकार की राग रागनियाँ निकालना कठिन पड़ जाएगा। इसी प्रकार शब्दों के ध्वनि प्रवाह को-उनकी पारस्परिक संगति को ध्यान में रखते हुए तत्व दृष्टाओं ने मन्त्रों का गुँथन किया है।

उनके उच्चारण का भी विशेष विधान है। सितार के तारों का क्रम ही पर्याप्त नहीं, बजाने वाले की उँगलियाँ किस प्रकार थिरकती है यह भी महत्त्वपूर्ण है। रागों में अन्तर इस अंगुलि संचालन पर भी निर्भर है। मात्र तारों का गुँथन ही सब कुछ नहीं है। मन्त्र का शब्द संधान और साधक की विधिवत् उच्चारण प्रक्रिया इन दोनों का समन्वय अन्तरिक्ष में एक विचित्र प्रकार की स्वर लहरी प्रवाहित करते हैं उनके प्रभाव से सूक्ष्म जगत में वे परिस्थितियाँ बनने लगती है जो मन्त्रानुष्ठान के फलस्वरूप उपलब्ध होती मानी गई हैं।

गायत्री मन्त्र को ही ले। उसके अर्थ में भगवान से सद्बुद्धि की याचना भर है। इस प्रयोजन के लिए अन्य ढेरों मन्त्र वेदों से भरे पड़े हैं। अन्य भाषाओं में भी ऐसी कविताएँ मौजूद हैं। यदि अर्थ मात्र की ही बात रही होती तो उन कविताओं में और गायत्री में कोई अन्तर न होता। कविता की दृष्टि से गायत्री मन्त्र में छन्द दोष बताया जाता है। आठ आठ अक्षर के तीन चरण होने पर शुद्ध गायत्री छन्द बनता है, पर प्रख्यात गायत्री मन्त्र में 23 अक्षर है। चौबीसवाँ तो 'ण्यं' को णियम् उच्चारण करके खींच तान के सहारे बनता है। रचयिताओं को इस त्रुटि का ध्यान रहा होगा फिर भी उन्होंने शब्द गुंथन से उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रवाह को ही महत्व दिया और उस रूप में रचा जैसा कि अब है।

ध्वनि अपने आप में एक शक्ति है। कभी उससे जानकारी प्राप्त करने भर का प्रयोजन पूरा होता था, पर अब वैज्ञानिक विकास ने उसे बहुत ही उच्चस्तरीय एक शक्ति के रूप में सिद्ध कर दिया है। कानों से सुनी जाने वाली ध्वनियाँ हमें विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती हैं। निन्दा सुनकर क्रोध आता है और प्रशंसा की वार्ता हमें प्रसन्नता प्रदान करती है। अपमानजनक चिन्ता उत्पन्न करने वाले, शोक संवाद शब्द हमें विक्षुब्ध कर देते हैं किन्तु सफलता, सुखद सम्भावना के समाचार सुनते ही मन में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है और चेहरे पर मुसकान छा जाती है। मन ही नहीं, शरीर भी उस शब्द श्रवण की प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी गतिविधियों में हेर फेर कर लेता है। द्रौपदी के शब्दों की कटुता ने महाभारत खड़ा करा दिया था। नम्र और भावना पूर्ण शब्दों से मनुष्य तो क्या भगवान तक पिघल जाते हैं।

मन्त्रोच्चार से उत्पन्न ध्वनि प्रवाह साधक की समग्र चेतना को प्रभावित करता है और उसके कम्पन अन्तरिक्ष में बिखरते हुए परिस्थितियों को अनुकूल बनाते हैं। कंठ, हाथ, जिह्वा, तालु आदि मुख्य अवयवों को विभिन्न शब्दों के उच्चारण में भिन्न भिन्न प्रकार की हलचलें करनी पड़ती है। इनका प्रभाव स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर के कतिपय अवयवों पर पड़ता है। उपत्यिकाओं, नाड़ी गुच्छकों, विद्युत भँवरों पर इस मन्त्र ध्वनियों का प्रभाव पड़ता है और सूक्ष्म शरीर के चक्र एवं इडा पिंगला सुषुम्ना जैसे विद्युत प्रवाह प्रभावित होते हैं। साधक के स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण शरीरों में होने वाले इस मन्त्र ध्वनि प्रवाह से कई प्रकार के उपयोगी परिवर्तन होते हैं व्यक्तित्व में नये प्रकार के सुधार उत्पन्न होते हैं। कोई भी शक्ति सबसे पहले अपने उत्पादन स्थल को प्रभावित करती है फिर उसकी क्षमता अगले क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाती हुई आगे बढ़ती है। आग जहाँ जलेगी पहले वही स्थान गरम होगा बाद में उस गर्मी का विस्तार अगले क्षेत्र में फैलता चला जाएगा। मन्त्र साधना से सबसे अधिक प्रभावित साधक का व्यक्तित्व ही होता है।

मात्र शब्द प्रवाह ही नहीं मन्त्र साधना में अन्य विविध उपचारों का विधान रहता है। प्रयुक्त पदार्थों एवं हलचलों का, विधि विधानों का, कर्मकाण्डों के क्रियाकलापों का अपना महत्व है। उनकी सम्मिलित प्रतिक्रिया का मन्त्र साधना में अद्भुत योगदान रहता है। इस संयुक्त प्रभाव से मन्त्र साधना अपना चमत्कारी प्रतिफल प्रस्तुत कर सकने में समर्थ होती है। साधक की सत्ता को प्रभावित करती हुई यह ध्वनि धारा रेडियो तरंगों की तरह अन्तरिक्ष में दौड़ना आरम्भ करती है। शब्दबेधी बाण की तरह उसका प्रवाह सूक्ष्म जगत के उन संस्थानों से टकराता है जिन्हें प्रभावित करना साधना का उद्देश्य रखा गया था।

ध्वनि का वह क्षेत्र तो बहुत स्वल्प है जो हमारे कानों की पकड़ में आता है और जिसे हम सुन सकते हैं। जिन ध्वनियों के कम्पन प्रति सेकेंड 20 से लेकर 20 हजार तक होते हैं उन्हें ही मनुष्य के कान आसानी से सुन सकते हैं। किन्तु ध्यान कम्पन तो इससे बहुत कम और बहुत अधिक सामर्थ्य के भी होते हैं। उन्हें अनसुनी ध्वनियाँ कहा जाता है। इससे उनकी सामर्थ्य में कमी नहीं होती वरन् सच तो यह है कि यह कर्णातीत-अनसुनी ध्वनियाँ और भी अधिक सामर्थ्यवान होती हैं। सुपर सोनिक रेडियो मीटर की सहायता से अन्तरिक्ष में संव्याप्त अगणित ध्वनि प्रवाहों को सुना जाना जा सकता है। मन्त्र साधना में इन श्रवणातीत ध्वनियों का उत्पादन अतिरिक्त रूप से होता है और वे अपने क्षेत्र में असाधारण प्रभाव डालती हैं।

विज्ञान ने श्रवणातीत ध्वनियों को एक अति प्रभावोत्पादक शक्ति माना है और उनसे अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण काम लेने की व्यवस्था बनाई है। इन दिनों वस्तुओं की सही मोटाई, गहराई नापने में-धातुओं के गुण, दोष परखने में इनका प्रयोग होता है। कार्बन ब्लैक का उत्पादन, वस्त्रों की धुलाई, रासायनिक सम्मिश्रण वस्तुओं की कुटाई, पिसाई, गीली वस्तुओं को सुखाना, धातुओं की ढलाई, प्लास्टिक धागों का निर्माण जैसे अनेकों उद्योग ध्वनि तरंगों की सामर्थ्य का उपयोग करके चल रहे हैं।

अयोवा स्टेट कालेज, अल्ट्रा सोनिक कारपोरेशन, वी0 एफ॰ गुडरिच कम्पनी आदि कितने ही व्यापार संस्थानों ने ऐसे यन्त्र बनाये हैं जिनमें श्रवणातीत ध्वनियों की सामर्थ्य का उपयोग होता है और उससे महत्त्वपूर्ण लाभ कमाये जाते हैं।

रेडियो तरंगें, माइक्रो लहरें, टेलीविजन और राडार तरंगें, एक्स किरणें, गामा किरणें, लेसर किरणें, मृत्यु किरणें, इन्फ्रारेड तरंगें, अल्ट्रा वायलेट तरंगें आदि कितनी ही शक्ति धाराएँ इस निखिल ब्रह्माण्ड में निरन्तर प्रवाहित रहती हैं। ध्वनि तरंगों में अल्ट्रा सोनिक और सुपर सोनिक तो औद्योगिक प्रयोजनों में भली प्रकार काम में आने लगी है। इन प्रवाहों में से अन्य असंख्यों को निकट भविष्य में ही मानवोपयोगी बना लिया जायेगा। हानिकारक कीटाणुओं को मारने, दूध से मक्खन निकालने, धोने, रगड़ने, पीसने-कोहरा हटा देने जैसे सामान्य कार्यों में उनका प्रयोग जिस सफलतापूर्वक इन दिनों हो रहा है उसे देखते हुए वैज्ञानिक उनका उपयोग अन्य उपयोगी कार्यों में करने की विशालकाय योजना बना रहे हैं। पौधों को खाद, पानी देने की तरह ही अब मधुर ध्वनि प्रवाह से भी उनकी अभिवृद्धि का उद्देश्य पूरा हो रहा है। यूगोस्लाविया के किसानों ने कृषि कार्य में इन ध्वनियों का उत्साहवर्धक उपयोग किया है और अच्छा लाभ उठाया है। हालैण्ड के पशु पालक दूध दुहते समय विशेष प्रकार की ध्वनि करते हैं और अधिक दूध पाते हैं। पशुओं की श्रम शक्ति, बलिष्ठता एवं प्रजनन शक्ति को भी इन ध्वनियों के सहारे बढ़ाने में भारी सफलता मिली। अमेरिकी कृषक जार्ज स्मिथ को मक्का की फसल संगीत प्रवाह के आधार पर अत्यधिक बढ़ा लेने में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई है।

ध्वनियों को आकाश से पकड़ कर उन्हें ऊर्जा के रूप में परिणत करने की तैयारियाँ जोरों से हो रही है। उन्हें ताप, प्रकाश, चुम्बक एवं बिजली के रूप में परिणत किया जा सकेगा और इस आधार पर ईंधन का एक सस्ता और सुविस्तृत स्रोत हाथ में आ जाएगा। कान के माध्यम से मस्तिष्क में ध्वनियाँ पहुँचती हैं और हमें शब्द श्रवण का लाभ मिलता है। जिनके कानों की झिल्ली खराब हो गई है उन्हें बहरे लोगों की दृष्टि मार्ग से ध्वनि तरंगों को मस्तिष्क तक पहुँचने और सुनने का लाभ देने के लिए चल रहे प्रयोग अब सफल होने के निकट पहुँचते जा रहे हैं। इसी प्रकार नाक, कान, आँखें और मुँह के छिद्रों का मस्तिष्क से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह माना जा रहा है कि एक में गड़बड़ी होने पर दूसरे के द्वारा मस्तिष्क को आवश्यक जानकारी मिलने का मार्ग मिल जाएगा। इस प्रकार गूँगे, बहरे, अन्धे व्यक्ति भी अपनी आवश्यकता अन्य छिद्रों के सहारे पूरा कर लिया करेंगे। राडार जैसे यन्त्र अभी बहुमूल्य जानकारियाँ ध्वनि प्रवाह को पकड़ कर ही संग्रह करते हैं। भविष्य में यह क्षेत्र और भी व्यापक होने जा रहा है।

मधुर, संयत और सुसंस्कृत वाणी को वशीकरण यन्त्र बताया गया है। उसके आधार पर पराये अपने हो जाते हैं। दूसरों का स्नेह, सम्मान एवं सहयोग अर्जित करना सम्भव होता है। प्रगति के असंख्य द्वार खुलते हैं। वाणी के परिष्कृत प्रभाव का लौकिक जीवन की प्रगति एवं प्रसन्नता में कितना अधिक योगदान होता है इस पर जितना अधिक विचार किया जाय उतनी ही अधिक उसकी गरिमा स्पष्ट होती जाती है। स्कूली शिक्षा तो अध्यापकों और छात्रों के वाणी विनिमय आधार पर चलती ही है। ब्रह्म विद्या कर आधार भी वही है। सत्संग, प्रवचन, कथा, कीर्तन, पाठ, स्तोत्र से लेकर जप साधन तक वाणी के माध्यम से ही सम्भव होते हैं। लौकिक क्षेत्र में दूसरों को प्रभावित करके उन्हें ऊँचे उठाने, आगे बढ़ाने के प्रयोजन पूरे होते हैं। औरों का सद्भाव सहयोग अर्जित करके व्यक्ति स्वयं भी लाभान्वित होता है। आत्मिक क्षेत्र में मन्त्र विद्या के आधार पर अनेक उच्चस्तरीय विभूतियाँ प्राप्त होती है और आत्म कल्याण के लक्ष्य तक पहुँच सकना सम्भव होता है। परिष्कृत वाणी के समान मनुष्य के पास और कोई उत्कृष्ट शक्ति नहीं है। मन्त्र विद्या का जो कुछ भी चमत्कार कहा, सुना और देखा जाता है उसे उस वाक् का ही प्रतिफल कह सकते हैं जिसका परिशोधन, सत्य, मौन, व्रत आदि माध्यमों से किया जाता है। उसकी उद्भूत शक्ति जड़ जगत को हिला सकने और चेतन जगत में व्यापक भाव प्रवाह उत्पन्न कर सकने में समर्थ होती है। इसलिए वाक् साधना को आत्म विद्या का प्रधान आधार माना गया है। इसके लिए मन, वचन और कर्म से ऐसी उत्कृष्टता का समन्वय करना पड़ता है कि वाणी को दग्ध करने वाला कोई कारण शेष न रह जाय। इतना करने के उपरान्त ही जपा हुआ-बोला हुआ-कोई भी मन्त्र असंदिग्ध रूप से सिद्ध होता है। यदि वाणी दूषित, कलुषित दग्ध स्थिति में पड़ी रहे तो उसके द्वारा जप किये गये जप, स्तवन, पाठ आदि करते रहने पर भी अभीष्ट फल न मिल सकेगा। परिष्कृत वाणी वाक् को अध्यात्म का प्राण कह सकते हैं उसे साधक की कामधेनु और तपस्वी का ब्रह्मास्त्र कहा जाय तो इसमें तनिक भी अत्युक्ति नहीं है। इसी परिमार्जित वाणी को सरस्वती भी कहा गया है। देवी सरस्वती के अनुग्रह से जो वरदान प्राप्त हो सकते हैं परिष्कृत वाक् शक्ति भी वे सारे चमत्कार उत्पन्न कर सकती है।

ब्रह्म देवता के चार मुख हैं। उन्होंने उन चारों से चार वेदों का सृजन प्रवचन किया। यह चतुर्धा प्रकटीकरण वस्तुतः वैखरी, मध्यमा, परा और पश्यन्ति इन चार वाणियों के ऊर्ध्वगामी उभार का अलंकारिक वर्णन हैं। यह कार्य ब्रह्म देवता ने किया सो उसे आत्म देवता भी सम्पन्न कर सकता है। पुराणों की कथा है कि विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल नाल पर ब्रह्म जी कई बार उतरे और ऊपर चढ़े। मन्त्र साधना में यही होता है। उच्चारित होने के उपरान्त स्थूल शब्द अन्तःकरण के मर्मस्थल की गहराई में उतरता है और उस शक्ति स्रोत की ऊर्जा से सम्पन्न होकर ऊपर आता है। जब वह ऊपर आता है तो वैखरी में पश्यन्ति का वैसा ही प्रभाव होता है जैसा कि बिजली के संपर्क से धातु के तार में। वह मन्त्रवत् शब्द समस्त सृष्टि में हलचल उत्पन्न करता है। सूक्ष्म जगत को स्पन्दित करता है और व्यक्ति को सामान्य न रहने देकर उसे दैवी शक्ति से सम्पन्न बना देता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles