अतीन्द्रिय क्षमता में जैव ऊर्जा का योगदान

July 1977

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विज्ञानमय कोश की विशिष्ट क्षमताओं का एक केन्द्र उच्च चेतन मन है। दूसरा एक और भी आधार है-प्राण विद्युत। यह एक चुम्बक है जो साँसारिक जीवन में प्रभावोत्पादक शक्ति एवं प्रतिभा के रूप में दृष्टिगोचर होता है। यह आकर्ष तत्व यदि अधिक सक्षम हो सके तो उसके माध्यम से कई तरह की ऐसी विशेषताएँ उत्पन्न हो सकती हे जिनसे व्यक्तित्व के उभरने के असाधारण अवसर उत्पन्न हो सकें। इस ऊर्जा में यह शक्ति भी है कि सूक्ष्म जगत के प्रवाहों को अपनी ओर मोड़ सकना और उनके संपर्क से कई महत्त्वपूर्ण कार्य सिद्ध करना भी सम्भव हो सकता है। साधक अपने व्यक्तित्व को साधना मार्ग पर चलते हुए जिस प्रखरता को प्राप्त करता है उससे पक्षीय लाभ मिल सकते हैं।

मनःशक्ति जड़ जगत और चेतन सत्ता के बीच का एक घटक है इसलिए ज्ञात जीवन में उसका सर्वोपरि महत्व है। जीव विज्ञान (जेनेटिक साइन्स) की नवीनतम जानकारियाँ यह बताती है कि शरीर जिन कोशिकाओं से बना है वह तथा शरीरगत परमाणु पूरी तरह मनःशक्ति के नियन्त्रण में है। यही नहीं वंशानुक्रम में भी उसकी गतिशीलता रहता है तथा मरणोत्तर जीवन में भी उसकी गतिशीलता समान रूप से बनी रहती है। फ्रायड के सुपरइगो और सेन्सेज की परिधि वाले मन को जर्मन मनोवैज्ञानिक हेन्सावेन्डर अतीन्द्रिय क्षमता तक ले जाने में सफल हुए। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रमाण तक उपलब्ध कराये। टेलीपैथी पर अत्यधिक खोजबीन करने वाले रेने वार्कोलियर ने कहा है-मन की व्याख्या पदार्थ विज्ञान के प्रचलित सिद्धान्तों द्वारा सम्भव नहीं।

मस्तिष्क की स्थिति जीवनयापन के सामान्य क्रियाकलाप पूरे करने जितनी सीमित नहीं है अपितु उसमें एक से एक विलक्षण संभावनाएँ प्रतीत होती है। वैज्ञानिक परमाणु में भार, घनत्व, विच्छेदन तथा चुम्बकीय क्षेत्र आदि भौतिक परिचय देने वाले तत्त्वों की खोज करते हुए एक ऐसे सूक्ष्म विद्युतीय कण के संपर्क में आये है जिनमें भौतिक परमाणु में पाये जाने वाले उपरोक्त एक भी लक्षण नहीं। यह विद्युत कण शरीरों के पोले भाग तथा समस्त आकाश में निर्बाध विचरण करते हैं। ये भौतिक परमाणुओं को भी भेदकर पार निकल जाते हैं, पर अभी तक कोई ऐसी यन्त्र प्रणाली या विज्ञान विकसित नहीं हो पाया जो इन विद्युत कणों को कैद कर सके। जब तक वह पकड़ में न आये उनकी अन्तःसंरचना का अध्ययन कैसे हो?

इन कणों की उपस्थिति का बोध भी उन्हीं के परस्पर टकराव की स्थिति में ही हो पाता है। गणित शास्त्री एड्रिया ड्राब्स ने इनको न्यूट्रिनो नाम दिया है। कुछ वैज्ञानिकों ने इसी तरह के कणों साइट्रोन नाम दिया है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जब मस्तिष्क के न्यूरान कण विचारों और भावनाओं के प्रवाह के रूप में इन कणों से संपर्क स्थापित करते हैं तो उस क्षणिक संपर्क से ही पूर्वाभास जैसी घटनाओं की अनुभूति होती है। इससे दो सत्य उद्घाटित होते हैं। (1)पहला यह कि ब्रह्माण्ड व्यापी घटनाओं का मूल उद्गम एक है यह उद्गम काल, दिशा और पदार्थ से अतीत है। संसार का नियमन और नियन्त्रण इसी के अधिकार में है।(2)मानवीय चेतना का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में इस उद्गम से निश्चित है।

न्यूट्रिनो कणों का मनुष्य की मस्तिष्कीय चेतना तथा तन्तु समूह पर क्या और किस तरह प्रभाव पड़ता है, इस पर गम्भीर शोधें चल रही है वैज्ञानिक एक्सेल फरसेफि का कथन है कि यह कण जब मानसिक चेतना पर प्रभाव डालते हैं तो नयी जाति के माइन्जेन नामक ऊर्जा कणों का जन्म होता है। यह अनुमान है कि इस तत्व की व्यापक प्रक्रिया मस्तिष्क में चल पड़े तो मनुष्य सहज ही ब्रह्माण्ड व्यापी ऊर्जा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने लगेगा और अपनी ज्ञान परिधि को इतना असीम बना लेगा कि उसकी कल्पना करना भी कठिन हो। उस स्थिति में मनुष्य धरती की एक बन्द कोठरी में ही वह सारे दृश्य फिल्म की भाँति देख सकेगा जो चन्द्रमा या मंगल पर जाकर कोई मनुष्य या उपकरण देख सकता है और उतना ही स्पष्ट।

इन समस्त अलौकिक क्षमताओं के केन्द्र व्यक्ति मस्तिष्क में विद्यमान है। किन्तु वे केन्द्र ही चेतना नहीं है। चेतन सत्ता उससे भिन्न और सर्वव्यापी है। व्यक्ति मस्तिष्क उसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकने में समर्थ है। कोट खूँटी पर टाँगा जा सकता है। खूँटी के गिर जाने पर उस पर टँगा कोट भी गिर जाएगा। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि खूँटी ही कोट है या कि कोट ही खूँटी है। मानव शरीर से निरन्तर विद्युत चुम्बकीय, इन्फ्रारेड, अल्ट्रावायलेट आदि विकिरण होते रहते हैं। इसी से विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। शरीर के भीतर के कार्बन, पोटैशियम, सोडियम, रेडियम, थोरियम, स्वर्ण, सीजियम, कोबाल्ट, आयोडीन आदि तत्व विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। मनुष्य की सम्पूर्ण त्वचा से पीजोइलेक्ट्रिक इफेक्ट, पाइरोइलेक्ट्रिक इफेक्ट, विद्युत चुम्बकीय विकिरण आदि प्रसारित भी होते रहते हैं तथा बाहर के ऐसे ही विकिरणों एवं प्रभावों (इफेक्ट्स) को मनुष्य की त्वचा ग्रहण भी करती रहती है। इन्हीं विकिरणों तथा प्रभावों के फलस्वरूप क्वाण्टम फील्ड तैयार होता है अर्थात् इनकी समन्वित प्रक्रिया का क्षेत्र। उस क्षेत्र की किरणों को क्वांटम किरणें कहते हैं। क्वाण्टम किरणें प्रकाश की गति से चलती है और उनका तरंगदैर्ध्य (वेवलेंथ) प्रायः 1 सेंटीमीटर होता है। उनकी फ्रीक्वेंसी एक अरब हर्ट्ज तक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि क्रमशः क्षीण होते जाने पर भी वे लाखों मील की दूरियाँ पार कर लेती है। अभी इनकी विस्तृत खोज सम्भव नहीं हो सकी है। इन क्वाण्टम किरणों द्वारा ही मनुष्य दूरस्थ नक्षत्र पिण्डों का प्रभाव ग्रहण करता है। साथ ही उसका प्रभाव दूर दूर तक बिखरता भी रहता है।

भौतिक विज्ञान परमाणु सत्ता की सूक्ष्म प्रवृत्ति का विश्लेषण करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँच रहा है कि एक ही अणु में सक्रिय दो इलेक्ट्रानों को पृथक् दिशा में खदेड़ दिया जाये तो भी उनके बीच पूर्व सम्बन्ध बना रहता है। वे कितनी ही दूर रहें दर्पण में प्रतिबिम्ब की तरह अपनी स्थिति का परिचय एक दूसरे को देते रहते हैं। एक इलेक्ट्रान को किसी तरह प्रभावित किया जाय तो इतनी दूर चले जाने पर भी दूसरा पहले इलेक्ट्रान के समान ही प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। इस सत्य का प्रतिपादन करते हुए आइन्स्टीन, रोजेन, पाटोल्स्की जैसे महान् वैज्ञानिकों ने भी यह माना है कि इस छोटे से घटक की यह गति निःसन्देह एक विश्वव्यापी ड्रामे का ही छोटा रूप हो सकता है।

डा0 एफ केफ्रा ने तो यहाँ तक स्वीकार कर लिया कि परमाणु का प्रत्येक घटक विश्व ब्रह्माण्ड का परिपूर्ण घटक है अर्थात् प्रत्येक अणु में ब्रह्माण्ड सत्ता ओत प्रोत है। अणु में ही विराट ब्रह्माण्ड के दर्शन किये जा सकते हैं। यह पारस्परिक सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ है कि इन्हें कभी निरस्त नहीं किया जा सकता। जहाँ इस तरह का प्रयास होता है वही भयंकर दुष्परिणाम उपस्थित हो उठते हैं।

वैज्ञानिक गेटे ने ब्रह्माण्डीय चेतना के अस्तित्व को कटु सत्य के रूप में स्वीकार किया है। रुडोल्फ स्टीनर ने भी गेटे के तथ्यों का पूर्ण समर्थन ही नहीं किया अपितु उसके आधार भी प्रस्तुत किये है। टामस हक्सले ने एक कदम आगे बढ़कर स्वीकार किया है कि ब्रह्माण्ड में एक मूलभूत चेतना काम कर रही है जो जीवाणुओं में तथा परमाणुओं में पृथक् पृथक् ढंग से काम करती है। भारतीय दर्शन में ब्रह्मा की परा और अपरा दो शक्तियाँ इसी तथ्य का निरूपण करती है। इस की पुष्टि उन्होंने अपनी हेवेन एण्ड हेल पुस्तक में विस्तार से की है।

परमाणु की इलेक्ट्रान प्रक्रिया को यन्त्रों से जितना जाना जा सकता है, वह अत्यल्प है अधिकांश की जानकारी गणितीय सिद्धान्तों पर होती है उसी तरह जीवाणुओं की मूलभूत प्रक्रिया के लिए जो यन्त्र बनाया गया है उसका नाम है” मस्तिष्क। इस यन्त्र की योग पद्धति से सर्वांग पूर्ण जानकारी कर लेने के कारण भारतीय दर्शन वेद वेदान्त के उस अलभ्य ज्ञान तक पहुँच गया, पर विज्ञान अभी तक मस्तिष्क के बारे में बहुत ही सीमित जानकारी ही प्राप्त कर सका है शेष अविज्ञात को अन्धकार क्षेत्र डार्क एरिया-घोषित किया हुआ है। इसी कारण ब्रह्माण्ड व्यापी सूक्ष्म सत्ता से अभी तक उसका तालमेल नहीं हो पाया। परमाणुओं की इलेक्ट्रानिक प्रक्रिया का भी अधिकांश हल गणित के रूप में यह मस्तिष्क ही करता है। अतएव ब्रह्माण्डीय चेतना का स्वरूप पहचानने से पूर्व मस्तिष्क की अर्थ इंगित जानकारी होनी आवश्यक है। ज्ञात रहे कि जो अतीन्द्रिय घटनाएँ प्रकाश में आती है उनमें भी प्रधान माध्यम मस्तिष्कीय बोध ही होता है चाहे वह पूर्व जन्म का ज्ञान हो, पूर्वाभास या भूत-प्रेतों के दर्शन।

मानवीय काया में सन्निहित विलक्षण अति समर्थ अतीन्द्रिय क्षमताओं की उपलब्धि यद्यपि कठिन योगाभ्यास से ही सम्भव है तथापि रेडियो की सुई घुमाते घुमाते कई बार अनायास ही किसी प्रिय स्टेशन में लग जाती है जब कि उसका साइकिल नम्बर अथवा फ्रीक्वेंसी का पता नहीं होता। उसी प्रकार दुनिया भर में ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जिनमें ऐसी क्षमताओं के अयाचित उपलब्ध हो जाने के विवरण मिलते रहते हैं। यह घटनाएँ इस बात की प्रमाण है कि मनुष्य उतना ही नहीं जितना वह स्थूल आँखों से हाड़ माँस के पिण्ड रूप में दिखाई देता है अपितु उसकी सूक्ष्म और सनातन सत्ता तो अपने परमपिता की सर्वज्ञ, सर्वदर्शी सर्वसमर्थ सत्ता से ओत प्रोत है।

‘ट्रू एक्स्पीरियसेंस इन प्रोफेन्सी” में ऐसी अनेक घटनाएँ संग्रहित हैं जो उपरोक्त सत्य का समर्थन करती हैं। उसी में वाल्टर जे0 मैसी की “स्टाॅर्म इन ए कप आफ टी-चाय के प्याले में तूफान) शीर्षक लेख में अनुभूति छपी है। एक दिन श्रीमती मैसी (वाल्टर जे. मैसी की पत्नी) अपने घर आये मेहमान मिस्टर हाफमैन के लिए चाय बना रही थी। चाय प्याले में छानी ही थी कि गजब हो गया जिस प्रकार त्राटक सिद्ध अपनी वेधक दृष्टि से अपने दोनों अँगूठों के नाखूनों में दूर के दृश्य देख लेते हैं उसी तरह उन्हें प्याले में फिल्म की तरह विलक्षण दृश्य दिखाई दिया। उन्होंने देखा एक होटल में एक क्रूर मनुष्य घुसा, सेकेण्डों में उसने उसके मैनेजर को गोली मार दी, रुपये पैसे छीने वापस कार में बैठा और भाग खड़ा हुआ। कार के बाहर निकलते ही दो मोटर साइकिलें उसका पीछा करती दिखाई दी। हत्यारे ने उन पर भी गोली चलाई फलस्वरूप एक उनमें से भी मर गया। हत्यारा भाग कर एक अधबनी झोपड़ी में घुस गया जहाँ उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

इस वीभत्स दृश्य को देखकर श्रीमती मैसी अत्यधिक घबड़ा गई और मूर्छित होकर गिर पड़ी होश आने पर उनने सभी को यह घटना सुनाई तो सभी ने इसे मात्र वहम कहा। किन्तु श्रीमती मैसी के मस्तिष्क में यह घटना कई दिन तक छायी रही। सन्तोष न हुआ तो उनने पुलिस में लिखित फाइलों में दाब दी गई।

पूरे दो सप्ताह भी नहीं बीते थे कि एक दिन अखबारों में कैलीफोर्निया में एक होटल मैनेजर की हत्या का हूबहू समाचार छपा। इस पर पुलिस अधिकारियों ने वह रिपोर्ट निकाली तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि हत्यारे के वस्त्रों के रंग, हुलिया, वेष भूषा ठीक वैसी थी जैसी उस रिपोर्ट में दर्ज थी। पीछा करने वाले सवार दो पुलिस के जवान थे। हत्यारा ठीक एक अधबनी झोपड़ी में ही पकड़ा गया।

डयू मारियर की पुस्तक “पटेर टूबेट एन” तथा डा0 किपलिग की “व्रश ब्रुड ब्वाप” पुस्तकों में इस तरह की घटनाओं तथा मान्यताओं का विस्तृत संकलन है। इनमें भवितव्यताओं के पूर्वाभास की सत्यता का समर्थन तो है कारणों की विज्ञता से असमर्थता प्रकट की गई है। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक डा0 नेलसन वाल्ट का मत कि-मनुष्य के अन्दर एक शक्तिशाली आत्म चेतना काम करती है जिसे जिजीविषा तथा प्राणधात्री शक्ति कहते हैं। इस शक्ति में रोग निरोधक शक्ति तथा अन्य आत्म रक्षा जैसे अस्तित्व संरक्षण की क्षमताएँ भी सन्निहित है। परामनोविज्ञानवेत्ता हेरल्ड के कथनानुसार पूर्वाभास जागृत अवस्था में भी होते हैं जिनका सामयिक परिस्थितियों से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। उन्होंने लिखा है कि एक विज्ञान चालक की बहन को यह पूर्वाभास जागृत अवस्था में ही हुआ कि अमुक दिन उसके भाई की मृत्यु विमान दुर्घटना में हो जायेगी। उसने यह तिथि नोट कर ली और ठीक उसी दिन यह दुर्घटना सचमुच घटित हुई।

विज्ञानवेत्ता जे0 वी0 राइन की धर्म पत्नी को स्वप्नों में अनेक बार आश्चर्यजनक पूर्वाभास मिले। स्वयं वैज्ञानिक राइन ने पूर्वाभास स्वप्नों को सत्य पाया तो उन्होंने अपने शोध की दिशा परामनोविज्ञान की दिशा में मोड़ दी। उन्होंने 4000 ऐसी घटनाएँ संकलित की जो स्वप्नों में हुए पूर्वाभास की सत्यता प्रतिपादित करती थी। डा0 राइन उनका कोई वैज्ञानिक आधार तो न पा सके, पर उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले वह है-मनुष्य के अन्दर कोई अविज्ञात चेतना विद्यमान है जो सुदूर क्षेत्रों से सम्बन्ध बनाये हुए हैं। वह उपयुक्त अवसरों पर रहस्यमयी घटनाओं का उद्घाटन करती हैं। (2)परस्पर घनिष्ठ व्यक्तियों में सहज ही तथा मनस्वी व्यक्ति मन और भावनाओं की एकाग्रता द्वारा प्रयत्नपूर्वक भी इस तरह की घटनाएँ जान सकते हैं। (3)पुरुषों की अपेक्षा भावुक होने के कारण स्त्रियों में धार्मिक अभिरुचि की प्रधानता भी इसका कारण हो सकती है। मनःशास्त्री हेनब्रुक ने भी इस तथ्य का समर्थन किया है। उन्होंने इसके लिए नारी की कोमलता , सहृदयता और सौम्य गुणों के आधिक्य को कारण माना है।

भारी शरीर को अणुमात्र बना लेने की “अणिमा” सिद्धि, समाधिस्थ होकर जीवन चेतना को मस्तिष्क में धारण कर लेने की सिद्धि, प्राणायाम द्वारा शरीर के किसी भी अंग में वज्र की सी शक्ति धारण करने की सिद्धियाँ अब भ्रान्त प्रलाप कही जा सकती है क्योंकि न तो इनके योगी अभ्यासी रहे न सिद्ध समर्थ किन्तु पिछले 6 अप्रैल सन 74 को 100 वर्ष पूरे हो जाने पर भी इंग्लैण्ड के राबर्ट हडची की इस तरह की क्षमताओं की सारे इंग्लैण्ड में चर्चा रही। हडची ने एकबार सार्वजनिक प्रदर्शन में हाथ में मजबूती से बाँधी गई हथकड़ियों को धागे की तरह तोड़ दिया। उन्हें एक कमरे में बन्द कर ताला लगा दिया गया। अधिकारियों ने ताले को विधिवत् सील किया, किन्तु वे अभी अपना काम पूरा ही कर पाये थे कि हडची पीछे से आ प्रकट हुए और बोले श्रीमान जी इसकी क्या आवश्यकता? इसी तरह उन्हें एक सुरंग में दबा दिया। और कई दिन तक भी उसी में बन्द रहने दिया गया। नियत समय पर हडची निकाले गये तो हडची ऐसे लग रहे थे मानों वे अभी अभी सो कर उठे हों।

शरीर को जिन पदार्थों से पोषण मिलता है वे भौतिक और दृश्य रूप में तो प्राकृतिक साधनों प्राकृतिक प्रक्रिया से उपलब्ध होती है, पर ऐसे सभी पदार्थ वायुभूत अवस्था में अपार मात्रा में उपलब्ध होते हैं। अपनी अतीन्द्रिय चेतना को सक्षम बनाकर योगीजन इन वायवीय तत्त्वों से ही पोषण पा सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने अपने समय के सिद्ध योगी पौहारी बाबा में ऐसी क्षमता का उल्लेख कर लिखा है कि उन्होंने मुद्दतों तक न जल पिया न अन्न खाया तथापि उनका शरीर कतई क्षीण नहीं हुआ। इस स्थिति में मल मूत्र विसर्जन, सोने, उठने आदि की भी कोई आवश्यकता नहीं होती। उन पर ताप और असह्य शीत का भी कोई प्रभाव नहीं होता।

पाण्डिचेरी के चीफ जस्टिस (ब्रिटिश शासन काल) जेकालियट ने लिखा है- एक बार एक साधु ने मुझे कुछ लिखकर अपने पास रखने को कहा-मैंने एक कागज पर लिखकर जेब में रखा । थोड़ी देर में साधु ने एक कागज पर वही लिख दिया जो मैंने लिखा था।

ड्यूक विश्व विद्यालय के डा0 जे0 वी0 राइन ने अपनी पुस्तक "न्यू फ्रंटियर्स आफ माइंड” में मस्तिष्कीय विलक्षणता पर गम्भीर प्रकाश डाला है और यह संकेत दिया है कि मस्तिष्क की सम्पूर्ण संरचना तथा क्रिया प्रणाली के ज्ञात हो जाने से मनुष्य के लिए संसार में कुछ भी असम्भव न रह जायेगा। यहाँ तक कि हथेली में सरसों उगाना तथा हवा में खेती करना भी।

मन चेतना की उच्चस्तरीय परत को-विज्ञानमय कोश को यदि जागृत समर्थ और परिष्कृत बनाया जा सके तो निःसंदेह उसके सत्परिणाम इतने महत्त्वपूर्ण हो सकते हे जिनकी तुलना में बड़ी चढ़ी भौतिक सामर्थ्य को भी तुच्छ सिद्ध किया जा सके।


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