ईक्षते योगमुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥
“जो सभी वस्तुओं में आत्मा को और आत्मा में ही सब वस्तुओं को देखता है वह समस्त जगत में मूल में व्याप्त एक ही सत् तत्त्व को जान लेता है और समदर्शी हो जाता है।