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April 1977

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अलौत्यमारोग्यमनिश्ठूरत्वगन्धशुभोमूत्रपुरोशमल्पम्। कान्तिः प्रसादः स्वरसौम्यता चयोगबृत्तः प्रथमहिचिहम्।63

अनरुरागंजनोय तिपरोक्षगुणकीर्तनम्। नबिभ्यतिचसत्तवानिसिद्धेर्लक्षणमुत्तमम्-मारर्कण्डेय पुराण

चंचलता का दूर हो जाना, आरोग्य, सहृदयता, देह से सुगंध उठना, मल मूत्र में न्यूनता, चेहरे पर क्रान्ति प्रसन्नता वाणी में मधुरता, यह सब लोगों की प्रगति के चिह्न है।

जिस अवस्था में मनुष्य के पीठ पीछे प्रशंसा होने लगे। सब कोई उससे निर्भय रहें। यही योग सिद्ध के लक्षण है।


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