ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान

April 1977

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

भारतीय तत्त्व दर्शन और साधना विज्ञान का केन्द्र बिन्दु गायत्री मन्त्र है। उसके सहारे ज्ञान की अध्यात्मिक विभूतियाँ और विज्ञान की भौतिक सिद्धियाँ उपलब्ध होती है। धर्म-शास्त्र का विकास विस्तार गायत्री के बीज मन्त्र से उद्भूत वट-वृक्ष ही माना जाता है जो कुछ जानने और पाने योग्य है उसे गायत्री के अंतराल में प्रवेश करके प्राप्त किया जा सकता है।

गायत्री की उच्चस्तरीय साधना पंचकोशी हैं गायत्री के पाँच मुख्य चित्रित किये जाते हैं आत्मसत्ता पर चढ़े पाँच कोश-आवरण का इसे अलंकारिक चित्रण कह सकते हैं। पंच तत्त्वों से पदार्थ जगत बना हैं पंच कोशों से चेतना के स्थूल, सूक्ष्म, और कारण कलेवरों का निर्माण हुआ हैं विकसित स्थिति में यही पाँच प्रमुख देवताओं की तरह अनुग्रह बरसाते और वरदान देते देखे जाते हैं।

जप-ध्यान की प्रथम कक्षा उत्तीर्ण करके साधक को योग तप की उच्च भूमिका में प्रवेश करना पड़ता है। इसी का रहस्य यम ने नचिकेता को पंचाग्नि विद्या के रूप में समझाया हैं। उपनिषद्कार ने इन्हीं की शक्ति स्रोतों की पाँच प्राण के रूप में विवेचना की हैं वेदान्त की तत्त्व साधना में इसी को ‘पंजीकरण’ कहा गया है।

गायत्री महाशक्ति की उच्चस्तरीय साधना पंचकोशों की अनावरण प्रक्रिया कही जाती हैं। स्थूल जगत में संध्या पंच तत्त्वों पर और सूक्ष्म जगत में सन्निहित पंच प्राणों की प्रस्तुत क्षमता को इसी आधार पर जागृत किया जाता है समग्र प्रगति की इस साधना में पुरुषार्थ से असाधारण सहायता मिलती है। ब्रह्म वर्चस्’ की उच्चस्तरीय साधना में इसी पंचकोशी तपश्चर्या को प्रमुखता दी गई है।

ब्रह्म वर्चस् प्रक्रिया शक्ति-कुँज आकर क्रियात्मक शिक्षण प्राप्त करने वालों के लिए भी है और उन दूरवर्ती व्यस्त लोगों के लिए भी जो कारण वश उसमें सम्मिलित हो सकने की स्थिति में नहीं हैं। अखण्ड-ज्योति के प्रस्तुत अंगों में दोनों के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जा रही हैं। यह सभी के लिए उपयोगी है। जो साधना करने की स्थित में नहीं हैं उनके लिए भी यह ज्ञान उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि किसी श्रेष्ठतम ज्ञातव्य का संचय करना।

इस अंक में पंचकोश के उस पक्ष का वर्णन है जो भौतिक विज्ञान से प्रतिपादित और समर्पित हैं। इसके अतिरिक्त यह पक्ष अभी बताया जाना शेष है जिसके सम्बन्ध में प्रयोगशालाएँ कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं हैं अनुभूतियों, संवेदनाओं और निष्ठाओं के आधार पर ही जिन्हें जा सकता है। अणु शक्ति अभी भी नेत्रों के लिए दृश्यमान नहीं है। गणितीय आधार पर ही उसके स्वरूप का निर्धारण नहीं है। गणितीय आधार पर ही उसके स्वरूप का निर्धारण होता है। अध्यात्म की समस्त उपलब्धियाँ भौतिक विज्ञान से समर्पित हो सकती हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता। तो भी इस बुद्धिवाद और प्रत्यक्षवाद के युग में जितना अधिक सम्भव हो सकेगा उतना प्रयत्न किया जाएगा। आगे की प्रगति, श्रद्धा और विश्वास के-प्रयोग एवं अनुभव के-आधार पर ही आगे बढ़ सकेगी।

इस अंक में पंचकोशों के स्वरूप एवं विवेचन के विज्ञान समर्पित पक्ष का विवरण है। अगले अंग में इस सन्दर्भ में किये जाने वाले साधना उपक्रम का उल्लेख होगा। इन दो अंगों को ब्रह्म वर्चस् साधना ज्ञान एवं विज्ञान-सिद्धान्त ऊहापोह के साथ आगे भी चलती रहेगी। पिछले दिनों प्रकाश-मार्ग दर्शन पर, ज्ञातव्य एवं विवेचन पर जोर दिया जाता रहा हैं। अगले दिनों उसकी प्रेरणा, साधना एवं क्रिया-पद्धति से जिज्ञासुओं को लाभान्वित किया जाता रहेगा। यही है अपनी ब्रह्म वर्चस् प्रशिक्षण की भावी रूप-रेखा


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118