अपनों से अपनी बात

December 1975

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यों बसन्त पर्व अनादिकाल से महा सरस्वती के अवतरण दिन के रूप में मनाया जाता है। ज्ञान की दोनों धाराएं-शिक्षा और विद्या, भौतिक और आत्मिक ज्ञातव्य के रूप में गंगा-यमुना की तरह प्रवाहित होती हैं इन्हीं को वीणा एवं पुस्तक के रूप में चित्रित किया गया है। नर पशु को गोदी में उठा कर नरदेव बनने की उच्च स्थिति तक पहुँचा देने की सामर्थ्य विद्या में ही। विद्या रानी है-संपत्ति और सबलता उसकी चेरी। विद्या के अभाव में संपत्ति और सशक्तता का दुरुपयोग ही बन पड़ता है और उससे आना और अपने संपर्क क्षेत्र का विनाश ही सम्भव होता है। शरीर रक्षा के लिए जिस प्रकार आहार की आवश्यकता है, उसी प्रकार आत्मिक क्षुधा बुझाने के लिए विद्या की उपयोगिता है। लोग रोटी तो जुटाते हैं, पर विद्या के लिए ध्यान नहीं देते और अन्तरात्मा को भूखा मारते रहते हैं। इस भूल को सुधारने के लिए, उपेक्षा को उत्साह में परिणत करने के लिए, विद्या में उत्साह उत्पन्न करने के लिए बसन्त पर्व भगवती सरस्वती के जन्मदिन की तरह मनाया जाता है।

अगला वर्ष स्वर्ण-जयन्ती वर्ष मनाया जाय

अन्यान्य पर्वों की प्रेरणा अपने ढंग की अपनी है। दिवाली से अर्थ-व्यवस्था, गीता जयन्ती से कर्मनिष्ठा, होली से यज्ञीय जीवन, रामनवमी से मर्यादा पालन, गंगा दशमी और गायत्री जयन्ती से पवित्रता, आध्यात्मिकता, गुरुपूर्णिमा से अनुशासन, श्रावणी से प्रायश्चित, परिमार्जन, कृष्णाष्टमी से योग सन्तुलन, विजयदशमी से सशक्तता सम्पादन की प्रेरणा मिलती है। इन समस्त विभूतियों का उपार्जन-अभिवर्धन सद्ज्ञान चेतना का विकास बन पड़ने से ही सम्भव होता है। अस्तु विद्या की देवी सरस्वती का जन्म दिन बसन्त पर्व का सबसे बड़ा त्यौहार माना जा सकता है। यों उत्सव समारोह परम्परा के हिसाब से होली, दिवाली को बड़ा माना जाता है, पर यदि प्रेरणात्मक गरिमा को ध्यान में रखा जाय तो प्रथम स्थान बसन्त का ही मानना पड़ता है। बुद्धि जीवियों के लिए सर्वोपरि प्रेरणा इसी से मिलती है। जन मानस को विद्या की महिमा समझाने की प्रचारात्मक दृष्टि से भी उसे अधिकाधिक उत्साह के साथ व्यापक रूप से मनाया जाना आवश्यक ठहरता है।

युग निर्माण अभियान यों एक छोटा सा संगठन या आन्दोलन जैसा प्रतीत होता है, पर वस्तुतः वह चेतना जगत में उत्पन्न हुई अपने समय की अति महत्वपूर्ण हलचल है। जनमानस का भावनात्मक परिष्कार समूची मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य का केन्द्र बिन्दु है। उसकी प्रगति मानवी स्तर के उज्ज्वल भविष्य की बहुमूल्य संभावनाएं अपने साथ जोड़े हुए है। अभियान की सफलता विश्वशान्ति के प्रमुख आधारों पर परिपुष्ट करेगी। दूरगामी से देखने पर इस हलचल को अगणित सामयिक समस्याओं के एकमात्र हल के रूप में एक दिव्य अवतरण इसे माना जा सकता है। ऐसी महत्वपूर्ण हलचल जिसमें युग प्रवाह को उलट देने की संभावनाएं विद्यमान है, भविष्य के लिए आशा केन्द्र समझी जायं तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति न होगी।

हम सब को गर्व करने और गौरवान्वित होने का अधिकार है कि ऐसी दिव्य हलचल को जन्म देने और उसे अग्रसर करने में भावनापूर्वक अनवरत श्रम कर रहे हैं। इस चिन्तन और कर्तृत्व के लिए प्रेरणा प्रवाह उत्पन्न करने वाले उद्गम के रूप में युग निर्माण अभियान को देखा समझा जा सकता है। बसन्त पर्व के दिन ही इस युगान्तरीय चेतना का श्रीगणेश हुआ-इस घटना को भगवती सरस्वती के जन्म दिन के साथ संगति मिलाने पर हम लोगों के लिए यह और भी अधिक उत्साहवर्धक बन जाता है।

सर्वविदित है कि अब से 38 वर्ष पूर्व ‘अखण्ड-ज्योति’ पत्रिका का प्रकाशन ठीक बसन्त पर्व के दिन ही प्रारम्भ हुआ था। यों देखने में वह भी एक साहित्यिक प्रयास जैसा लगता है, पर जिन्होंने उसे निकट से देखा है ये जानते हैं कि यह एक प्रकाश पुंज है। जिसने एक दीपक से असंख्य दीपक जलने वाले काव्यालंकार को प्रत्यक्ष कर दिखाया है। आत्मा को अखण्ड-ज्योति का दिव्य-दर्शन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के क्षेत्र से आगे बढ़ाकर व्यवहार के कार्यक्षेत्र में उतारा जा सकता है। इस अनोखेपन का अभिनव प्रयोग करने का दुस्साहस किया गया और वह सफल होकर रहा-यही है एक शब्द में कहा जा सकने योग्य अखण्ड-ज्योति का इतिहास। युगान्तरीय चेतना की गंगोत्री उसे माना जा सकता है उसका साधना क्षेत्र युग निर्माण योजना के रूप में आज अति विस्तृत क्षेत्र में लहलहाता हुआ देखा जा सकता है। जन-मानस के सर्वतोमुखी भावनात्मक नव निर्माण का लक्ष्य आधी दूर है पर उस दिशा में जिस उत्साह के साथ चरण बढ़ रहे हैं, उन्हें देखते हुए किसी समय जो असंभव समझा जाता था, वह अब सम्भव प्रतीत होने लगा है। मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण-कभी ‘दिवा-स्वप्न’ कहा गया था, पर अब दूरदर्शी लोग यथार्थता के निकट आकर देखते हैं तो कहते हैं-कठिन होते हुए भी यह असम्भव नहीं है। कल यह सुनने के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए कि कभी जो कठिन समझा जाता था वह सरल बनकर सामने आ गया।

अखण्ड-ज्योति लगती भर पत्रिका है, वस्तुतः वह एक मिशन है; जो किसी वर्ग, क्षेत्र, धर्म की सीमित परिधि में नहीं बंधता और न छुट-पुट सामयिक हलचलों तक सीमित होता है। फुन्सियों पर मरहम पट्टी करने की औपचारिकता स्वीकार करते हुए भी उसका लक्ष्य रक्त शोधन प्रक्रिया है। इसके लिए टिटहरी द्वारा समुद्र पाटे जाने वाले दुस्साहस की पुनरावृत्ति करने वाली विनम्र हलचल को अखण्ड-ज्योति कहा जा सकता है। आज उसका बाजारू मूल्य थोड़ा ही आँका जा सकता है, पर वस्तुतः है वह अत्यन्त गरिमा युक्त एवं बहुमूल्य। कहना न होगा कि इस महान प्रयास के सूत्र संचालन में जितना मनोयोग लगा है उससे कहीं अधिक सहयोग अखण्ड-ज्योति परिवार के परिजनों का संलग्न रहा है। यदि यह एक पक्षीय प्रयास रहा होता तो गाड़ी थोड़ी दूर लुढ़क सकने में समर्थ न हुई होती।

जो हो, अखण्ड-ज्योति की प्रतिष्ठापना से लेकर उसकी अद्यावधि प्रगति हम सबके लिए उल्लास एवं सन्तोष का कारण है। उसका जन्म दिन मनाने में बसन्त पर्व हमारे लिए दुहरा आकर्षण बन जाता है। एक ही नहीं अनेक और भी आधार एक के बाद एक, शृंखलाबद्ध रूप में उभरे है और उन सब का जन्म भी इसी दिन होता चला आया है। अखण्ड ज्योति बसन्त पंचमी को आरम्भ हुई। कुछ समय बाद उसी दिन युगनिर्माण अभियान ने जन्म लिया। गायत्री तपोभूमि जैसी विशालकाय संस्था का निर्माण एवं धर्मचेतना में संलग्न जीवित आत्माओं को एक सूत्र में पिरोकर एक परिवार के रूप में विकसित करने का प्रयास-सहस्र कुण्डी गायत्री यज्ञ-जैसे अपने दो प्रमुख कार्य इसी दिन आरम्भ हुए। शांतिकुंज की नींव इसी दिन रखी गई। महिला-जागरण की युगान्तरीय चेतना का श्री गणेश इसी मुहूर्त में किया गया। ऐसे-ऐसे छोटे-बड़े ढेरों ही क्रिया-कलाप इसी शुभ दिन से आरम्भ किये जाते रहे है। अब से 50 वर्ष पूर्व एक दिव्य प्रेरणा के प्रत्यक्ष मार्ग-दर्शन में 24 लख के जप 24 महापुरश्चरणों की 24 वर्षों में सम्पन्न हुई तप साधना का संकल्प किया गया था। अखण्ड-घृत दीप की स्थापना भी उसी दिन हुई और वह साधनात्मक प्रयास सूक्ष्म से परिपुष्ट होते-होते स्थूल में विकसित होता चला आया है। इस प्रकार अपनी गतिविधियाँ 38 वर्ष पूर्व नहीं 50 वर्ष पहले अवतरित हुई मानी जानी चाहिए। पत्रिका का प्रकाशन एवं संगठनात्मक हलचलें तो वृक्ष के पुष्प पल्लव हैं। उसके बीजारोपण को यदि महत्व दिया जाय तो फिर यही कहना होगा कि इस अभिनव चेतना का अवतरण अब से 50 वर्ष पूर्व हुआ और आधी शताब्दी से चल रही यह मात्रा अनवरत गति से अनेक पड़ावों पर ठहरते, सुस्ताते-यहाँ तक आ पहुँची जहाँ आज हम हैं। पीछे मुँह कर इस लम्बी अवधि पर दृष्टिपात करते हैं तो श्रम की सार्थकता और सफलता पर सन्तोष की साँप लेने को जी करता है-यों अभी आगे की यात्रा की शेष दूरी भी कुछ कम नहीं है।

प्रचलित परम्पराओं में किसी उत्साहवर्धक कार्य की जयन्तियाँ मनाई जाती है। 25 वर्ष पर रजत-जयन्ती और 100 वर्ष पर शताब्दी मनाई जाती है। इन आयोजनों के पीछे पिछली सफलता पर हर्ष अनुभव करने और आगे के लिए अधिक उत्साह भरने का उद्देश्य रहता है। यह अच्छी परम्परा है। मनुष्य भी अपने निजी जीवन में ऐसे-ऐसे हर्षोत्सव मनाते हैं। सफल संस्थाएं भी ऐसे आयोजन करती हैं। अखण्ड-ज्योति का स्वर्ण जयन्ती वर्ष मना सकते हैं और उस का शुभारम्भ बसन्त वर्ष मना सकते हैं। अगली बसन्त पंचमी 5 फरवरी 76 गुरुवार की पड़ेगी। उस दिन सदा की अपेक्षा कुछ अधिक उत्साह प्रदर्शित किया जाय और पहले सभी आयोजकों की तुलना में बड़ा आयोजन मनाया जाय तो यह हर दृष्टि से उचित ही होगा।

अब तक हर वर्ष ‘अखण्ड-ज्योति’ के परिजन अपने सर्वश्रेष्ठ त्यौहार के रूप में बसन्त पंचमी को स्मरण करते हैं और उस दिन एक अच्छे उत्सव आयोजन की व्यवस्था करते हैं। प्रभात फेरी-सामूहिक जप, हवन, कीर्तन, प्रवचन, रात्रि को दीपदान, श्रद्धाभिव्यक्ति, भावी गतिविधियों का संकल्प जैसे कार्यक्रम इस उत्सव के प्रधान अंक होते हैं। जहाँ जिस प्रकार जैसी सुविधा होती है वहाँ प्रबन्ध कर लिया जाता है। अखण्ड-ज्योति के प्रायः सभी ग्राहक; पाठक अपने प्रियजनों सहित इस उत्सव में एकत्रित होकर अपनी भावभरी श्रद्धा का परिचय देते हैं। यह सम्मेलन मात्र हर्षोत्सव बनकर समाप्त नहीं हो जाता वरन् हर उपस्थित व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक कर्तव्यों का स्मरण दिलाता है और भविष्य में अधिक साहस पूर्ण कदम बढ़ाने का उत्साह भरता है। आयोजन पर जो श्रम किया जाता है उसे आयोजनकर्ता पूर्णतया सार्थक हुआ अनुभव करते हैं क्योंकि उसके फलस्वरूप अपने रचनात्मक प्रयत्नों में निश्चित रूप से तीव्रता उत्पन्न होती है।

जहाँ बड़े रूप में सार्वजनिक आयोजन संभव नहीं होते वहाँ इसी क्रिया-कलाप को छोटे पारिवारिक उत्सव की तरह घर पर मना लिया जाता है। अपना निजी जन्मोत्सव कितने ही लोग अपने घरों पर मनाते हैं और पास पड़ोस के परिचित लोगों को उसमें सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित लोगों को उसमें सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित करते हैं। जो अपने निजी जन्म दिन की तरह ही अपने प्रेरणा, स्रोत का जन्म भी महत्वपूर्ण मानते हैं वे उसे भी उसी उत्साह से सम्पन्न करते हैं। सार्वजनिक बड़ा आयोजन न बन पड़ा तो न सही, पर भावनाओं के प्रखर रहते निजी उत्सव-पारिवारिक आयोजन के रूप में बसन्त पर्व मना लेना कभी किसी के लिए कठिन नहीं पड़ा है। यही कारण है कि कुछ बहुत ही अनुत्साही अवसाद ग्रस्त लोगों को छोड़ कर अखण्ड-ज्योति के प्रायः सभी परिजन बसन्त पर्व को सार्वजनिक रूप से बड़े स्तर पर अथवा निजी रूप में छोटे उत्सव स्तर पर उसे मनाते रहते हैं। यह परम्परा प्रायः पिछले 25 वर्षों से तो एक प्रकार से नियमित जैसी ही बन गई है।

इस वर्ष इस उत्साह को दूना कर दिया जाय तो यह उचित ही होगा। स्वर्ण जयन्ती बड़ा पर्व है। 50 वर्ष की आदर्शवादी यात्रा का अनवरत गति से अग्रगामी रहना बड़ी बात है। जो बन पड़ा है गर्व करने और सन्तोष व्यक्त करने योग्य है। यह अनुभूतियाँ जिन्हें होंगी, वे अपनी प्रसन्नता सुविस्तृत क्षेत्र में बखेरने और उस प्रकाश वितरण से अनेकों को अभिनव उत्साह प्रदान करने की बात सोचे बिना नहीं रह सकते। महामानवों की देवताओं की श्रेष्ठ घटनाक्रमों की जयन्तियाँ मनाई जाती हैं तो कोई कारण नहीं कि अखण्ड-ज्योति को अपने मिशन की स्वर्ण जयन्ती मनाये जाने के लिए उत्साह उत्पन्न न हो।

इस बार का बसन्त पर्व कहाँ किस तरह मनाया जा सकता है, इसकी स्थापना परिजनों का काम है। वे अपनी परिस्थिति के अनुरूप जो कुछ सम्भव हो करें पर लक्ष्य निर्धारित करते समय अनुपात का ध्यान रखें। सामान्य साधारण वार्षिक उत्सव की अपेक्षा स्वर्ण जयन्ती की गरिमा स्वभावतः अधिक होती है अस्तु इस वर्ष का आयोजन भी बड़ा ही होना चाहिए। साधारणतया उसका आवरण पिछले वर्ष से दूना तो होना ही चाहिए। जहाँ अब तक कभी कुछ भी नहीं हुआ है वहाँ इस स्वर्ण जयन्ती वर्ष पर्व से उस उपेक्षा एवं असमर्थता को सर्वथा समाप्त ही कर दिया जाना चाहिए। होली मिलन की तरह बसन्त पर्व अखण्ड-ज्योति परिजनों का एक सुनिश्चित दिन होना चाहिए। इस बार की स्वर्ण जयन्ती ने उसकी आवश्यकता को और भी अधिक बढ़ा दिया है।

यह सामयिक उत्सव आयोजन की चर्चा हुई। इससे भी बड़ी बात यह है कि इस बोधि वृक्ष को सूखने से बचाने और खाद पानी देकर परिपुष्ट करने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है ? सूत्र संचालकों एवं संयोजकों के श्रम की सार्थकता उसी अनुपात से बढ़ेगी; जिससे कि उसके पाठकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इस प्रकाश से थोड़े लोगों का संपर्क हो तो प्रभाव क्षेत्र छोटा होकर ही रह जायगा पर यदि उस संपर्क में अधिक लोग आवें तो हलचलें भी उसी अनुपात से बढ़ेगी और लक्ष्य तक पहुँच सकना भी अपेक्षाकृत उतनी ही जल्दी हो सकेगा। अतएव हम सब को सम्मिलित प्रयत्न यह हो कि पिछले वर्ष की तुलना में न केवल बसन्त पर्व का आयोजन ही दूना बढ़ा हो वरन् उस अवसर पर समर्पित हो जाने वाली श्रद्धांजलि का लक्ष्य भी दूना कर दिया जाय।

हर वर्ष भावनाशील परिजन टोलियाँ बनाकर निकलते हैं। पुराने ग्राहकों से चन्दा वसूल करते और प्रभाव क्षेत्र में घूम−फिर कर नये पाठक बनाते हैं। चिरकाल से यही क्रम चला आ रहा है और इसी प्रयास से अखण्ड-ज्योति की सदस्य संख्या क्रमशः बढ़ती आई है। इस प्रयत्न के लिए यदि दूना उत्साह बढ़ा दिया जाय, और जन संपर्क के लिए अधिक समय निकाला जाय, टोलियों में अधिक प्रभावशाली लोग लिए जायं तो कोई कारण नहीं कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष असाधारण रूप से पाठकों की संख्या वृद्धि न हो सके।

अपने परिवार का दूना विस्तार सहल ही हो सकता है, यदि अखण्ड-ज्योति के वर्तमान पाठक उसे चुनाव जीतने जैसा प्रतिष्ठा प्रश्न बना लें और उसके लिए उतनी ही दौड़ धूप करें जितनी कि शासन संस्थाओं के सदस्य बनने के आकाँक्षी अपनी निजी सफलता के लिए परिपूर्ण तत्परता के साथ प्रयत्न करते हैं। कहना न होगा कि पाठकों की संख्या बढ़ने के हिसाब से ही अपने इस महान मिशन की सफलता सुविस्तृत होगी जिसका यह जन्म दिन है और जिसकी स्वर्ण जयन्ती मनाई जा रही है।

हर अखण्ड-ज्योति को कम से कम दस व्यक्ति पड़ा करें यह एक से दस वाला क्रम बहुत दिन से चल रहा है। उसके अतिरिक्त इस वर्ष और विशेष लक्ष्य रखा जाना चाहिए कि अपने जितने भी अखण्ड-ज्योति अंक हों उन पर मजबूत कागज चिपकाकर नये सिरे से सीकर कुछ दिन टिकाऊ रह सकने योग्य मजबूत बना लिया जाय और फिर उन्हें अपने प्रभाव परिचय क्षेत्र में अधिकाधिक लोगों को पढ़ाते रहने का निश्चय किया जाय। यह झोला-पुस्तकालय बहुत ही सरल है। अपने संपर्क में कितने ही लोग आते रहते हैं, उनमें से जो विचारशील प्रतीत हों उन्हें पुरानी पत्रिकाएं पढ़ने चाहिए। यदि यह क्रम एक साल भी जारी रखा जा सके तो जयन्ती वर्ष में 108 व्यक्तियों को पत्रिका के अनेकों अंक पढ़ा देने की प्रतिज्ञा पूरी हो सकती है। लक्ष्य 108 की प्रचार माला पूरी करने का रखा जा सकता है। यदि वह संकल्प एक वर्ष की अवधि में पूरा न हो सके तो आगे कभी तक भी घसीट कर ले जाया जा सकता है। आशा की जायगी कि इस प्रकार की प्रतिज्ञा उत्साही परिजनों में से प्रत्येक की होगी और उसे पूरा करने का प्रयास यह अंक पढ़ने के दूसरे दिन से ही आरम्भ कर दिया जायगा। जिन्हें पढ़ाया जाय उनके नाम पते नोट करके रखे जायं ओर वह सूची जयन्ती वर्ष में हर तीसरे महीने भेजी जाती रहे। अब से लेकर बसन्त पंचमी तक ग्राहक बढ़ाने और पुराने अंक पढ़ाने में जितनी सफलता मिले उसका विवरण भी पर्व आयोजन मनाने की सूचना समेत शान्ति-कुंज सप्तसरोवर, हरिद्वार के पते पर भेजी जानी चाहिए।

निजी जीवन में आदर्शवादिता और उदारता का अधिकाधिक समावेश करने की दृष्टि से इस पर्व पर आत्म-चिन्तन विशेष रूप से किया जाना चाहिए और भविष्य के लिए आत्म सुधार की-आत्म निर्माण की सुनिश्चित योजना बनाई जानी चाहिए। लोक-मंगल के लिए समय दान और साधन दान का परिणाम भी अगले वर्ष बढ़ना चाहिए। भौतिक प्रगति की तरह ही आत्मिक प्रगति के लिए भी हमारे अन्तःकरणों में प्रबल उत्कण्ठा उठनी चाहिए। बसन्त पर्व से आदर्शवादी नव-जीवन की उपलब्धि के लिए गत अंक में दिये गये परामर्श को अपने व्यावहारिक जीवन में समाविष्ट करने के लिए समूची साहसिकता और तत्परता को प्रदीप्त करना चाहिए। हर वर्ष बसन्त पर्व नई प्रेरणा और नई चेतना देने के लिए आया करे तभी तो अखण्ड-ज्योति परिवार को सार्थक हुआ होना माना जा सकता है।

महिला जागरण हमारी इस वर्ष की विशेष गतिविधि है। महिला शाखाओं की स्थापना हर जगह की जानी चाहिएं तत्सम्बन्धी गतिविधियों की अग्रगामी बनाने के लिए महिला सम्मेलनों द्वारा जस मानस में उभार उत्पन्न किया जाना चाहिए और महिला पाठशालाओं की स्थापना जैसे रचनात्मक कार्यों के लिए विशेष प्रयत्न किये जाने चाहिए।

रामायण सप्ताह, गायत्री यज्ञ, शतसूत्री कार्यक्रम, युग-निर्माण पत्रिकाओं का प्रचार-प्रसार, प्रचार फेरी, तीर्थयात्रा जैसे युग-निर्माण योजना कार्यक्रमों में शिथिलता तनिक भी नहीं आने देनी चाहिए। अपनी सभी प्रचारात्मक, रचनात्मक और सुधारात्मक गतिविधियों में पूरा-पूरा उत्साह बना रहना चाहिए।

शान्ति कुंज में चल रहे सत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, वे कब तक चलते रह सकेंगे यह कहा नहीं जा सकता। इनमें सम्मिलित होने के लाभ से वंचित नहीं रहा जाना चाहिए। सन् 76 में कुछ समय शान्ति-कुंज में रह कर अभिनव प्राण चेतना उपलब्ध करने के लिए किसी ने किसी सत्र में हरिद्वार पहुँचने की बात अभी से ध्यान में रखनी चाहिए, जो पहले किन्हीं सत्रों में आ चुके हैं वे भी योगतप सत्रों में आने का अवसर निकाल पायें तो उनके लिए यह हर दृष्टि से श्रेयस्कर ही सिद्ध होगा। योगतप सत्रों का एक संक्षिप्त संस्करण व्यस्त लोगों के लिए दस-दस दिन का भी बना दिया गया है। जो एक महीने नहीं रह सकें, वे वही सब शिक्षा संक्षिप्त रूप से दस दिन में भी प्राप्त कर सकें ऐसी व्यवस्था बना दी गई है। रामायण, गीता, भागवत आदि के माध्यम से लोक-शिक्षण के सत्र अगले वर्ष डेढ़ महीने के नहीं दो-दो महीने के होंगे। वे (1) मई, जून (2) जुलाई, अगस्त में चलेंगे। जिनमें जिन्हें आना हो वे समय से पूर्व ही स्वीकृति प्राप्त कर लें।

बसन्त ऋतु में पेड़ पौधे सभी हरे भरे होते और फलते-फूलते हैं। अखण्ड-ज्योति परिवार के उद्यान को इस बसन्त पर्व पर अधिक हरा भरा होना चाहिए और महकने फलने-फूलने में पिछले सभी प्रयासों को पीछे छोड़ कर नया कीर्तिमान स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा में जुटना चाहिए। स्वर्ण-जयन्ती वर्ष मनाने की प्रत्येक परिजन से ऐसी ही अपेक्षा है।


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