सफलता साहसी के चरण चूमती है

December 1975

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पूँजी है - साहस। इसी के बल पर कुछ कर गुजरने की परिस्थितियाँ बनती हैं। भले और बुरे दोनों ही प्रकार के कठिन कार्य केवल साहसी ही कर पाते हैं। चोरी, डकैती जैसे क्रूर कर्म भी साहस के बिना नहीं हो पाते हैं। उद्दण्ड, आततायी और अपराधी आतंक उत्पन्न करने वाले लोग अपने दुर्गुणों का समयानुसार दंड पाते और दुख भोगते हैं। किन्तु जो क्षणिक सफलता उन्हें मिलती है वह साहस की ही प्रतिक्रिया होती है। साहस वह हुण्डी है जिसे किसी भी बाजार में भुनाया जा सकता है और उसके बदले किसी भी दुकान से कुछ भी खरीदा जा सकता है। भलाई खरीदनी है या बुराई यह निर्णय करना अपना काम है। खरीदना जो कुछ भी हो उसके लिए साहस का सिक्का तो चाहिए ही।

डरा हुआ व्यक्ति अपनी वास्तविक क्षमता का एक बड़ा अंश अनायास ही गँवा बैठता है। शत्रु से लड़ने और विपत्ति का सामना करने में जितनी शक्ति खर्च होती है उससे कहीं अधिक भयभीत मनः स्थिति में नष्ट हो जाती है। भूत, साँप, चोर आदि से डरे हुए व्यक्ति किस प्रकार काँपते हाँफते हैं, इसे कभी भी देखा जा सकता है। यह प्राण संकट का भय मनुष्य को रोमांचित कर देता है, दम फुला देता है और कँपकँपी बुला देता है। इस स्थिति में मनुष्य की घिग्घी बँध जाती है। हक्का-बक्का बनकर वह किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाता है। समझ नहीं पाता कि क्या करे, क्या न करे ? हतप्रभ अर्धविक्षिप्त व्यक्ति बेमौत मारा जाता है। अजगरों से डरे पक्षी और व्याघ्रों से डरे बन्दर अपने बचाव के उपाय छोड़ बैठते हैं और सहज ही मृत्यु के मुख में घुसते चले जाते हैं।

इससे कुछ ही हलका डर असफलता का होता है। वह मृत्यु के बराबर भयंकर न होते हुए भी दुर्बल मनःस्थिति के लोगों को लगभग वैसा ही प्रतीत होता रहता है। भविष्य में कठिनाइयाँ आयेंगी, असफलताएं मिलेंगी, अवरोध उत्पन्न होंगे, उपद्रव खड़े होंगे, विरोधी आक्रमण करेंगे, कुसमय विपत्ति बनकर त्रास देगा आदि अनेकानेक आशंकाएं कुशंकाएं चित्र विचित्र रूप बनाकर सामने आती और कल्पित विभीषिकाओं से डराती हैं। ऐसे मनुष्य के लिए दिन काटना ही कठिन पड़ता है। कोई बड़ा काम करने का साहस कर सकना उसके लिए सम्भव नहीं होता। आत्म विश्वास की कमी यह अनुभव ही नहीं करने देती कि वह कुछ कर सकता है और उसे किसी क्षेत्र में सफलता मिल सकती है। बहुत हिम्मत करके किसी दिशा में कुछ कदम बढ़ाना भी है तो मनोबल देर तक साथ नहीं देता। कुछ ही

संसार हमारे ही मन का प्रतिबिम्ब है।

समय में वह टूट जाता है और जल्दी सफलता न मिलने की उतावली से निराश होकर उन प्रयासों को छोड़ बैठता है जो थोड़े दिनों और जारी रहते तो सफलता के निकट पहुँच सकते थे।

प्रगति के पथ पर अग्रसर होने के लिए जिन साधनों की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है, उनमें सर्वप्रथम है - आत्म विश्वासजन्य साहस। इसे जुटा लेने पर फिर आगे की मंजिल सरल हो जाती है। साहसी व्यक्ति किसी मार्ग को चुनने से पहले उसके सभी पहलू भली प्रकार देखता, सोचता है, पर जब निर्णय कर लेता है कि यह करना ही है तो फिर तत्परतापूर्वक अभीष्ट प्रयोजन के लिए जुट पड़ता है। पराक्रम भरा पुरुषार्थ पहाड़ों पर रास्ता बनाता है, नदियाँ उसके लिए राह देती हैं, साधन जुटाती हैं और अनेकों का सहयोग उपलब्ध होता है। साहस का चुम्बक साधनों के लौह कण सहज ही खींचता, समेटता चलता है। सफलता ऐसे ही मनस्वी व्यक्तियों के चरण चूमती हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118