यौवन आजीवन अक्षुण्ण रह सकता है

December 1975

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बुढ़ापा नहीं रोका जा सकता लेकिन यौवन को आजीवन अक्षुण्ण रखा जा सकता है। प्रकृति के नियम हर पदार्थ और हर प्राणी को अपने, बढ़ने, परिपक्व होने, ढलने और नष्ट होने की मर्यादा में जकड़े हुए हैं।

फिर यौवन कैसे अक्षुण्ण रह सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर में यह समझना चाहिए कि यौवन शारीरिक नहीं किन्तु मानसिक स्थिति है उस पर शरीर पर पड़ने वाले प्रकृति प्रवाह का प्रभाव नहीं पड़ता। मनःक्षेत्र स्वसंचालित है उसमें उतार-चढ़ाव भीतरी कारणों से आते हैं, बाहरी कारणों से नहीं। बच्चों का अविकसित मस्तिष्क अपने क्रम से परिपक्व होता है, पर वयस्क व्यक्ति की मानसिक स्थिति उसके अपने चिन्तन पैर निर्भर रहती है। सामान्य लोगों की दृष्टि में जो परिस्थितियाँ आपत्ति की श्रेणी में गिनी जा सकती है। उनमें कोई मनस्वी व्यक्ति पूर्ण सन्तुष्ट और प्रफुल्लित रह सकता है। इसके विपरीत सर्वजनीन मान्यता जिन साधनों को वैभव मानती है उनके प्रचुर मात्रा में रहते हुए भी कोई व्यक्ति मानसिक विसंगतियों में ग्रसित होकर अत्यन्त दुःखी और उद्विग्न रहता देखा जा सकता है।

चेहरे पर भले ही झुर्रियाँ पड़ गई हों, चमड़ी लटक गई हो, बाल सफेद पड़ गये हों और दाँत उखड़ गये हों इन लक्षणों को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह बूढ़ा आदमी है। ऐसे व्यक्तियों की इन्द्रियाँ शिथिल पड़ सकती हैं और श्रम शक्ति घट सकती है। पर फिर भी यदि वह मनस्वी है तो यौवन अपने स्थान पर अविचल खड़ा रह सकता है और उसकी स्थिरता में मृत्यु पर्यन्त कोई आँच नहीं आ सकती। जो अपने को भरा-पूरा अनुभव करता है, वह जवान है। जिसे अपने साधन उपकरण सामान्य निर्वाह के लिए पर्याप्त मालूम पड़ते हैं। और असंख्यों की तुलना में अपनी उपलब्धियों की बढ़ी-चढ़ी मानता है, उस सन्तुष्ट व्यक्ति के चेहरे पर हलकी मुस्कान दिखाई पड़ेगी। वस्तुतः यही जवानी की निशानी है।

शरीर से माँसल और नख-शिख की बनावट से आकर्षण होते हुए भी कोई तरुण व्यक्ति नितान्त बूढ़ा हो सकता है। जिसका आशा दीप बुझ गया, जिसे अपने चारों और अन्धकार ही दीखता है, जिसे अपने साधन अपर्याप्त मालूम पड़ते हैं, जिसे स्वजन-संबंधियों से अनेकों शिकायत हैं, वह हारा और खीजा दिखाई पड़ेगा। सरसता विदा हो गई होगी और असन्तोष का भार लद गया होगा, वह मानसिक दृष्टि से बूढ़ा है। संपर्क में आने पर सहज ही पता चल जाता है कि यह अर्धमूर्छित बूढ़ा आदमी नीरस और कर्कश जीवन जी रहा है। उसके घनिष्ठ संपर्क में रहने की किसी की भी इच्छा नहीं हो सकती।

जो वर्तमान से निर्भय है, आत्म-विश्वास जिसे भरोसा दिखाता है, वह बड़ी से बड़ी कठिनाई से भी साहस पूर्वक लड़ने में आनन्द ले सकता है। जो भविष्य को उज्ज्वल सम्भावनाओं से भरा-पूरा देखता है, जिसे अपने वर्तमान साधन असन्तोषजनक नहीं लगते; जो कुछ कर-गुजरने के ताने-बाने बुनता रहता है, वह जवान है। भले ही ऐसे व्यक्ति की उम्र कितनी ही क्यों न हो चुकी हों। भले ही वह मृत्यु के निकट जा पहुँचा हो।

यह ठीक है कि परिस्थितियाँ आदमी को झुका देती हैं, पर इससे भी ज्यादा यह बात ठीक है कि मनस्वी व्यक्ति अपनी आन्तरिक परिपक्वता के कारण बाहरी क्षेत्र की किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने सरस यौवन को आजीवन अक्षुण्ण बनाये रह सकते हैं।


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