सत्यानाशी शराब से आत्मरक्षा करें

December 1975

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भगवान बुद्ध ने समस्त शासकों को चेतावनी देते हुए कहा-”जिस राज्य में मदिरा आदर प्राप्त करेगी वह महाकाल के अभिशाप ने नष्ट होता चला जायगा। वहाँ दुर्भिक्ष पड़ेंगे, औषधियाँ निष्फल होंगी और विपत्तियां मंडराएंगी। मदिरा पान महा हिंसा है।”

महात्मा गाँधी कहते थे- अगर में एक घण्टे के लिए भी सारे हिंदुस्तान का सर्वशक्ति सम्पन्न शासक बना दिया जाऊं तो पहला काम जो मैं करूंगा वह यह होगा कि तुरन्त तमाम मदिरालयों को बिना किसी मुआवज़ा दिये बंद करा दूँगा।

नेपोलियन कहते थे- हमें शत्रु की अपेक्षा मदिरा से अधिक डरना चाहिए।

अलाउद्दीन खिलजी की क्रूरताओं और खून खराबियों से इतिहास के पन्ने रंगे पड़ें हैं वह परले दरजे का शराबी था।

एक बार ऐसा योग बना कि उसे शराब उपलब्ध न हो सकी। इस पर उसका अन्तःकरण जगा और अपने दुष्ट जीवन के लिए पूर्णतया उत्तरदायी शराब को माना।

जीवन के अन्तिम दिनों वह शराब का घोर शत्रु हो गया था। उसने सदा साथ रहने वाली शराब की सुराही जमीन पर दे मारी। महल के सारे, मद्य-पात्र उसने अपने हाथों चूर किये। संग्रहित शराब सारे आँगन में ऐसे फैली पड़ी थी मानो भारी वर्षा हुई हो। इतना ही नहीं उसने शराब के विरुद्ध कड़े फरमान निकाले और शराब बनाने, बेचने और पीने वालों को कड़े दण्ड दिये।

शराबखोरी सारे संसार में अपने पैर फैला रही है। अमरीका, ब्रिटेन, फ्राँस, बेल्जियम, इटली और अफ्रीका के कुछ नवोदित धनी देशों में उसका विस्तार आश्चर्यजनक रूप हुआ है 4॥ करोड़ की आबादी वाले फ्राँस में हर 68 मनुष्यों पीछे एक शराब घर है। लगभग दो तिहाई आदी पियक्कड़ हैं। हर फ्राँसीसी पुरुष 54 लीटर और हर महिला 18 लीटर के अनुपात से शराब पीते हैं। ब्रिटेन की दशा इस क्षेत्र में दयनीय है। वहाँ 3 वर्ष के बच्चों से लेकर 70 वर्ष के बूढ़ों तक शराब के आदी हैं। औसत अंग्रेज को अपनी कमाई का 20 प्रतिशत शराब तथा सिगरेट में खर्च करना पड़ता है। बेल्जियम में 102 व्यक्तियों पीछे और पश्चिमी जर्मनी में 96 के पीछे एक शराब घर है। वीयर बेल्जियम में हर व्यक्ति पीछे 130 लीटर और जर्मनी में 212 लीटर खपती है। जर्मनी के आंकड़े बताते हैं कि वह 1220 करोड़ रुपये की बिकी।

अमेरिका में 30 प्रतिशत दुर्घटनाएं, 42 प्रतिशत हत्याएं, 28 प्रतिशत आत्म-हत्याएं, 37 प्रतिशत असावधानी जन्म मृत्युएं, 35 प्रतिशत तलाकें शराब के फलस्वरूप होती हैं। अपराधों में से कुल मिलाकर 56 प्रतिशत के लिए वहाँ शराबखोरी ही जिम्मेदार गई है।

अपने को प्रगतिशील और सुधारवादी कहने वाले रूस की भी इस क्षेत्र में स्थिति दयनीय है। वहाँ हत्याओं और बलात्कार के अपराधियों में 60 प्रतिशत और सड़कों तथा कारखानों में दुर्घटना करने वालों में 90 प्रतिशत शराबी होते हैं। तलाकों के मुकदमे जिनके आये उनमें 40 प्रतिशत शराबी थे, उनकी पत्नियों ने ऐसे साथी को छोड़ देना ही उचित समझा। कुल मिलाकर विविध प्रकार से कानून तोड़ने वाले और दंड पाने वालों में 66 प्रतिशत शराबी ही होते हैं।

फ्राँस में हिंसा और दुर्घटनाओं का अधिकाँश श्रेय शराब को था। 63 प्रतिशत दुर्घटनाएं, 39 प्रतिशत हत्याएं शराब के नशे में हुई। अपनी असावधानी से आप मरने वालों में आधे लोग शराब पिये हुए पाये गये।

क्या शीत प्रधान देशों के लिए शराब उपयोगी है ? इस सम्बन्ध में नशा विशेषज्ञ श्री जी0ई॰ गोलिन का एक लेख लिकर कन्ट्रोलो में छपा है। उसमें लिखा है-”ठण्ड से बचाव करने के लिए शराब न केवल व्यर्थ है वरन् खतरनाक भी है। अनुनठी प्रिट्जोफ की तरह मैं भी ठण्ड से बचाव के लिए शराब पीने के पक्ष में दी जाने वाली दलीलों के बिलकुल खिलाफ हूँ और शराब के दुष्परिणामों को देखते हुए यहाँ तक कहने को तैयार हूँ कि शराब पीकर ठण्ड बचाने से बेमौत मरने तक का खतरा है।”

डा0 ट्राले ने अपने ग्रन्थ “ दि ट्रू टेम्परन्स प्लेटफार्म” और अलकोलिक कन्ट्रोवर्सीज ग्रन्थों में उन मिथ्या मान्यताओं का सप्रमाण खंडन किया है, जिसके अनुसार शराब जैसे नशों को गर्मी, स्फूर्ति एवं शक्तिदायक कहा माना जाता है। उनने सिद्ध किया है कि मद्यपान के उपरान्त जो थोड़ी सी उत्तेजना दिखाई पड़ती है वस्तुतः वह जीवनी शक्ति जैसे बहुमूल्य तत्व को जलाकर चमकाई गई फुलझड़ी मात्र ही होती है। वस्तुतः मनुष्य नशे पीकर अधिक थकता और अधिक निर्बल होता चला जाता है।

दिल्ली को 1970 की रिपोर्ट में 2519 प्राणघातक सड़क दुर्घटनाएं हुई जिनमें 1750 चालक पाये गये। इसमें 972 ड्राइवर शराब पिये हुए थे। उतर प्रदेश के जेल सर्वेक्षण में पाया गया कि कारागार भुगतने में से 70 प्रतिशत ने शराब के नशे में धुत होकर अपराध किये थे।

भारत में बढ़ता हुआ शराब का प्रचलन बहुत चिन्ताजनक है। शहरों में वह 234 प्रतिशत और गाँवों में 117 प्रतिशत की दर से हर वर्ष बढ़ जाती है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो उसकी वृद्धि गगनचुम्बी गति से बढ़ रही है। उपलब्ध सूचना के अनुसार दिल्ली में पिछले चार पिछले चार वर्षों की स्वल्प अवधि में विदेशी शराब 200 प्रतिशत ओर देशी शराब 465 प्रतिशत बढ़ी। वीयर ने भी 160 प्रतिशत बढ़ोतरी कर ली। यह तो कानूनी बिक्री की रिर्पोट है। गैर कानूनी शराब बनाने और बेचने का धन्धा जिस जोर-शोर से चल रहा है उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना गलत नहीं है कि जितनी शराब कानूनी बिकती है उससे कम गैर कानूनी की भी खपत नहीं है।

शराब मनुष्य के शरीर को तो गलाती, धुलाती ही है, उसका प्रभाव बुद्धि की तीक्ष्णता और मस्तिष्क की सम्वेदना शक्ति पर भी कम नहीं पड़ता। शरीर और मस्तिष्क की बर्बादी-धन की अन्धाधुन्ध तबाही और उसके दूरगामी सामाजिक परिणाम ऐसे हैं जिससे सब प्रकार विनाश ही विनाश प्रस्तुत होता है।

समझदारी का तकाजा इसी में है इस सर्वभक्षी असुर से हम अपने समय की बर्बादी को बचाने के लिए कुछ कारगर प्रयत्न करें।

याकूब से सुना था सन्त तालसुद पहुँचे हुए फकीर हैं। उनकी दुआ से दुःखी लोग भी आनन्दित होकर आते हैं।

सो याकूब उन्हें खोजता-ढूंढ़ता एक वियावान में जा पहुँचा। वे एक टोकरी में दाना लिए चिड़ियों को चुगा रहे थे। उनकी प्रसन्नता भरी फुदकन और चहचहाहट को देखते हुए आनन्द विभोर हो रहे थे।

याकूब बहुत देर बैठा रहा, पर जब सन्त का ध्यान ही उसकी ओर न गया तो झल्लाया।

तालसुद ने उन्हें उंगली के इशारे के पास बुलाया और हाथ की टोकरी उनके हाथ में थमाते हुए कहा- लो अब तुम चिड़िया चुगाओ और उनकी प्रसन्नता को देखकर आनन्द का लाभ करो। अपना दुःख भूलकर दूसरों के आनन्द में जुट जाने के सिवाय और दूसरा रास्ता आनन्दित होने का इस दुनिया में है नहीं याकूब का समाधान हो गया।


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