ईश्वर प्रदत्त उपहार और प्यार अनुदान

January 1974

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‘मनुष्य−जन्म’ भगवान् का सर्वोपरि उपहार है। उससे बढ़कर और कोई सम्पदा उसके पास ऐसी नहीं है, जो किसी प्राणी को दी जा सके। इस उपहार के बाद एक और अनुदान उसके पास बच रहता है, जिसे केवल वे ही प्राप्त कर सकते हैं—जिन्होंने अंधकार से मुख मोड़कर प्रकाश की ओर चलने का निश्चय कर लिया है। “इस प्रयाण के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का धैर्य और साहस के साथ स्वागत करने की—जिनमें क्षमता है, वह अनुदान उन्हीं के लिए सुरक्षित है।”

‘मनुष्य−जन्म’ ईश्वर का विशिष्ट उपहार है और मनुष्योचित संकल्प भगवान् का महानतम अनुदान। मानव−जीवन की सार्थकता इस आदर्श−परायण संकल्प−निष्ठा के साथ जुड़ने से ही होती है। यह सही है कि मनुष्य−कलेवर संसार के समस्त प्राणियों से सुख−सुविधा की दृष्टि से सर्वोत्तम है, पर उसकी गौरव−गरिमा इस बात पर टिकी हुई है “कि मनुष्य−जन्म के साथ मनुष्य−संकल्प और मनुष्य−कर्म भी जुड़े हुए हों।”

“हमें ‘मनुष्य−जन्म’ मिला—यह ईश्वर के अनुग्रह का प्रतीक है। उसका ‘प्यार’ मिला, या नहीं—इसकी परख इस कसौटी पर की जानी चाहिए कि मानवी−दृष्टिकोण और संकल्प अपना कर उस मार्ग पर चलने का साहस मिला, या नहीं—जो जीवन−लक्ष्य की पूर्ति करता है। वस्तुतः ‘मनुष्य−जन्म’ धारण करना उसी का धन्य है, जिसने आदर्शों के लिए अपनी आयु तथा विभूतियों को समर्पित करने के लिए साहस संचय कर लिया। ऐसे मनुष्यों को ईश्वर का उपहार ही नहीं, वरन् प्यार एवं अनुदान मिला समझा जाना चाहिए।”

—जेम्स गिब्स


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