मरणोत्तर जीवन एक सार्वभौम सत्य

August 1974

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भारतीय धर्म शास्त्रों में पग-पग पर मरणोत्तर जीवन के तथ्य का प्रतिपादन किया गया है। गीता में बार-बार इस बात का उल्लेख किया गया है कि शरीर छोड़ना वस्त्र बदलने की तरह है। प्राणी को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। शुभ कर्म करने वाले श्रेष्ठलोक को—सद्गति को प्राप्त करते हैं और दुष्कर्म करने वालों को नरक की दुर्गति भुगतनी भुगतनी पड़ती है।

वासाँसि जीर्णानि यथा विहाय- नवानि गृह्णाति नरोऽपिरोण। तथा शरीराणि विहाय- जीर्णान्यान्यानि संयाति नवानि देही॥

—गीता 2। 22

“जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग करके नया वस्त्र धारण करता है, इससे वस्त्र बदलता है, कहीं मनुष्य नहीं बदलता, इसी प्रकार देहधारी आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरा नया शरीर धारण करता हैं।”

बहूनि में व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप॥ —गीता 4।5

‘ अर्जुन! मेरे और तुम्हारे तुम्हारे अनेक जन्म बीत गये हैं। ईश्वर होकर मैं उन सबको जानता हूँ, परन्तु हे परंतप! तू उसे नहीं जान सकता।”

प्राप्य पुण्यकृताँ लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः। शुचीनाँ श्रीमताँ गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते॥ —गीता 6।41

योगभ्रष्ट अर्थात् साधना पूरी होने के पहले मृत्यु को प्राप्त हुआ योगी, स्वर्ग से ब्रह्मलोक तक अपने पुण्य के अनुसार किसी लोक को प्राप्त कर अनेक वर्षों तक वहाँ के भोगों को भोगता हैं। भोग समाप्त होने के बाद फिर भूतल पर श्रीमन्त और पवित्र कुल में जन्म धारण करता है, जिससे वहां वहाँ शेष अपनी—साधना पूरी कर सके।

ईसाई और मुसलमान वर्ग में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है। वे प्रेत अस्तित्व को भी नहीं मानते। हिन्दू समाज के बारे में कहा जाता है कि उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर पुनर्जन्म और प्रेत अस्तित्व की किम्बदन्तियों को घटना-क्रम बताकर तिल का ताड़ बना दिया जाता है, पर अब उन लोगों के बीच भी ऐसे अनेकों प्रमाण पाये गये हैं जिनसे मरणोत्तर जीवन की पुष्टि होती है और मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बने रहने का सिद्धान्त जाति धर्म की परिधि लौधकर सार्वभौम सत्य के रूप में सामने आता जाता है।

इन्डोनेशिया के प्रायः सभी समाचार पत्रों में उस देश की एक मुस्लिम महिला तजुत जहाराफोना का विवरण विस्तारपूर्वक छपा था जिसके पेट में 18 महीने का बालक है और वह अंग्रेजी, फ्रेंच, जापानी तथा इंडोनेशियाई भाषाएँ बोलता है। उसकी आवाज बाहर सुनी जा सकती है। उसकी डाक्टरी जाँच बारीकी से की गई। यहाँ तक कि इस देश के राष्ट्रपति सुहार्तो स्वयं उस महिला से मिलने और चमत्कारी बालक के सम्बन्ध में बताई जाने वाली बातों की यथार्थता जाँचने पहुँचे थे।

सेवनान और तुर्की के मुसलिम परिवारों में तो पुनर्जन्म की स्मृतियाँ ऐसी सामने आई जिनकी प्रामाणिकता परामनोविज्ञान के शोधकर्ताओं ने स्वयं जाकर की और जो बताया गया था उसे सही पाया। लेवनान देश का एक गाँव कोरनाइल। वहाँ के मुसलमान परिवार में जन्मा एक बालक, नाम रखा गया अहमद। बच्चा जब दो वर्ष का था तभी से अपने पूर्व जन्म की घटनाओं और सम्बन्धियों के बारे में बुदबुदाया करता था। तब उसकी बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। कुछ बड़ा हुआ तो अपना निवास ‘खरेबी और नाम बोहमजी बताने लगा।’ तब भी किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। एक दिन सड़क पर उसने खरेबी के किसी आदमी को निकलते देखा उसने उसे पहचानकर पकड़ लिया विचित्र अचम्भे की बात थी।

पता लगने पर पुनर्जन्म के शोधकर्ता वहाँ पहुँचे और बड़ी कठिनाई से बालक को उसके बताये गाँव तक ले जाने की स्वीकृति प्राप्त कर सके। गाँव 40 कि.मी. दूर था। रास्ता बड़ा कठिन और सर्वथा अपरिचित। फिर भी वे लोग वहाँ पहुँचे। लड़के के बताये बयान उस 25 वर्षीय युवक इब्राहिम बोहमजी के साथ बिलकुल मेल खाते गये जिसकी मृत्यु रीढ़ की हड्डी के क्षय रोग से हुई थी। तब उसके पैर अशक्त हो गये। पर इस जन्म में जब वह ठीक तरह चलने लगा तो बचपन से ही इस बात को बड़े उत्साह और हर्ष के साथ हर किसी से कहा कि वह अब भली प्रकार चल फिर सकता है।

खरेबी में जाकर उसने कुटुम्बी, सम्बन्धी और मित्र, परिचितों को पहचाना उनके नाम बताये और ऐसी घटनाएँ सुनाई जो सम्बन्धित लोगों को ही मालूम थीं और सही थीं। उसने अपनी प्रेयसी का नाम बताया। मित्र के टूक दुर्घटना में मरने की बात कही। मरे हुए भाई भाउद का चित्र पहचाना और पर्दा खोल कर बाहर आई लड़की के पूछने पर उसने कहा तुम तो मेरी बहिन ‘हुडा’ हो।

तुर्की के अदाना क्षेत्र में जन्मा इस्माइल नामक बालक जब 1॥ वर्ष का था तभी वह अपने पूर्व जन्म की बातें सुनाते हुए कहता मेरा नाम अवीत सुजुल्मस है। अपने सिर पर बने एक निशान को दिखाकर बताया करता कि इस जगह चोट मार कर मेरी हत्या की गई थी। जब बालक पाँच वर्ष का हुआ और अपने पुराने गाँव जाने का अधिक आग्रह करने लगा तो घर वाले इस शर्त पर रजामन्द हुए कि वह आगे-आगे चले और उस गाँव का रास्ता बिना किसी से पूछे स्वयं बताये। लड़का खुशी-खुशी चला गया और सबसे पहले अपनी कब्र पर पहुँचा। पीछे उसने अपनी पत्नी हातिश को पहचाना और प्यार किया। इसके बाद उसने एक आइसक्रीम बेचने वाले मुहम्मद को पहचाना और कहा तुम पहले तरबूज बेचते थे और मेरे इतने पैसे तुम पर उधार हैं। मुहम्मद को पहचाना और कहा तुम पहले तरबूज बेचते थे और मेरे इतने पैसे तुम पर उधार हैं। मुहम्मद ने वह बाल मंजूर की और बदले में उसे बर्फ खिलाई।

जगद्विख्यात सामुद्रिक शास्त्र ज्ञाता कीरो के पिता का जिस समय देहान्त हुआ उस समय उनकी शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी और इसलिए वे कुछ आवश्यक बातें समाप्त हो गई। कुछ महीने पश्चात् कीरो संयोगवश एक प्रेतात्मा ने आकर उनको बतलाया कि हमारे परिवार से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज लन्दन के डेविस एण्ड सन सालिसिटर’ के यहाँ रखे हैं। उनका दफ्तर स्ट्रेण्ड में गिर्जाघर के पास एक तंग सड़क पर है, जिसका नाम मैं भूल गया हूँ। तुम उनके यहाँ जाकर उन कागजात को ले आना।”

“दूसरे दिन कीरो उस सड़क पर पहुँचे और बहुत देर परिश्रम करने के बाद वह कार्यालय मिल गया। उसके पुराने मालिक तो मर चुके थे, पर उस कारवार को किसी अन्य वकील ने खरीद लिया था। नये मालिक ने पहले तो इतने पुराने कागजात को जल्दी ढूँढ़ सकने में असमर्थता प्रकट की, पर जब कीरो ने उसके क्लर्क को पुरस्कार देने की बात कही तो उसने पुराने बण्डलों में से आधा घण्टा मेहनत करके उन दस्तावेजों को निकाल दिया।”

वर्जीनिया विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डाक्टर इवान स्टीवेन्सन ने पुनर्जन्म की स्मृति से सम्बन्धित घटनाओं की जाँच-पड़ताल करने के सम्बन्ध में समस्त संसार का दौरा किया है। इस संदर्भ में वे भारत भी आये थे और उन्होंने यहाँ अनेकों घटनाओं की गंभीरता पूर्वक जाँच की और उनमें से अधिकाँश को पूर्ण विश्वस्त बताया। इनकी खोज में दो घटनाएँ और भी अधिक आश्चर्यजनक थीं। कन्नौज के निकट जन्मे एक बालक के शरीर पर गहरे घावों के पाँच निशान जन्म काल से ही थे वह कहता था पिछले जन्म में शत्रुओं ने उसकी हत्या चाकुओं से गोद कर की थी यह उसी के निशान हैं। जाँच करने पर पूर्व जन्म में जहाँ उसने बताया था सचमुच ही उस नाम के व्यक्ति की चाकुओं से गोद कर हत्या किये जाने का प्रमाण था। ठीक इसी से मिलती-जुलती एक पूर्व जन्म स्मृति तुर्की के एक बालक की थी, जिसकी शत्रुओं ने छुरे से हत्या की थी। उसके शरीर पर घावों के निशान मौजूद थे और पुलिस के रिकार्ड में बताये गये व्यक्ति की हत्या ठीक उसी प्रकार किये जाने का विवरण दर्ज था, जैसा कि उस बालक ने बताया था। डा. इवान स्टीवेन्सन ने समस्त विश्व में इस प्रकार के प्रामाणिक विवरण प्राप्त किये हैं। अन्य देशों की अपेक्षा भारत में ऐसे प्रमाण इसलिए अधिक मिलते हैं कि यहाँ की संस्कृति में पुनर्जन्म की मान्यता सहज ही सम्मिलित है, इसलिए स्मृति बताने वाले बालकों को उस तरह डाँटा डपटा नहीं जाता जैसा कि पुनर्जन्म न मानने वाले ईसाई मुसलमान धर्म वाले देशों में, वहाँ इस तरह की स्मृतियों की जाँच पड़ताल करना तो दूर, बताने वाले पर धर्म विरोधी के प्रति साजिश का आक्रमण होने की बात सोचकर उसे चुप कर देना ही ठीक समझा जाता है।

ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डिक्सन स्मिथ बहुत समय तक मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध में अविश्वासी रहे। पीछे उन्होंने प्रामाणिक विवरणों के आधार पर अपनी राय बदली और वे परलोक एवं पुनर्जन्म के समर्थक बन गये। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘न्यू लाइट आन सरबाइवल’ में उन तर्कों और प्रमाणों को प्रस्तुत किया है जिनके कारण उन्हें अपनी सम्मति बदलने के लिए विवश होना पड़ा।

पेरिस के अन्तर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक सम्मेलन में सर आर्थर कानन डायल ने परलोक विज्ञान को प्रामाणिक तथ्यों से परिपूर्ण बताते हुए कहा था उस मान्यता के आधार पर मनुष्य जाति को अधिक नैतिक एवं सामाजिक बनाया जा सकना सम्भव होगा और मरण वियोग से उत्पन्न शोक-सन्ताप का एक आशा भरे आश्वासन के आधार पर शमन किया जा सकेगा।

निस्सन्देह मरणोत्तर जीवन की मान्यता के दूरगामी सत्परिणाम हैं। उस मान्यता के आधार पर हमें मृत्यु की विभीषिका को सहज सरल बनाने में भारी सहायता मिलती है। नैतिक मर्यादा की स्थिरता के लिए तो उसे दर्शन शास्त्र का बहुमूल्य सिद्धान्त कह सकते हैं।


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