देश में खिलाफत आन्दोलन चल रहा था फिर इलाहाबाद उसकी चिनगारी से कैसे बचता? संगम थियेटर में महिला सभा का आयोजन किया गया। हिन्दू, मुस्लिम सभी महिलाओं की अधिक संख्या में आने की सम्भावना थी। मुस्लिम समाज में पर्दा अधिक किया जाता है। अतः उनकी बैठक व्यवस्था किस प्रकार की जाये। यह एक विवाद का विषय था।
अनेक नेताओं ने अपने-अपने ढंग के सुझाव दिये एक सुझाव था कि वक्त, भाषण देते समय आँखों से पट्टी बाँध ली। गाँधीजी इस प्रस्ताव पर बहुत हँसे। उन्होंने इस सुझाव को अस्वीकृत कर दिया। उन्होंने यह कहा—’मैं अपना पूरा भाषण नीची दृष्टि करके दूँगा अतः किसी को देखने का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी कार्यकर्ताओ ने मुस्लिम महिलाओं के बैठने के स्थान के आगे चिकें लगा दी ताकि वक्त की सीधी दृष्टि श्रोताओं की ओर न पहुँच सके।
सभा की कार्यवाही प्रारम्भ हुई। पहला भाषण मौलाना मोहम्मदअली का था, उन्होंने आँखों पर पट्टी बाँधकर अपनी बात शुरू की। उसके बाद महात्मा गाँधी का नम्बर आया। वे मंच पर बोलने के लिए खड़े हुये। नीची दृष्टि करके उन्होंने अपना भाषण शुरू किया। वे थोड़ी ही देर बोल पाये होंगे कि चिक के पीछे बैठी महिलाएँ एकदम सामने आकर अन्य महिलाओं के बराबर बैठने लगीं।
कमला नेहरू की माताजी भी आगे बैठकर भाषण सुन रहीं थी उन्होंने पूछ ही लिया—’आप लोगों के लिए पर्दे की इतनी अच्छी व्यवस्था की गई थी फिर उसे तोड़कर आप आगे क्यों आ गई? कम से कम गाँधी जी का भाषण तो शान्ति से सुन लिया होता।’
उन्होंने एक स्वर में कहा—’कहीं पीरों और फकीरों से भी पर्दा किया जाता हैं। पर्दा तो साँसारिक लोगों के लिए हैं।’ आप उनके भाषण का यहाँ बैठकर आनन्द लें, फिर हम ही वहाँ क्यों बैठें?’