अध्यात्मवेत्ता स्वामी रामतीर्थ अमेरिका में महिलाओं की शंकाओं का समाधान कर रहे थे। धर्म की अनेक गुत्थियाँ सुलझाते जा रहे थे। तब तक युवती पूछ बैठी-’कृष्ण अधिकतर गोपियों के मध्य रहते थे। क्या युवतियों के मध्य घिरा रहने वाला व्यक्ति पवित्र हो सकता है? ‘इसमें भी कोई शंका की बात है? व्यक्ति के चरित्र का सम्बन्ध तो उसके विचारों से है। विचारों की पवित्रता उसे कभी विचलित नहीं होने देती।’
‘मैं इस बात पर विश्वास नहीं करती।’ इतना सुनते ही बिना कुछ कहे सुने स्वामीजी अपना आसन छोड़ भागने लगे। काफी दूर निकल जाने पर वह खड़े होकर पीछे की ओर देखने लगे। उनमें से अधिकतर महिलाएँ स्वामी जी के पीछे-पीछे दौड़कर आ रही थीं। जब वे सभी महिलाएँ निकट आ गई तो स्वामी जी ने पूछा—’अच्छा बताइये क्या मैं अपवित्र हो गया॥’ ‘नहीं! बिलकुल नहीं!! फिर योगिराज कृष्ण को गोपियों से घिरे रहने पर कैसे अपवित्र कहा जा सकता है।’