रीति शक्ति का उपयोग और दीर्घ जीवन

April 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अन्य ग्रहों की यात्रा के अनुसंधान कार्य में जहाँ नये−नये उपकरण, नई−नई जानकारियाँ प्रकाश में आई वहाँ एक बड़ा लाभ मनुष्य के शरीर स्वास्थ्य के गहन अध्ययन और मनुष्य शरीर को रोगों से बुढ़ापे से और प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों से बचाये रखने के लिए नये−नये आश्चर्यजनक अनुसंधान प्रकाश में आये और इन नई शोधों से मनुष्य जीवन की सौ वर्षीय अवधि को बढ़ाकर न केवल जाना सम्भव हो गया।

बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का, विषाणुओं का भय अब साल दो साल का ही रहा है, विकिरण के दुष्प्रभाव से अब जो पोशाकें पहनी जाया करेंगी वह बचा देगी, भोजन कोई समस्या नहीं है। वैज्ञानिक परीक्षण कर रहें है एक दिन आयेगा जब पृथ्वी पर जाने वाली मनुष्य जाति अपने ही उच्छिष्ट का उपयोग जीवन धारण के लिए कर लिया करेगी। यह भी सम्भव है कि बहुत स्वल्पाहार वर्षों तक के भोजन की आवश्यकता पूरी कर दिया करें। दीर्घजीवन और अमरत्व के लिए जीवित कोषों की सुरक्षा भर की समस्या थी उसे अब “क्रियोजेनिक्स” विज्ञान (शीत विज्ञान)ने हल कर दिया। ऊपर जिस प्रयोग की चर्चा की गई है वह “क्रियोजेनिक्स” का ही चमत्कार है।

इससे पूर्व कि इस तरह के प्रयोगों की ओर अधिक चर्चा करें इस “क्रियोजेनिक्स” विज्ञान को समझ लेना चाहिए। यह विज्ञान है अति शीत अवस्था में वस्तुओं का “रूपांतरण” और सुरक्षित स्थायित्व(प्रियर्वेशन)। पानी जिस तापक्रम पर जमकर बर्फ बन जाता है उसे शून्य डिग्री कहते हैं उस शून्य से नीचे भी यदि ताप को गिराते चलें जायें और माइनस 273 अंश(अर्थात् शून्य से भी 273 अंश) नीचे गिरा दें इसे अति शीत अवस्था कहेंगे इस अवस्था में आक्सीजन, नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन जैसी गैसें भी तरल अवस्था में आ जाती है। अन्तिम शीतावस्था 4597 अंश की है और इस अवस्था में तो पदार्थों की परमाणविक क्रियायें ही रुक जाती है उस रुकी हुई स्थिति में एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ तक में अर्थात् तांबे को सोने, सोने को प्लैटिना में बदलना सम्भव हो जाता है।

इस परम शीत अवस्था में यदि नाइट्रोजन को तरल कर लिया जाये और उस पर रक्त को सुरक्षित रखा जाये तो वह रक्त थक्का बनने से पहले ही जम जायेगा और उसे कितने ही वर्षों को सुरक्षित रखा जाना सम्भव हो जायेगा। इस अवस्था में जीवित कोषों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता। हिमालय के 25000 फुट से भी ऊँचे से भी ऊँचे के कितने ही क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इतनी शीत रहती है वहाँ कई स्थानों पर भालू बर्फ के नीचे दब जाते है और 6 महीने बर्फ के नीचे दबे रहते हैं। जब गर्मियां आती है और उनके ऊपर की बर्फ पिघल कर बह जाती है तो वे फिर जीवित हो जाते हैं। हिमालय में अनेक अमर आत्माओं का वास बताया जाता है वह प्राणों की ऊष्मा और अति शीत अवस्था में जीवित कोषों के सुरक्षित बनें रहने के समन्वय का ही फल है। यह केवल योगी के लिए ही सम्भव का ही फल है। यह केवल योगी के लिए ही सम्भव होता है पर प्राण−विद्या की योगसाधना हर किसी के लिए सम्भव है और भारतवर्ष में इसी विद्या के बल पर कभी लोगों ने हजारों वर्ष से अधिक की आयु पाई हो तो इसे अतिशयोक्ति नहीं माना जाना चाहिए। आज वह सम्भावनायें प्रायोगिक तौर पर सत्य हो रही हैं।

लेनिनग्राड (रूस) के वैज्ञानिक डा. एल लोजिनलोजिनस्की ने 1964 में यह प्रयोग मक्के के कुछ कीटाणुओं पर किया। उन्होंने परम शून्य डिग्री से कुल 4 अंश ऊपर 269 अंश सेन्टीग्रेड पर हीलियम को तरल बनाकर इन मृत कीटों का क्रमशः डडडड प्रदान की गई तो 20 कीटों में से 13 फिर से जीवित हो गये। प. जर्मनी के वैज्ञानिक ने नाइट्रोजन को द्रव बनाकर उसमें मेंढकों को डुबा दिया और उन्हें काफी समय तक डूबा रहने दिया गया पीछे उन्हें भी गर्मी प्रदान की गई जिससे वे फिर जीवित हो गये। अमेरिका वैज्ञानिक ने एक स्टरलेट को इस स्थिति में लगातार चार दिन तक मृत अवस्था में रखकर जिन्दा कर दिया। 5 मछलियों को लगातार 25 घण्टे तक परम शून्य स्थिति में रखकर जिन्दा करके यह सिद्ध कर दिया गया कि शरीर एक अवस्था में यथावत स्थिति में रखा जा सकता है यदि प्राण क्षुब्ध न हों तो शरीर धारी को निद्रा जैसी स्थिति में रखकर पुनः जीवित कर देना एक सामान्य बात है।

सबसे आश्चर्यजनक प्रयोग था सोवियत वैज्ञानिक कोप्तरेव का उन्होंने 25000 वर्ष पूर्व हुए एक हिमायत के समय दबे हुए कुछ जल कीट जिन्हें डाफनियाँ कहा जाता है को निकाल कर उन्हें क्रमिक गर्मी देकर फिर से जीवित कर यह सिद्ध कर दिया कि पुराणों में जो हजारों वर्षों की डडडड का उल्लेख है वह विज्ञान की सीमा के अंतर्गत है कलाप−कल्पना नहीं। प्राणों को शरीर में सुरक्षित बनायें रखने और शरीर को वाह्य−वातावरण से बचाये रखने की जा सकें तो मनुष्य प्रस्तुतः अवस्था में नहीं चेतना अवस्था में ही हजारों वर्ष का जीवन जी सकता है और अब वह समय आ भी समीप गया है जब लोगों की आयु पुराण काल के लोगों की तरह लम्बी होगी। तब मुख्य समस्या रोगों से बचाव और दैनिक जीवन व्यापार की नहीं होगी वरन् यह होगी कि इतनी लम्बी आयु आखिर काटी कैसे जाये?

अमरत्व भले ही अभी आत्मा की चेतना तक सीमित माना जाय पर शरीर को अधिकाधिक समय तक जीवित रह सकने वाला बनाया जा सकता है। यदि दुष्ट दुरुपयोग से इस दीर्घजीवन को अभिशाप बनाया जाय तो बात दूसरी है अन्यथा उसके सदुपयोग की बात सामने हो तो मानव जीवन के महान अनुदान का भरपूर लाभ उठाया जा सकता है और उसके परमार्थ प्रयोग द्वारा संसार का

शीत की शक्ति का उपयोग करके मनुष्य पुराण काल में वर्णित आश्चर्यजनक उपलब्धियों के करतल गत किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रगति के साथ−साथ मनुष्य अपनी सत्ता फिर पुराण पुरुष के रूप में प्रकट सकता है, तब वह अर्जुन की तरह इन्द्रलोक जाकर विद्या पढ़ेगा। मेघनाथ की तरह अन्य ग्रहों में जाकर वहाँ के राज्य जीता करेगा। त्रिशंकु की तरह किसी 10-20 मील व्यास वाले किसी क्षुद्र ग्रह में बैठ कर ब्रह्माण्ड के नजारे देखा करेगा। लम्बी आयु इसी में खपेगी। बुध की यात्रा 210 दिन में होती है, शुक्र जाने के लिए 262 दिन चाहिए। इतने दिन जानें में इतने ही दिन आने में लगेंगे तो आखिर वहाँ 10-20 वर्ष तो घूमना ही चाहिए मंगल की यात्रा 518 दिन में सम्भव है तो बृहस्पतिवार और शनि की क्रमशः

शीत की शक्ति का उपयोग करके मनुष्य पुराण काल में वर्णित आश्चर्यजनक उपलब्धियों के करतल गत किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रगति के साथ−साथ मनुष्य अपनी सत्ता फिर पुराण पुरुष के रूप में प्रकट सकता है, तब वह अर्जुन की तरह इन्द्रलोक जाकर विद्या पढ़ेगा। मेघनाथ की तरह अन्य ग्रहों में जाकर वहाँ के राज्य जीता करेगा। त्रिशंकु की तरह किसी 10-20 मील व्यास वाले किसी क्षुद्र ग्रह में बैठ कर ब्रह्माण्ड के नजारे देखा करेगा। लम्बी आयु इसी में खपेगी। बुध की यात्रा 210 दिन में होती है, शुक्र जाने के लिए 262 दिन चाहिए। इतने दिन जानें में इतने ही दिन आने में लगेंगे तो आखिर वहाँ 10-20 वर्ष तो घूमना ही चाहिए मंगल की यात्रा 518 दिन में सम्भव है तो बृहस्पतिवार और शनि की क्रमशः


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles