सत्यवादन घाटे का सौदा नहीं

April 1974

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“मुझे इस सुनहरे रंग के मेमने की आवश्यकता है। तुम इसके बदले जितना धन चाहोगे मैं देने को तैयार हूँ।”

परशिया के राजा ने हंगरी के राजा मत्थियस के गड़रिये को प्रलोभन देते हुए कहा।

‘मैं राजसिंहासन के सम्मुख असत्य भाषण नहीं कर सकता। यह सब राजा की भेड़े है मैं उनकी आज्ञा के बिना किसी के स्पर्श पर देने को तैयार नहीं हूँ “गड़रिये ने उत्तर दिया।

गड़रिये बड़ा ईमानदार और सत्यवादी था। हुआ यह कि उस दिन परशिया के राजा अपनी अविवाहित युवा पुत्री के साथ मत्थियस के अतिथि बने। बातों ही बातों में गड़रिये की चर्चा निकल पड़ी। मत्थियस ने अतिथि को बताया −कि गड़रिया हमेशा सत्य भाषण करता करता हैं।

बड़े से बड़े प्रलोभन भी उसे विचलित नहीं कर पाते। यही कारण है कि पिछले कितने ही वर्षों से वह मेरे पास कार्य कर रहा है”

“असम्भव! ऐसा हो ही नहीं सकता।”

“यदि मैं उसने असत्य भाषण न करवा सका तो आधा राज्य हर जाऊँगा।”

“और यदि वह असत्य बोल गया तो मैं आधा राज्य हार जाऊँ गा। इस प्रकार की प्रतिज्ञा आपके सामने करता हूँ।” मत्थियस ने जोशा में कहा।

रात्रि के भोजनोपरान्त परशिया का राजा अपने शयन कक्ष में आया और पलंग पर लेटे−लेटे काफी रात तक यही सोचता रहा कि इस गड़रिये से कैसे असत्यवादन करवाया जाये। फिर उसे ध्यान आया कि आज शाम को जब वह भेड़े चराकर वापस लाया था तब उनमें एक छोटा सा मेमना सुनहरे रंग का था। यदि अधिक से अधिक धन का प्रलोभन देकर उसे खरीद लिया जाये तो उस मेमने सुनहरे रंग का था। यदि अधिक से अधिक धन का प्रलोभन देकर उसे खरीद लिया जाये तो उसे मेमने के गायब होने की कोई कल्पित कहानी गढ़ कर राजा के सम्मुख कहनी होगी। जिससे मत्थियस का अहं चूर चूर हो जायेगा।

कंचन से अधिक प्रलोभन कामिनी का होता है। ऐसा सोचकर राजा ने अपनी अपूर्व सुन्दरी कन्या को गड़रिये के पास भेजा। उसे इस बार पूर्ण विश्वास था कि हमारा बार खाली न जायेगा। बड़े बड़े ईमानदार और संयमी व्यक्ति तक कंचन और कामिनी के प्रभाव में प्रभाव में आकर फिसलते देखे गये है। फिर वह तो एक साधारण−सा पशु−पालक है। राज कन्या गड़रिये के पास जाकर कहने लगी— “तुम्हारी भेड़ों में यह छोटा सा मेमना देखने में कितना सुन्दर लगता है। काश! यह प्यार मेमना मेरे पास होता तो मैं इस और लाड़−दुलार से रखती। इसके केश और मेरी केश राशि में कितना साम्य है। तुम यह मेमना मुझे दे दो। इसके बदले तुम जितना द्रव्य चाहोगे मैं तुम्हें अपने पिता से दिलवा दूँगी। और मैं सदा तुम्हारी आज्ञा का पालन करूंगी। भद्र, पुरुष मेरा प्रस्ताव स्वीकार लो। मैं तुम्हारे लिए एक शीतल पेय भी लायी हूँ। “

गड़रिये को उस पर समय प्यास लग रही थी। उसने राजकुमारी के हाथ से जल−पात्र लेते हुए कहा−”मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम प्रलोभन देकर इस मेमने को लेना चाहती हो। पर मैं किसी भी मूल्य पर अपनी ईमानदारी और जिम्मेदारी बेच नहीं सकूँगा।”

गड़रिये ने पात्र को ओठ से लगाया और उसे रिक्त करके राजकुमारी को वापस कर दिया। वह समझ गया कि यह मधुर जल नहीं वरन् तीखी मदिरा है। शनैःशनैः उसे मूर्छा आने लगी। मौका पाकर राजकुमारी ने उस मेमने को उठा लिया और राजभवन वापस आ गई। पिता ने जब पुत्री को गोदी में मेमना देखा तो वह खुशी से चीख पड़ा −”बेटी! तुमने आज मेरे मन की मुराद पूरी करदी अब मैं मत्थियस, परक्षिया के राजा, उनकी युवा पुत्री तथा अन्य कई मन्त्री भी बैठे चर्चा कर रहे थे। युवा पुत्री तथा अन्य कई मन्त्री भी बैठे चर्चा कर रहे थे। उसी समय गड़रिया आया। उसने सबको उचित अभिवादन कर बड़े शिष्टाचार के साथ कहा −”राजन! आज मैंने सुनहरे मेमने को उससे भी सुन्दर मेमने से बदल लिया है। मेरा विश्वास है कि अपने लिये यह घाटे का सौदा नहीं है,और वह सुन्दर मेमना यह रहा,गड़रिये ने राजपुत्री की ओर संकेत करते हुए।

सारी बातें सामने आई। परशिया के राजा का सारा प्रयास व्यर्थ गया। एक सामान्य से गड़रिये की ईमानदारी और सत्यवादिता पर सब मुग्ध थे। परशिया नरेश अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार आधा राज्य हार चुके थे। मत्थियस ने यह जीता हुआ राज्य गड़रिये को देते हुए कहा− “वत्स! तुम्हारी कर्त्तव्य निष्ठा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ।आज तुमने मेरे सम्मान की बहुत बड़ी रक्षा की है। मैं भी तुम्हें अपने राज्य का एक भाग पुरस्कार स्वरूप प्रदान करता हूँ। और तुम अब दोनों खण्डों के राजा हुए।”

परशिया का राजा खड़ा हो गया उसने कहा−”ईमानदारी और कर्त्तव्य मनुष्य का सबसे बड़ा गुण हैं। मैं ऐसे ही वर की तलाश अपनी लड़की क लिए कर रहा था। मुझे ऐसा साहसी और सत्यव्रती युवक बहुत खोज के बाद पहली बार मिला है। अतः मैं अपनी कन्या क हाथ भी इसके हाथों में सौंप कर अपने भर को कम करना चाहता हूँ परशिया के राजा ने अपनी पुत्री का हाथ उस गड़रिये के हाथ में देकर बड़ी प्रसन्नता तथा सन्तोष का अनुभव किया। गड़रिये से राजा बनने वाले सम्राट इनो सेन्य की कथा−गाथा अभी भी मध्य एशिया के देशों में बड़े श्रद्धा भाव के साथ कही सुनी जाती है।


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