घर के सामने कई पीढ़ियों से खड़े पर्वत ने चुनौती दी- ”है कोई माई का लाल जो मुझे अपने स्थान से हटा दे।” पर्वत की यह गर्वोक्ति किसी ने सुनि, किसी ने नहीं सुनि किसी ने सुनकर भी अनसुनी कर दी पर सामने वाले मकान में बैठे हुये एक बूढ़े किसान ने सोचा यदि पहाड़ इस स्थान से हट जाता तो कई बीघे जमीन खेती के लिए निकल आती, बालक-बच्चों का उदर-पोषण होता।
दाढ़ी पर हाथ फेरा, घर वालों को आवाज लगाई। पिता की आवाज सुनकर सब लड़के और पोते घर से बाहर निकल आये-बाबा कहिये क्या आज्ञा है।” वृद्ध ने संकेत करते हुए कहा-” बच्चों वह देखो पहाड़ दिखाई देता है न कितनी जमीन घेरे खड़ा है, हम लोग प्रयत्न करें तो उसे अपने स्थान से हटा सकते हैं। एक-दो चार दिन नहीं जब तक वह हट न जाये चैन नहीं ले तो निश्चित ही पहाड़ को खोदकर समतल भूमि निकाल सकते हैं?”
इसकी उत्साह भरी बातें बच्चों को भा गई। उसने कहा- हाँ बाबा हटा क्यों नहीं से कहा। फावड़ा-कुदाली लेकर सब जुट गये पर समस्या आ खड़ी हुई इतना बड़ा पहाड़ खोदकर डाला कहाँ जाये। वृद्ध ने बच्चों को निरुत्साहित होते देखा तो फिर दौड़ा-दौड़ा आया और बोला- “थोड़ा चलना ही तो पड़ेगा पर समुद्र में तो हम ऐसे ऐसे हजारों पहाड़ फेंक सकते हैं।” बच्चे अब दुगुने उत्साह से खुद गये और पहाड़ को खोदकर समुद्र में फेंक डाला।