भगवान् बुद्ध

May 1969

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

भगवान् बुद्ध मृत्यु-शैया पर पड़े थे। उनकी जीवन-ज्योति के अस्त होने में कुछ ही विलम्ब था। सुभद्र नामक साधु ने यह समाचार सुना तो वह अपनी धर्म सम्बन्धी कुछ शंकाओं को निवारण करने के उद्देश्य से उनकी सेवा में उपस्थित हुआ। पर आनन्द ने, जो कुटी के द्वार पर स्थित था उसे भीतर जाने से रोका और कहा कि-” भगवान् को इस समय कष्ट देना उचित न होगा।” पर सुभद्र बराबर आग्रह करता रहा कि उसे भगवान् का दर्शन कर लेने दिया जाय।

बुद्ध जी ने भीतर पड़े हुए इस चर्चा को अस्पष्ट रूप से सुना और वहीं से कहा-आनन्द सुभद्र को भीतर आने दो। वह ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा से आया है, मुझे कष्ट देने नहीं आया।”

सुभद्र ने जैसे ही भीतर जाकर करुणा की उस शांत मूर्ति को देखा, वैसे ही बुद्ध जी के उपदेश उसके हृदय में प्रविष्ट हो गये और वह प्रव्रज्या लेकर बौद्ध भिक्षु बन गया। बुद्ध भगवान् ने शरीरान्त होते हुये भी किसी ज्ञान के अभिलाषी को निराश नहीं किया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118