फसल बेचने के लिए नहीं

May 1969

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फसल बेचने के लिए नहीं-

स्वामी रामतीर्थ हमारे देश के एक प्रतिष्ठित विद्वान् सन्त हो गये है। उनकी विद्याध्ययन की रुचि और तेजस्वी बुद्धि से प्रभावित होकर लाहौर कालेज के प्रिंसिपल ने उनका नाम सिविल-सर्विस की परीक्षा के लिए देने का निर्णय किया।

इस बात की सूचना जैसे ही उन्हें मिली वे तुरन्त ही प्रिंसिपल महोदय के पास पहुँचे और उनसे नम्रतापूर्वक बोले-” मैंने अपनी फसल के लाभ उठाने के लिये, उसे बेचकर टके गिनने के लिये, मेहनत नहीं की। मैंने तो उसे बाँटकर खाने के लिए तैयार की है। मैं कोई बड़ा अधिकारी नहीं बनना चाहता। मैं तो सेवक हूँ, अतः सेवा करना चाहता हूँ। इसलिये मैं अफसर बनने की बजाय अध्यापक बनना ही पसन्द करूँगा

प्रिंसिपल ने उन्हें बहुत समझाया पर वे अपने निर्णय पर दृढ़तापूर्वक कायम रहे। आज अपनी योग्यता से जनहित के बदले हममें स्वहित अधिक पनप रहा है। ऐसे समय में यह प्रसंग हमें स्वार्थ–लोलुपता से हटाने में सहायक हो सकता है। काश! आज के सेवा की इस तिलमिलाहट को महसूस कर सकते।


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