अभाव का दुःख-सन्तोष का सुख

May 1969

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शहर में एक युवक रहता था, वह बड़ा परिश्रमी था। दिन भर काम करता और शाम को जो मिलता खा पीकर चैन की नींद लेता।

एक दिन एक धनी व्यक्ति को देखकर उसकी ईर्ष्या जाग पड़ी। ईर्ष्या की जलन में युवक को रात में अच्छी तरह नींद भी नहीं आती थी।

संयोग से एक दिन उसे बहुत-सा घन जमीन में गड़ा मिल गया। अब तो उसकी सारी चिन्ता दूर हो गई। दूसरे दिन से ही उसका समय भोग और वासना की तृप्ति में बीतने लगा। कुछ ही दिन में उसका सारा शरीर कमजोर पड़ गया। मित्र लोग ईर्ष्या करने लगे, सब पैसे से प्रेम करने वाले मिलते, उसे किसी पर विश्वास न रहा। फलस्वरूप उसकी चिन्ता पहले से दुगुनी हो गई। उसने सोचा इससे तो पहले ही अच्छे थे, सुख और सन्तोष की नींद सो लेते थे।

‘एक दिन एक महात्मा उधर से निकले, युवक ने उनसे सुखी होने का उपाय पूछा। महात्मा ने कहा-सन्तोष और इतना कहकर आगे बढ़ गये। युवक ने बात समझी, अपनी मुफ्त की सम्पत्ति एक विद्यालय को दान कर दी और फिर से वही परिश्रमशील जीवन जीने में लग गया।


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